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सात राज्यों ने किया अखिल भारतीय न्यायिक सेवा के प्रस्ताव का विरोध

न्यायपालिका के लिए अलग कैडर बनाने संबंधी 60 वर्षो से लंबित इस प्रस्ताव को मोदी सरकार आगे बढ़ा रही है।

By Mohit TanwarEdited By: Published: Sun, 23 Apr 2017 08:13 PM (IST)Updated: Sun, 23 Apr 2017 08:13 PM (IST)
सात राज्यों ने किया अखिल भारतीय न्यायिक सेवा के प्रस्ताव का विरोध
सात राज्यों ने किया अखिल भारतीय न्यायिक सेवा के प्रस्ताव का विरोध

नई दिल्ली, प्रेट्र : अखिल भारतीय न्यायिक सेवा (एआइजेएस) के गठन के प्रस्ताव का दो भाजपा शासित प्रदेशों समेत सात राज्यों ने विरोध किया है। निचली न्यायपालिका के लिए अलग कैडर बनाने संबंधी 60 वर्षो से लंबित इस प्रस्ताव को मोदी सरकार आगे बढ़ा रही है।

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कानून मंत्रालय से संबद्ध संसदीय सलाहकार समिति के सदस्यों को मंत्रालय की ओर से जारी नोट के मुताबिक, केंद्र सरकार के प्रस्ताव में बिहार, छत्तीसगढ़, मणिपुर, ओडिशा और उत्तराखंड बड़े बदलाव करना चाहते हैं। जबकि अरुणाचल प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, मेघालय, नगालैंड और पंजाब ने एआइजेएस के गठन का समर्थन ही नहीं किया है। एक अन्य भाजपा शासित राज्य महाराष्ट्र चाहता है कि इसके तहत नियुक्तियां ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट स्तर (प्रथम श्रेणी) पर की जाएं। लेकिन, कानून मंत्रालय को लगता है कि यह संविधान में शामिल सेवा के प्रावधानों के मुताबिक नहीं होगा। उक्त 13 राज्यों के अलावा किसी अन्य राज्य ने इस संबंध में कोई जवाब नहीं दिया है। वहीं, आंध्र प्रदेश, बांबे, दिल्ली, गुजरात, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, मद्रास, पटना और पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने भी इस विचार का समर्थन नहीं किया है।

इस प्रस्ताव पर जो एक बड़ी समस्या है वो यह कि कई राज्य आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) और दीवानी प्रक्रिया संहिता (सीपीसी) के तहत अपने अधिकारों का इस्तेमाल कर रहे हैं। उन्होंने घोषणा की हुई है कि निचली अदालतों में आदेश लिखने समेत सभी कार्यो में स्थानीय भाषा का इस्तेमाल किया जाएगा। लिहाजा तमिलनाडु से चयनित किसी व्यक्ति को उत्तर प्रदेश या बिहार में कार्यवाही के दौरान काफी मुश्किलें पेश आएंगी।

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