पंचायतों के पास पड़े थे 474 करोड़
पंचायतों व शहरी स्थानीय निकायों को सरकार ने भले ही तिगुना धन दे दिया है, लेकिन इसके ऑडिट की बेहतर व्यवस्था अब तक नहीं हो सकी है। इसके चलते यह पता करना कठिन होता है कि पैसा कहां खर्च किया जाएगा, कितना खर्च होगा और कितना बचेगा।
हरिकिशन शर्मा, भोपाल। पंचायतों व शहरी स्थानीय निकायों को सरकार ने भले ही तिगुना धन दे दिया है, लेकिन इसके ऑडिट की बेहतर व्यवस्था अब तक नहीं हो सकी है। इसके चलते यह पता करना कठिन होता है कि पैसा कहां खर्च किया जाएगा, कितना खर्च होगा और कितना बचेगा। नतीजतन पंचायतों और नगर निकायों के पास 15 सालों से 474 करोड़ रुपये पड़े हुए थे, लेकिन किसी को इसकी जानकारी नहीं थी।
स्थानीय निधि लेखा परीक्षा के निदेशक को पंचायतों और नगर निकायों के खातों को ऑडिट करने का जिम्मा दिया गया है। इसकी रिपोर्ट राज्य विधानसभा में पेश की जाती है। लेकिन इनका प्रदर्शन अब तक संतोषजनक नहीं रहा है। नीति अनुसंधान केंद्र, नई दिल्ली की एक रिपोर्ट बताती है कि अधिकतर राज्यों में स्थानीय लेखा परीक्षा की रिपोर्ट एक से डेढ़ साल बाद विधान सभा में पेश होती है।
सूचना अधिकार के लिए राष्ट्रीय अभियान चलाने वाले निखिल डे कहते हैं कि ऑडिट की मौजूदा व्यवस्था पूरी तरह मिलीभगत पर आधारित है। इनके अधिकारी जमीन पर नहीं जाते। यूएनडीपी-नीति आयोग फेलोशिप के तहत जब मध्य प्रदेश में हमने पड़ताल की तो स्थानीय लेखा परीक्षण के तौर-तरीकों का पता चला। जब 2012-13 में सरकार ने अलग से ऑडिट कराना शुरू किया, तो पंचायतों के खाते में 474 करोड़ रुपये निकले। स्थानीय लेखा परीक्षण के दौरान इसकी जानकारी कभी सामने नहीं आ सकी। इनमें से 74 करोड़ रुपये 10वें वित्त आयोग से पड़े थे और 400 करोड़ रुपये पेंशन योजनाओं के थे।
खर्च करते हैं भारी धनराशि
देश की 2.44 लाख पंचायतें और चार हजार से अधिक शहरी स्थानीय निकाय हर साल भारी-भरकम धनराशि विकास कार्यो पर खर्च करते हैं। 14वें वित्त आयोग ने इन्हें अगले पांच साल में 2,87,436 करोड़ रुपये देने की सिफारिश की है। केंद्र के 17 लाख करोड़ रुपये के बजट से भी अधिकांश धनराशि मनरेगा और इंदिरा आवास जैसी योजनाओं के माध्यम से स्थानीय निकाय ही खर्च करते हैं।
सीएजी की सीमित भूमिका
पंचायतों के ऑडिट में सीएजी की भूमिका सिर्फ तकनीकी मार्गदर्शन तक सीमित है। कभी-कभी सीएजी पंचायतों का टेस्ट ऑडिट भी करता है। सीएजी के सूत्र कहते हैं कि सभी पंचायतों व नगर निकायों का लेखा परीक्षण करना उनके लिए संभव नहीं है।
एक पंचायत एक खाता
मध्य प्रदेश की अतिरिक्त मुख्य सचिव अरुणा शर्मा कहती हैं कि एक अप्रैल 2015 से राज्य में 'एक पंचायत एक खाता' प्रणाली शुरू हुई है। जो विभाग धनराशि दे रहा है, वह उसमें दर्ज करेगा। खर्च करने वाली पंचायत वर्क आइडी बनाएगी। इसके अलावा 15 पंचायतों पर एक सीए तैनात रहेगा। इसकी जिम्मेदारी हर पंचायत में खातों को सही रखने की होगी।
सामाजिक परीक्षण का विकल्प
आज 20 से अधिक राज्यों में सामाजिक लेखा परीक्षण इकाइयां ग्राम पंचायतों में मनरेगा का ऑडिट कर रही हैं। सिक्किम और आंध्र प्रदेश में यह व्यवस्था प्रभावी रही है। तो क्या बाकी विकास कार्यो के लिए भी सामाजिक लेखा परीक्षण का इस्तेमाल हो सकता है? निखिल डे कहते हैं कि राजस्थान में इंदिरा आवास तथा आंध्र प्रदेश में गृह निर्माण और मिड डे मील जैसी योजनाओं के लिए सोशल ऑडिट का इस्तेमाल हुआ है। जिस तरह योजनाएं बनाने में जनता की भागीदारी जरूरी है, वैसे ही हिसाब-किताब रखने में भी।