भोपाल गैस त्रासदी : 32 साल से जारी है इंसाफ के लिए जंग
1984 में हुई भोपाल गैस त्रासदी की आज 32वीं बरसी है, इतने सालों बाद भी पीड़ितों का संघर्ष जारी है।
नई दिल्ली (जेएनएन)। भोपाल गैस त्रासदी की शनिवार को 32वीं बरसी है। 2/3 दिसंबर की दरम्यानी रात को जहरीले गैस की चपेट में आए 5.5 लाख पीड़ितों के लिए यह बरसी थोड़ी सी राहत लेकर आयी है, लेकिन उनका सुकून अभी कोसों दूर है। 32 साल से ये पीड़ित दो संघर्षों- न्याय और विकलांगता के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं। हां उन्हें यह राहत जरूर मिली है कि स्वास्थ्य सुविधाएं बेहतर हुई हैं, लेकिन राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद अब भी हेल्थ कार्ड और पूरा मेडिकल हिस्ट्री रिकॉर्ड जारी नहीं किया है।
32 साल से हो रहा इलाज
32 साल से इनका इलाज हो रहा है, फिर भी पीड़तों को स्थायी विकलांग नहीं बल्कि अस्थायी विकलांग की कैटेगरी में डाला जा रहा है, ताकि उन्हें पूर्ण मुआवजा न दिया जा सके। परिणामस्वरूप केंद्र सरकार भी उन्हें सिर्फ टेंपरेरी डिजेबलिटीज के लिए ही ज्यादा मुआवजा देने की बात कर रही है। इन सबके बीच उनकी सभी उम्मीदें कोर्ट केसों में उलझ गई हैं और वे भोपाल से दिल्ली तक की कानूनी लड़ाई में खुद को फंसा हुआ महसूस कर रहे हैं।
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आसान नहीं है राह
साल 1998 में पीड़ितों के संगठनों ने बेहतर सुविधा की मांग के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। साल 2012 में कोर्ट ने राज्य और केंद्र सरकारों को सभी मरीजों की मेडिकल हिस्ट्री कंप्यूटराइज करने, उन्हें मेडिकल कार्ड जारी करने, इलाज की सुविधा बढ़ाने पर रिसर्च शुरू करने का आदेश दिया। पीड़ितों के लिए लड़ रहे एन डी जयप्रकाश ने बताया, ‘इस आदेश को आए चार साल हो गए हैं, लेकिन अभी तक कोई परिणाम नहीं देखा गया है। इस भयावह हादसे के 32 साल बाद भी इलाज करवा रहे पीड़ितों को टेंपररी इंजरी से पीड़ित की श्रेणी में रखा जा रहा है, ताकि उन्हें ‘पर्मानेंट इंजरी’ का मुआवजा न देना पड़े।‘
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केंद्र सरकार की दिलचस्पी नहीं
दुनिया की सबसे भयावह त्रासदी के लिए सुप्रीम कोर्ट से 1989 में महज 705 करोड़ रुपये का मुआवजा तय हुआ। 21 साल की लंबी लड़ाई के बाद दबाव में आकर सरकार ने साल 2010 में मुआवजे की राशि बढ़ाकर 7,728 करोड़ रुपये करने के लिए क्यूरेटिव पिटिशन डाली। इसका महत्वपूर्ण कारण यह था कि पहले के समझौते में पीड़ितों की संख्या बहुत कम बताई गई। लेकिन, दुर्भाग्य की बात है कि पिछले छह सालों में याचिका पर एक बार भी सुनवाई नहीं हुई। केंद्र सरकार भी इसमें दिलचस्पी नहीं ले रही।
जहरीले गैस की चपेट में रात
2/3 दिसंबर 1984 की भयावह रात को यह हादसा हुआ, जब यूनियन कार्बाइड की फर्टिलाइजर फैक्ट्री से जहरीली गैस का रिसाव हो गया। यह रिसाव इतना ज्यादा था कि पूरे शहर पर बादल की तरह एक शमियाना सा छा गया। बीच रात को लोग सो रहे थे। इस जहरीले गैस की चपेट में आकर कईयों की मौत हो गयी और जो बचे उनके फेफड़े कमजोर हो गए, आखें खराब हो गईं और भी कई तरह से लोग विकलांग हो गए।