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अस्पताल ने 20 साल पहले की थी ये गलती, अब भरना होगा जुर्माना

बिना जांच के गर्भवती महिला को एचआइवी संक्रमित ब्‍लड चढ़ाने से नवजात की तो मौत उस वक्‍त ही हो गयी थी और अब 20 साल बाद महिला के इस जानलेवा बीमारी ने अपना रूप दिखाया है।

By Monika minalEdited By: Published: Wed, 01 Jun 2016 11:21 AM (IST)Updated: Wed, 01 Jun 2016 01:36 PM (IST)
अस्पताल ने 20 साल पहले की थी ये गलती, अब भरना होगा जुर्माना

मुंबई। मुंबई के एक अस्पताल को बीस साल पहले की गयी एक लापरवाही की सजा अब भुगतनी पड़ रही है। दरअसल प्रसव के लिए भर्ती हुई महिला को खून की जरूरत पड़ने पर अस्पताल में ब्लड बैंक से चार यूनिट ब्लड लेकर चढ़ाया गया। इससे उस वक्त उसकी जान तो बच गयी पर खून के जरिए उसके शरीर में एचआइवी जैसी जानलेवा बीमारी का प्रवेश हो गया था और अब इसकी भयावहता बीस साल बाद सामने आयी है।

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नए इलाज से जानलेवा नहीं रहेगा एचआइवी

राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के आदेशानुसार, एक महिला को पूरी जिंदगी मुंबई के अस्पताल की ओर से प्रति माह 12,000 रुपया मिलेगा। इस अस्पताल में 20 साल पहले खून चढ़ाने के दौरान यह महिला एचआइवी संक्रमित हो गयी थी। सूत्रों के अनुसार, खून चढ़ाने वक्त महिला के परिवार वालों से सलाह भी नहीं लिया गया था।

इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, प्रसव के लिए कल्याण के म्हास्कर अस्पताल में भर्ती महिला को खून चढ़ाया गया, जिससे वह एचआइवी संक्रमित हो गयी। शिकायतकर्ता के अनुसार, मां का दूध पीने से नवजात शिशु भी एचआइवी संक्रमित हो गया और बाद में नवजात की मौत हो गयी।

एचआइवी संक्रमण के कारण महिला के पति ने उसे प्रताड़ित किया और छोड़ भी दिया। चूंकि उसके पास आय का कोई साधन नहीं है इसलिए राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) ने अस्पताल को उसकी शेष जीवन के लिए जीविका व इलाज का खर्च उठाने को कहा है। अस्पताल को जुर्माना व प्रसव के दौरान आए खर्च वापस करने को कहा गया है।

एनसीडीआरसी के चेयरमैन जस्टिस डीके जैन और सदस्य एम श्रीशा के बेंच ने यह आदेश दिया है। इस आदेश में महत्वपूर्ण यह है कि जुर्माना इलाज में कमी या लापरवाही के लिए नहीं बल्कि रक्त संचार के लिए वैध अनुमति नहीं देने के कारण लगाया गया है। आयोग ने कहा कि शायद यह सही समय है जब भारत के सुप्रीम कोर्ट को इस मामले में दखल देने की जरूरत है।

एचआइवी मरीजों में लिवर और हृदय रोग का भी खतरा

डिलिवरी के लिए भर्ती होने से पहले महिला ने रूटीन खून जांच, जिसमें एचआइवी-1 और एचआइवी- II एंटीबॅाडी (एलिसा) जांच भी शामिल है, कराए थे और सब निगेटिव थे। शिकायतकर्ता ने यह भी कहा कि ब्लड बैंक से प्राप्त होने वाले खून की जांच अस्पताल ने नहीं की थी ताकि यह पता लग सके कि यह खून संक्रमित है या नहीं।

हालांकि आयोग ने कहा कि इस बात के लिए पर्याप्त गवाह नहीं है कि चार यूनिट ब्लड का टेस्ट नहीं किया गया था।

एचआइवी संक्रमित ब्लड चढ़ाने के मामले में महाराष्ट्र तीसरे स्तर पर है।

2007 में महाराष्ट्र के उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग ने महिला के शिकायत को इस आधार पर खारिज कर दिया था कि अस्पताल या ब्लड बैंक की ओर से कोई लापरवाही नहीं हुई थी।


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