दिग्गजों के साथ दलों की भी अग्निपरीक्षा
वैसे तो रुहेलखंड के 11 रणक्षेत्रों में 150 योद्धाओं की शौर्य की परीक्षा होनी है, लेकिन इसमें कुछ ऐसे भी महायोद्धा हैं, जिनके साथ उनके दल की भी प्रतिष्ठा भी पूरी शिद्दत से जुड़ी है। ये ऐसे लड़ाके हैं, जिन्होंने कभी अपने राजनीतिक और रणनीतिक कौशल से हवा का रूख बदलने का माद्दा दिखाया तो कभी दूसरी सीटों के
[लोकेश प्रताप सिंह], बरेली। वैसे तो रुहेलखंड के 11 रणक्षेत्रों में 150 योद्धाओं की शौर्य की परीक्षा होनी है, लेकिन इसमें कुछ ऐसे भी महायोद्धा हैं, जिनके साथ उनके दल की भी प्रतिष्ठा भी पूरी शिद्दत से जुड़ी है। ये ऐसे लड़ाके हैं, जिन्होंने कभी अपने राजनीतिक और रणनीतिक कौशल से हवा का रूख बदलने का माद्दा दिखाया तो कभी दूसरी सीटों के प्रत्याशियों को भी संजीवनी दी।
बात शुरू करते हैं बरेली से। कभी भाजपा के पीएम इज वेटिंग नरेंद्र मोदी ने खुद कहा था कि दिल्ली के संतोष के लिए संतोष जरूरी हैं। यह वही संतोष गंगवार हैं, जिन्होंने लगातार छह बार जीत हासिल कर बरेली सीट पर भगवा मुहर चस्पा की। बीते चुनाव में संतोष की हार से पूरा संघ परिवार हतप्रभ रहा। भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री (संगठन) रामलाल एवं विहिप के केंद्रीय मंत्री राजेन्द्र सिंह पंकज का लंबे समय तक बरेली कार्यक्षेत्र रहा है। संगठन के दोनों दिग्गजों का यहां डेरा देखकर यह समझा जा सकता है कि संघ परिवार इस सीट को लेकर किस कदर फिकरमंद है। इस बार मौजूदा कांग्रेस सांसद प्रवीण ऐरन, सपा से आइसा इस्लाम और बसपा के उमेश गौतम से उन्हें चुनौती मिल रही है।
सूबे के खास सियासी खानदान से ताल्लुक रखने वाले सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव के भतीजे धमर्ेंद्र यादव फिर बदायूं से मैदान में हैं। 2004 में मैनपुरी से सांसद रहे धर्मेन्द्र ने 2009 में बदायूं सीट पर आजमाइश की। यहां पर बसपा प्रत्याशी बाहुबली डीपी यादव व कांग्रेस के सलीम शेरवानी के मुकाबले चुनाव तो जीत गए, लेकिन टक्कर तगड़ी रही। हालाकि इस चुनाव में स्थितियां काफी जुदा हैं। यहां सांसद ने खुद विकास के मुद्दे को जनता के आगे रखा। इस बार पुराने दोनों दिग्गज बदायूं का मैदान छोड़कर अलग-बगल की सीटों पर जा चुके हैं। धर्मेन्द्र यादव से यहां भाजपा के वागीश पाठक, बसपा के अकमल खां चमन मुकाबिल हैं। कांग्रेस ने इस सीट पर अपना प्रत्याशी न उतारकर महान दल को समझौते में दे रखी है। भाजपा से टिकट के दावेदार रहे स्वामी पगलानंद अब महान दल प्रत्याशी के रूप में मैदान में हैं। इस सीट को लेकर परिवार की चिंता इसी से समझी जा सकती है कि खुद मुख्यमंत्री अखिलेश यादव तीन बार यहां आकर सभाएं कर चुके हैं। मुलायम सिंह यादव खुद भी सभा कर चुके हैं।
आंवला में पूर्व मंत्री सलीम इकबाल शेरवानी के जरिये कांग्रेस की प्रतिष्ठा दांव पर है। बदायूं से पांच बार सांसद रहे शेरवानी पहली बार आंवला से किस्मत आजमा रहे हैं। इस सीट का समीकरण दुरुस्त करने के लिए उन्होंने महान दल से कांग्रेस का समझौता तक करा दिया। बीते दिनों सोनिया गांधी भी इसी क्षेत्र में आकर दल की चिंता जाहिर कर दी। उन्हें भाजपा के धर्मेन्द्र कश्यप, बसपा की सुनीता शाक्य, सपा के सर्वराज सिंह से तगड़ी टक्कर मिल रही है।
कभी दलीय तो कभी निर्दल प्रत्याशी के रूप में पीलीभीत से पांच बार सांसद रहीं आंवला सांसद मेनका गांधी (भाजपा) ने फिर पुरानी सीट से किस्मत आजमा रही हैं। केंद्र सरकार में कई महत्वपूर्ण विभागों में मंत्री रही गांधी-नेहरू परिवार की छोटी बहू के सामने सपा के बुद्धसेन वर्मा, बसपा के अनीस अहमद व कांग्रेस के संजय कपूर मुकाबिल हैं। अगर 91 की राम लहर छोड़ दें तो मेनका गांधी जब भी पीलीभीत से लड़ीं विजय ही मिली। रामपुर सीट से वैसे तो नसीर अहमद खां सपा प्रत्याशी हैं, लेकिन यहां काबीना मंत्री आजम खां की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। चूंकि यहां से कांग्रेस ने नवाब काजिम अली खां और बसपा ने अकबर हुसैन को मैदान में उतारा है। भाजपा ने पूर्व मंत्री नेपाल सिंह को मैदान में उतारा है। रामपुर के खास सियासी खानदान से ताल्लुक रखने वाली नूरबानो इस बार कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में मुरादाबाद से किस्मत आजमा रही हैं। उन्हें भाजपा के सर्वेश कुमार, सपा से डा. एसटी हसन, बसपा से हाजी मो. याकूब मैदान में हैं। इन दोनों सीटों पर तीन प्रमुख दलों से मुस्लिम प्रत्याशी होने से लड़ाई रोचक हो गई है।