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एक किलो चॉकलेट बनाने में 28 हजार लीटर पानी बर्बाद

भारत में गैरवैज्ञानिक तरीके से हो रही खेती के कारण 80 प्रतिशत जल कृषि पर ही खर्च किया जाता है। केवल 1 किलो चावल उगाने में हमारे देश में 1500 लीटर पानी खर्च किया जाता है। हमारे युवा चॉकलेट के इतने दीवाने हैं, एक किलो चॉकलेट बनाने में 28 हजार

By Rajesh NiranjanEdited By: Published: Sat, 20 Dec 2014 01:18 AM (IST)Updated: Sat, 20 Dec 2014 01:34 AM (IST)
एक किलो चॉकलेट बनाने में 28 हजार लीटर पानी बर्बाद

भोपाल (नप्र)। भारत में गैरवैज्ञानिक तरीके से हो रही खेती के कारण 80 प्रतिशत जल कृषि पर ही खर्च किया जाता है। केवल 1 किलो चावल उगाने में हमारे देश में 1500 लीटर पानी खर्च किया जाता है। हमारे युवा चॉकलेट के इतने दीवाने हैं, एक किलो चॉकलेट बनाने में 28 हजार लीटर पानी बेकार जाता है। कृषि पर खर्च हो रहे जल की मात्रा में अगर इस ढंग से कटौती की जाए, जिससे उत्पादन पर असर न पड़े, तो जल संकट को रोका जा सकता है।

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यह बात गुरुवार को यूएसए टैक्सास की एएंडएम यूनिवर्सिटी से आए डॉ. वीपी सिंह ने कही। जल पर शोध के मामले में दुनिया में जाने-माने प्रोफेसर डॉ. सिंह गुरुवार को मैनिट में शुरू हुई इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस 'हाइड्रो-2014' में विशिष्ठ अतिथि के रूप में शामिल हुए।

पानी की फिजूलखर्ची बड़ी समस्या

डॉ. सिंह ने कहा कि भारत में पानी बहुत है, सिर्फ जरूरत है इसका सही ढंग से इस्तेमाल करने की। दिल्ली दुनिया में सबसे ज्यादा पानी का कंजम्पशन करने वाले शहरों की सूची में शामिल है, बावजूद बहुत से लोगों को पानी मिल ही नहीं रहा। दरअसल, समस्या यह है कि जिनको भी मिल रहा है, वह उसको जरूरत से ज्यादा बर्बाद कर रहे हैं और जिनको नहीं मिल पा रहा वे अभाव में जी रहे हैं।

अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में आईआईटी रुढ़की से आए डॉ. सीएसपी ओझा ने गंगा के प्रदूषण और सैंड माइनिंग पर शोध पत्र प्रस्तुत किया। डॉ. ओझा ने बताया, आज भारत में जैविक और घरेलू चीजों का इस्तेमाल कर दूषित जल के शुद्धिकरण की अनेक तकनीकों को ईजाद कर लिया गया है। यह तकनीकें सस्ती हैं, जिनके कारण इनका इस्तेमाल देश को आर्थिक रूप से सुदृढ़ करने में भी मदद करेगा।

पढ़े जाएंगे 290 शोधपत्र

इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस के उद्घाटन सत्र में मुख्य अतिथि के रूप में तकनीकी शिक्षा मंत्री उमाशंकर गुप्ता ने कहा। शुक्र है कि भोपाल अभी दुनिया के प्रदूषण से प्रभावित शहरों में शामिल नहीं है। दुनिया का दो तिहाई हिस्सा पानी है, इसलिए पानी कभी खत्म हो जाएगा या पानी पर विश्व युद्ध हो सकता है.. इस तरह की बातें करना निरर्थक हैं।

अब सिर्फ इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि उपलब्ध पानी को इस्तेमाल योग्य कैसे बनाया जाए। मैनिट के डायरेक्टर डॉ. अप्पू कुट्टन केके ने बताया कि, तीन दिवसीय इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस में देशभर से करीब 290 शोधार्थी अपने रिसर्च पेपर प्रस्तुत करेंगे। शोधपत्रों के माध्यम से सामने आए व्यवहारिक दृष्टि से महत्वपूर्ण बिंदुओं को हम सरकार को भी भेजेंगे।


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