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लोकतंत्र की त्रासदी, जेल से चुनावी खेल

चुनाव और जेल का कोई सीधा ताल्लुक नहीं होता लेकिन भारतीय राजनीति में अक्सर दोनों के बीच रिश्ता स्थापित होता आया है। जेल में रहते हुए चुनाव लड़ा जाता है तो जेल में बंद 'प्रभावशाली', 'ताकतवर' और 'दबंग' लोगों से समर्थन मांगा जाता है। इसे भारतीय लोकतंत्र की त्रासदी ही मानिए लेकिन कई बार चुनावी बयार का रुख

By Edited By: Published: Wed, 16 Apr 2014 09:20 AM (IST)Updated: Wed, 16 Apr 2014 09:41 AM (IST)
लोकतंत्र की त्रासदी, जेल से चुनावी खेल

लखनऊ, [राज बहादुर सिंह]। चुनाव और जेल का कोई सीधा ताल्लुक नहीं होता लेकिन भारतीय राजनीति में अक्सर दोनों के बीच रिश्ता स्थापित होता आया है। जेल में रहते हुए चुनाव लड़ा जाता है तो जेल में बंद 'प्रभावशाली', 'ताकतवर' और 'दबंग' लोगों से समर्थन मांगा जाता है। इसे भारतीय लोकतंत्र की त्रासदी ही मानिए लेकिन कई बार चुनावी बयार का रुख जेल की कोठरी से तय किया जाता है या फिर यूं कहें कि मोड़ दिया जाता है।

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सोलहवीं लोकसभा चुनाव में भी जेल की भूमिका देखी जा सकती है। चुनाव जोर पकड़ ही रहा था कि सहारनपुर से कांग्रेस उम्मीदवार इमरान मसूद 'बोटी-बोटी' के बयान को लेकर जेल पहुंच गए और कुछ दिन रहने के बाद वापस आकर जेल यात्रा को भुनाने में लग गए। पहले से ही जेल में बंद उनके चाचा और पूर्व केन्द्रीय मंत्री अपने बेटे और सपा प्रत्याशी शादान मसूद को जिताने के लिए वहीं से ताने-बाने बुनते रहे।

पूर्वाचल में कई क्षेत्रों में बाहुबलियों की चलती रही है और कुछ खास वर्ग के मतों पर उनका काफी प्रभाव माना जाता है। मसलन कई सालों से जेल में बंद मुख्तार अंसारी पिछले दो विधान सभा चुनाव जेल में रहते हुए ही जीत चुके हैं। जेल से ही उन्होंने वाराणसी में भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ने का ऐलान किया था लेकिन बाद में यह इरादा त्याग दिया। बहरहाल मोदी के खिलाफ न सही लेकिन मुख्तार अंसारी जेल में रहते हुए कौमी एकता दल के प्रत्याशी के तौर पर घोसी सीट से मैदान में उतरेंगे। जाहिर है कि घोसी में बहुत से चुनावी फैसले जेल से ही लिए जाएंगे।

जौनपुर से बसपा सांसद धनंजय सिंह बलात्कार के आरोप में जेल में बंद थे और पार्टी ने उनका टिकट काट दिया था। बहरहाल हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने उनको नामांकन दाखिल करने के लिए एक सप्ताह के लिए जमानत दी थी, जिसे अब शशर्त 20 मई तक के लिए बढ़ा दिया है। सम्भव है कि पर्चा दाखिल करने के बाद वह फिर जेल पहुंच जाएं और वहीं से अपने चुनावी समीकरण फिट करें। हालांकि वह किस दल से लड़ेंगे, यह अभी पूरी तरह निश्चित नहीं है। जेल में बंद डॉन बृजेश सिंह के भतीजे और पूर्व विधायक सुशील कुमार सिंह भाजपा से निराश होने के बावजूद चंदौली से चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं और कहने की आवश्यकता नहीं कि अगर भतीजा मैदान में आया तो फिर चाचा जेल की बैरक से ही उसके लिए जोर लगाएंगे। वैसे खुद चाचा भी जेल में रहते हुए पिछला विधानसभा चुनाव लड़े थे लेकिन कामयाब नहीं हुए थे।

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