14 साल बाद परिवार से मिली अयोध्या से मुंबई पहुंची पूजा
चाचा से पिता का फोन नंबर लेकर पूजा ने पिता से संपर्क किया। पूजा के वापस आने की खबर पाकर पिता की खुशी का ठिकाना नहीं रहा।
ओमप्रकाश तिवारी, मुंबई। इसे कुदरत का करिश्मा ही कहेंगे कि 11 वर्ष की उम्र में अयोध्या से मुंबई पहुंची एक बच्ची ने 25 वर्ष की उम्र में खुद अयोध्या जाकर अपने परिवार को ढूंढ निकाला। ये कहानी कुछ-कुछ फिल्मी जैसी भी लगती है।
पूजा का परिवार अयोध्या में सरयू नदी के किनारे रहता था। नया घाट के पास ही उसके पिता की फूलों की दुकान थी। वह कैसेट भी बेचते थे। एक दिन पूजा अपने भाई के साथ खेलते-खेलते अयोध्या रेलवे स्टेशन पहुंची और प्लेटफॉर्म पर रुकी एक गाड़ी में चढ़ गई। फिल्म 'बजरंगी भाईजान' की 'मुन्नी' ट्रेन से उतरकर मां से बिछुड़ी थी, तो पूजा ट्रेन पर चढ़कर परिवार से बिछुड़ गई। ट्रेन चल पड़ी। भाई किसी और डिब्बे में, बहन किसी और डिब्बे में। ट्रेन मुंबई पहुंची तो पुलिस को पूजा रोती हुई मिली। पुलिस ने उसे एक अनाथाश्रम में पहुंचा दिया।
पूजा जिस अनाथाश्रम में रहती थी, वह अमेरिका में रहने वाले किसी दाताधर्मी की मदद से चलता था। 2009 में उनका निधन होने के बाद अनाथाश्रम बंद होने की नौबत आ गई। तब वहां रह रही 20-22 लड़कियों को फिर बेघर होना पड़ा। संयोग से तब 17 वर्षीय पूजा को नई मुंबई के ही एक भले परिवार में आश्रय और नौकरी मिल गई। परिवार के मुखिया 41 वर्षीय नितिन गायकवाड़ बताते हैं कि आठ वर्ष और पांच महीने उनके घर में रहने के दौरान पूजा घर के सदस्य की तरह हो गई थी। वह उनकी पत्नी को दीदी और उन्हें जीजू कहने लगी। नितिन के माता-पिता तो उसके मम्मी-पापा बन ही गए थे।
उस परिवार में घुलने-मिलने के बावजूद उसे अक्सर अपने माता-पिता और भाई की याद आती रहती थी। उसे अपने पिता सुबोध वर्मा का नाम याद था। घर के आसपास के दृश्य भी आंखों के सामने घूमते थे। शहर का नाम अयोध्या भी याद था। घर ढूंढने में उसकी मदद करने की गरज से जब नितिन ने उसे इंटरनेट पर पूजा को अयोध्या की कुछ तस्वीरें दिखानी शुरू कीं तो नया घाट का पुल देखते ही पूजा उछल पड़ी। उसने बताया कि इस पुल से कुछ ही दूरी पर उसका घर है। आखिर 25 वर्ष की हो चुकी पूजा से रहा नहीं गया। उसने अयोध्या जाने का फैसला कर लिया।
नितिन बताते हैं कि उन्होंने नवंबर के पहले सप्ताह में पूजा को अयोध्या जाने वाली ट्रेन का तत्काल टिकट निकालकर दिया। संपर्क में बने रहने के लिए मोबाइल फोन दिया। पूजा अयोध्या पहुंची। वहां किसी होटल में अपना सामान रखा और तुरंत अपने घर की खोज में निकल पड़ी। उसे अपना परिवार तो नहीं मिला, लेकिन उसे अपने चाचा का परिवार जरूर मिल गया। दरअसल, भाई के साथ उसके खो जाने के बाद परिवार ने समझा कि पूजा और उसका भाई सरयू नदी में डूब गए होंगे। कुछ वर्ष बाद पूजा की मां का देहांत हो गया। पिता अपनी अयोध्या की संपत्ति बेचकर अपने पुश्तैनी घर गोपालगंज (बिहार) चले गए।
चाचा से पिता का फोन नंबर लेकर पूजा ने पिता से संपर्क किया। पूजा के वापस आने की खबर पाकर पिता की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। वह पूजा को गोपालगंज ले गए। पूजा ने उनकी बात नई मुंबई के उस परिवार से करवाई, जिसमें वह अब तक परिवार के एक सदस्य की तरह रहती आई थी। नितिन से बात करके असीम खुशी में डूबे उसके पिता ने कहा, 'मैं आज बहुत खुश हूं, मुझे मेरी बेटी मिल गई। अब मुझे भगवान से कुछ नहीं चाहिए।' लेकिन, चाहिए कैसे नहीं? पूजा के साथ उसी ट्रेन के किसी डिब्बे में बैठ गया उसका भाई तो अभी लौटना बाकी है न!
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