गांव की 7000 बेटियों का घर बसाकर परोपकार की नई मिसाल कायम कर रहे हैं ये
पुत्र व पत्नी की मौत के बाद छेड़ी ‘बेटी पढ़ाओ, बेटी बढ़ाओ’ मुहिम, बेटे की याद में बनवाया सार्वजनिक पुस्तकालय...
पटना (जेएनएन)। इकलौते बेटे की अर्थी को कंधा दे चुके वशिष्ठ बाबू टूटे नहीं हैं। बल्कि उन्होंने बेटियों को आगे बढ़ाने और समाजसेवा को ही जीने का मकसद बना लिया है। राजधानी के पटेल नगर में रहने वाले 80 वर्षीय वशिष्ठ नारायण सिंह ने दिवंगत बेटे के नाम पर सिवान के भगवानपुर प्रखंड स्थित अपने पुश्तैनी बड़का गांव में दो कट्ठा जमीन दान कर सार्वजनिक पुस्तकालय खुलवा दिया। वशिष्ठ बाबू न तो कोई एनजीओ चलाते हैं और न ही समाज सेवा के लिए किसी सरकारी योजना का लाभ लेते हैं। कोई भी मजबूर पिता अपनी बेटी की शादी में सहयोग के साथ ही पांच हजार रुपये तक की आर्थिक सहायता उनसे प्राप्त कर सकता है। इसके लिए उन्होंने सार्वजनिक घोषणा कर रखी है। बेटियों की शादी में सहयोग के लिए वे अपनी जमीन तक बेच चुके हैं।
तीस साल पूर्व चल बसा था बेटा : वशिष्ठ नारायण सिंह सहकारिता विभाग में सहकारिता प्रसार पदाधिकारी थे। पत्नी व बेटा समेत तीन लोगों का परिवार था। वर्ष 1987 में मेनेंजाइटिस की चपेट में आकर उनका इकलौता बेटा हरेंद्र सिंह चल बसा। उस समय उसने इंटर की परीक्षा दी थी। पुत्र की मौत के बाद उनकी दुनिया ही सूनी हो गई। कुछ वर्ष नौकरी में मन लगाया। वर्ष 1994 में सेवानिवृत्त हुए। इसके बाद वे पूरी तरह समाज सेवा में उतर गए। गांव में शिक्षा के प्रचार-प्रसार का बीड़ा उठाया। वर्ष 1995 में पत्नी कौशल्या देवी भी साथ छोड़ गईं। बेटा और फिर पत्नी की मौत से वह टूट गए। फिर भी उन्होंने अपनी मुहिम जारी रखी। ‘बेटी पढ़ाओ, बेटी बढ़ाओ’ अभियान चलाया। वर्ष 2001 से 2006 तक गांव के मुखिया भी रहे। उनके प्रयासों की बदौलत गांव में जनसहयोग से बलहा से नगौली के बीच पुल निर्माण कार्य हुआ। इससे दो गांवों के बीच की दूरी समाप्त हुई।
बेटियों की शादी में करते हैं सहयोग
वशिष्ठ बाबू कहते हैं कि दुनिया में सबसे बड़ा पुण्य है बेटियों की शादी कराना। चालीस वर्षों के दौरान उन्होंने सात हजार से अधिक लड़कियों की शादी में सहयोग किया है। 21 वर्ष पहले बाइपास सर्जरी करा चुके वशिष्ठ बाबू प्रतिदिन सुबह टहलने के दौरान भी लोगों से बातचीत कर समाज सेवा का मौका तलाशते हैं। किसी की बीमारी का अपने खर्च पर इलाज कराने में भी उन्हें सुकून मिलता है।
32 वर्षों से आशा कर रही फूफा की देखभाल
पत्नी की मौत के बाद पिछले 32 सालों से साले की बेटी आशा उनकी सेवा में जुटी है। आशा बताती है कि उसकी भी शादी फूफा जी ने इंजीनियर अखिलेश्वर ठाकुर से कराई जो वर्तमान में दिल्ली में निजी कंपनी में कार्यरत हैं। एक बेटी नेहा है जो भोपाल में बीटेक कर रही है। आशा का कहना है कि बेटियों की जिंदगी में खुशियां बिखेरने वाले फूफा का सेवा भाव देख गर्व होता है।
सात हजार से अधिक बेटियों की शादी में कर चुके हैं सहयोग
-बलहा से नगौली के बीच कराया पुल व मंदिर का निर्माण
-सहकारिता पदाधिकारी के पद से सेवानिवृत्त होने के बाद पुस्तकालय के लिए बेची जमीन
-अनिल कुमार
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