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इलाज से मुनाफाखोरी: प्राइवेट डॉक्टर 41 फीसद प्रसव ऑपरेशन से कर रहे

प्राइवेट सुविधा में आने वाले प्रसव के 41 फीसदी मामलों में डॉक्टर यह ऑपरेशन करवा रहे हैं। नौ साल पहले यह लगभग 28 फीसदी था।

By Sanjeev TiwariEdited By: Published: Tue, 28 Feb 2017 09:20 PM (IST)Updated: Tue, 28 Feb 2017 09:26 PM (IST)
इलाज से मुनाफाखोरी: प्राइवेट डॉक्टर 41 फीसद प्रसव ऑपरेशन से कर रहे
इलाज से मुनाफाखोरी: प्राइवेट डॉक्टर 41 फीसद प्रसव ऑपरेशन से कर रहे

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। निजी अस्पतालों और निजी डॉक्टरों की देख-भाल में होने वाले प्रसव में सीजेरियन ऑपरेशन की संख्या में भारी बढ़ोतरी हो रही है। प्राइवेट सुविधा में आने वाले प्रसव के 41 फीसदी मामलों में डॉक्टर यह ऑपरेशन करवा रहे हैं। नौ साल पहले यह लगभग 28 फीसदी था। यानी यह अनुपात 47 फीसदी की तेजी से बढ़ रहा है। जबकि इसी दौरान सरकारी अस्पतालों में तमाम सुविधाओं के बढ़ने के बावजूद सीजेरियन का अनुपात घटा है। विशेषज्ञ इसके लिए निजी अस्पतालों के लालच को जिम्मेदार मानते हैं।

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मंगलवार को सामने आए चौथे राष्ट्रीय पारिवारिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएच-4) के मुताबिक राष्ट्रीय स्तर पर सीजेरियन ऑपरेशन का औसत भी बढ़ गया है। नौ साल पहले देश में कुल 8.5 फीसदी बच्चे ऑपरेशन से होते थे, जबकि अब यह 17 फीसदी हो गया है। इसकी वजह निजी क्षेत्र में तेजी से बढ़ रहे सीजेरियन के मामले हैं। 2006 में हुए पिछले सर्वेक्षण में निजी क्षेत्र में 27.7 फीसदी बच्चे सीजेरियन होते थे, अब 41 फीसदी हो गए हैं। उधर, सरकारी क्षेत्र में अब सीजेरियन के मामले 12 फीसदी रह गए हैं। जबकि नौ साल पहले यह 15 फीसदी थे।

जन स्वास्थ्य अभियान के राष्ट्रीय संयोजक डॉ. अभय शुक्ला इसके लिए मुख्य रूप से निजी चिकित्सा क्षेत्र के लालच को जिम्मेदार ठहराते हैं। वे कहते हैं, 'इस दौरान सीजेरियन ऑपरेशन की पैठ छोटे शहरों तक हो गई है। डॉक्टर और निजी अस्पताल इसे बढ़ावा दे रहे हैं। क्योंकि इसमें उनका मुनाफा काफी अधिक होता है और उन्हें ज्यादा लाभकारी लगता है।' साथ ही वे कहते हैं कि प्राइवेट मेडिकल कालेज से निकलने वाले डॉक्टरों को सामान्य प्रसव का ठीक से अनुभव भी नहीं होता।

विशेषज्ञों का मानना है कि 85 से 90 फीसदी प्रसव सामान्य रूप से होने चाहिएं। गर्भवती महिला और परिवार वालों की ओर से भी सीजेरियन को प्राथमिकता दिए जाने के तर्क को भी ये गलत बताते हैं। इस तर्क पर शुक्ला कहते हैं डॉक्टर जवाबदेही से काम करें और सही जानकारी दें तो ऐसा नहीं होगा। साथ ही वे कहते हैं कि सरकार और स्त्रीरोग विशेषज्ञों के संगठनों को इस संबंध में दिशा-निर्देश तय करने चाहिएं। साथ ही सरकार को भी इस संबंध में जागरुकता कार्यक्रम चलाना चाहिए।

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