उत्तराखंडः आग से खतरे में जीव-जंतुओं की 4543 प्रजातियां
उत्तराखंड के जंगलों में भड़क रही आग से 4543 प्रजातियों के जीव-जंतुओं का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है। सबसे अधिक आफत पक्षियों, मधुमक्खियों व तितलियों पर टूटी है। इनकी 1739 प्रजातियों का जीवन संकट में है।
देहरादून। उत्तराखंड के जंगलों में भड़क रही आग से 4543 प्रजातियों के जीव-जंतुओं का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है। सबसे अधिक आफत पक्षियों, मधुमक्खियों व तितलियों पर टूटी है। इनकी 1739 प्रजातियों का जीवन संकट में है। वहीं, प्राणी सर्वेक्षण विभाग (जेडएसआइ) ने आशंका जताई है कि आग से प्रभावित वन क्षेत्रों में कीड़े-मकोड़ों का सफाया हो चुका होगा।
जेडएसआइ की कार्यालय प्रमुख डॉ. अंजुम एन रिजवी का मानना है कि यह स्थिति पारिस्थितिकी तंत्र के लिए बेहद घातक साबित होने वाली है और इसके दूरगामी दुष्परिणाम सामने आएंगे। जेडएसआइ के अनुसार जंगलों की आग से बड़े जानवरों की अपेक्षा वन्यजीवों के बच्चे, रेंग कर चलने वाले सांप, केंचुए, जमीन की सतह व भीतर रहने वाले कीड़े-मकोड़ों समेत उडऩे वाले सभी जीव जंतुओं के जीवन पर संकट बढ़ गया है।
कार्यालय प्रमुख डॉ. अंजुम एन रिजवी ने बताया कि वन क्षेत्रों में 90 फीसद संख्या कीड़े-मकोड़ों की है और जिन जंगलों में आग भड़की है, वहां इसकी उम्मीद ना के बराबर है कि कोई कीड़ा-मकोड़ा जीवित बचा हो। अगर पानी में रहने वाले जीव-जंतुओं की करीब 10 फीसद प्रजातियों को हटा दें तो स्थल पर वास करने वाले वनों की सभी 90 फीसद प्रजातियां आग के खतरे में हैं।
इन प्रजातियों पर अधिक खतरा
1-एव्स (पक्षी)
2-हाइमेनोप्टेरा (मधुमक्खी/ततैया)
3-लेपीडोप्टेरा (तितली)
4-एनेलिडा (केंचुआ)
5-रेप्टाइल्स (रेंगने वाले)
6-विभिन्न कीड़े-मकोड़े
विलुप्ति के कगार पर 100 वनस्पति प्रजाति
जंगलों की आग से वनस्पतियों की 4000 से अधिक प्रजातियों पर भी संकट के बादल मंडरा रहे हैं। प्राणी सर्वेक्षण विभाग के वैज्ञानिक डॉ. अंबरीश कुमार के मुताबिक आग से बड़े पेड़ों को उतना खतरा नहीं, जितना छोटी वनस्पतियों को है। उत्तराखंड की बात करें तो आग से जड़ी-बूटी समेत अन्य छोटी वनस्पतियों की 100 प्रजातियों का अस्तित्व समाप्त होने की आशंका है। इसमें जटामासी, पत्थरचट्टा जैसे पादप शामिल हैं। वहीं, लाइकेन, मॉस व फूल प्रजाति (ऑर्किड) वनस्पतियों के भी समाप्त होने का खतरा बढ़ गया है।
आग से प्रभाव का विस्तृत आकलन जरूरी : डॉ. रावत
भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआइआइ) के डीन (फैकल्टी आफ वाइल्ड लाइफ साइंसेज) डॉ. जीएस रावत का कहना है कि आग से वनों की क्षति को लेकर विस्तृत प्रभाव आकलन किया जाना चाहिए। विभिन्न वैज्ञानिक एजेंसियों से सहयोग लेकर वनों की मैपिंग कराई जाए और पता लगाया जाए कि जंगल की आग ने पारिस्थितिक तंत्र को कितना नुकसान पहुंचाया है। इसके आकलन के बिना प्रभावी वन संरक्षण भी संभव नहीं।
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