18 ग्लेशियर बना चुका है 81 साल का यह ‘आइस मैन’
आइस मैन के नाम से मशहूर हैं छिवांग.. नार्फेल, लेह- लद्दाख में मिटाई पानी की किल्लत...
जम्मू (विवेक सिंह)। लद्दाख की पथरीली बंजर भूमि, जहां बादल भी बरसने से कतराते हैं, एक इंसान ने अथक प्रयास के दम पर यहां 18 ग्लेशियर बना डाले। आइस मैन के नाम से मशहूर 81 वर्षीय छिवांग नार्फेल ने ये सभी हिमनद बड़े जतन से तैयार किए हैं। इन हिमनदों से लेह के अनेक गांवों में पानी की जरूरत पूरी हो सकी है। पद्मश्री से सम्मानित छिवांग ने जल संरक्षण का यह महान कार्य दशकों पहले अकेले दम पर शुरू किया था। अब उनके साथ करीब एक हजार लोग और तीन गैर सरकारी संगठन जुड़ चुके हैं। टाटा ट्रस्ट भी उनका साथ दे रहा है।
30 साल की मेहनत का फल : लेह के ऊपरी इलाकों में खून जमा देने वाली सर्दी बीतने के बाद अजीब स्थिति होती है। अप्रैल व मई में खेती के समय पानी नहीं होता और जब जून में पानी आता है तो खेती का समय निकल जाता है। तीन दशक पहले छिवांग ने लोगों को इस जटिल परेशानी से उबारने की ठानी।
ऐसे बनाए हिमनद : जल संरक्षण के लिए छिवांग ने कृत्रिम हिमनद बनाने की युक्ति अपनाई। उन्होंने गांवों के पास ही पानी को एकत्र करने की ठानी। इसके लिए बड़े आकार के कृत्रिम बांध बनाए। जून- जुलाई में बड़ी मात्रा में इनमें पानी एकत्र हो जाता है। सर्दियों आने पर यह पानी जम जाता है और कृत्रिम ग्लेशियर के रूप में जल को संरक्षित रखता है। गर्मियां आने पर धीरे-धीरे इन कृत्रिम हिमनदों का बर्फ पानी में तब्दील हो जाता है। इस पूरी युक्ति ने खेती सहित पेय जल की समस्या से लोगों को मुक्ति दिलाई है। नार्फेल अब तक लेह के फोगत्से, इगू, स्कटी, स्टाकनो, साटो, उमला गांवों के पास कृत्रिम ग्लेशियर बना चुकेहैं। नए ग्लेशियर थुक्से, अल्चे व लिकिर में बना रहे हैं।
कर रहे 90 फीसद जलापूर्ति : सेवा निवृत्त सिविल इंजीनियर छिवांग बताते हैं कि 1987 में उन्होंने यह काम शुरू किया था, जो आज भी जारी है। वह कहते हैं कि लद्दाख में नब्बे प्रतिशत पानी की उपलब्धता ग्लेशियर से होती है। हम पांच से छह हजार फीट ऊंचाई वाले इलाकों में बांध बनाकर सर्दियों से पहले पानी एकत्र करते हैं। हमारा सबसे बड़ा ग्लेशियर फोगत्से गांव के पास है। दो लाख वर्ग फीट में फैला यह कृत्रिम ग्लेशियर चार
फीट गहरा है। इसे बनाने में करीब एक लाख रुपए लगे हैं।
25 गांवों के पांच हजार लोग लाभान्वित : लेह में बनाए गए इन कृत्रिम ग्लेशियरों से दो दर्जन गांवों के करीब पांच हजार लोगों को लाभ मिल रहा है। हर कृत्रिम ग्लेशियर एक दूसरे से सटे दो गांवों की जरूरत को पूरा करने में सक्षम है।
विश्व में मिली पहचान मिली : वर्ष 2015 में पद्मश्री का सम्मान पाने वाले छिवांग को देश-विदेश में पहचान तो मिली है, लेकिन जम्मू-कश्मीर सरकार ने उन्हें अभी तक सम्मानित नहीं किया है। यह और बात है कि विश्व के कई देश उनके काम को सराह रहे हैं।
ठंड से जमी पानी की पाइप से कतरे गिरते देख मेरे मन में विचार आया कि इसी तरह से बर्फ का संचय करें तो इसके पिघलने से गर्मियों में पानी की जरूरत पूरी की जा सकती है। मेरा सिविल इंजीनियर होना वरदान साबित हुआ और मैं कृत्रिम ग्लेशियर बनाने लगा। - पद्मश्री छिवांग नार्फेल
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