जिसे आईआईटी ने नकारा, उसे एमआईटी ने स्वीकारा
प्रतिभा को कोई छिपा नहीं सकता, अगर किसी में प्रतिभा और साहस है तो वो अपना रास्ता खुद चुन लेते हैं और मुकाम हासिल करते हैं।
नई दिल्ली। इंसान के पास अगर सपना और जुनून हो तो वह कुछ भी हासिल कर सकता है। कोई भी ऊंचाई छू सकता है। इस बात का ताजा उदाहरण बनी है मुंबई की 17 वर्षीय मालविका राज जोशी।
मालविका के पास दसवीं या बारहवीं का सर्टिफिकेट तो नहीं है, लेकिन अपनी लगन से उसे अमेरिका के मैसाच्युसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) में दाखिला मिल गया है।
12वीं का सर्टिफिकेट न होने के कारण मालविका को भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) में दाखिले का मौका नहीं मिला था।
यह कहानी है पारंपरिक व्यवस्था के इतर चलने वाली मां और खुद पर भरोसा रखने वाली बेटी की। उन्होंने साबित कर दिया कि योग्यता मार्कशीट से बड़ी होती है। मालविका की कहानी चार साल पहले शुरू हुई। उस वक्त वह आठवीं कक्षा में थी, जब मां सुप्रिया ने उसे स्कूल न भेजने का फैसला किया।
सुप्रिया ने उस पल को याद करते हुए कहा, "मैं उन दिनों एक एनजीओ में काम कर रही थी, जो कैंसर के मरीजों की देखभाल करता था। वहां मैंने आठवीं-नौवीं कक्षा के ऐसे बच्चे देखे जो कैंसर से पीड़ित थे। इस सबने मुझे झकझोर कर रख दिया।
मैंने फैसला किया कि अपनी बेटियों (मालविका और छोटी बेटी राधा) को खुश रखूंगी। मालविका उस वक्त आठवीं में थी। वह पढ़ाई में अच्छी थी, लेकिन मैंने उसे स्कूल न भेजने का फैसला कर लिया। यह आसान नहीं था। भारत में घर बैठे पढ़ाई के बारे में लोग ज्यादा नहीं जानते, लेकिन मैंने तय कर लिया था।"
सुप्रिया बताती हैं कि शुरुआत में मालविका के पिता राज को भी समझाने में मुश्किल हुई। राज इंजीनियर हैं और अपना खुद का काम देखते हैं। सुप्रिया ने कहा, "मैंने एनजीओ की नौकरी छोड़ दी और मालविका के लिए पाठ्यक्रम तैयार किया। घर पर ही पढ़ाई का माहौल बनाया।
मेरे फैसले का असर दिखने लगा था। मालविका पहले से ज्यादा खुश थी और पहले से ज्यादा सीख रही थी। जानकारी हासिल करना उसका जुनून बन गया।"
ओलंपियाड ने पूरा किया सपना
मालविका के लिए एमआईटी का रास्ता इंटरनेशनल ओलंपियाड ऑफ इंफॉर्मेटिक्स ने खोला। इसे प्रोग्रामिंग ओलंपियाड भी कहा जाता है। मालविका ने अपनी लगन से कंप्यूटर साइंस में तीन बार ओलंपियाड का पदक जीता। इनमें दो रजत और एक कांस्य शामिल है।
एमआईटी विभिन्न ओलंपियाड (गणित, भौतिकी या कंप्यूटर) पदक विजेता छात्रों को अपने यहां दाखिला देता है। इसी आधार पर मालविका को यहां से बीएससी करने का मौका मिला। उन्हें एमआईटी की ओर से छात्रवृत्ति भी मिली है।
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