आयकर विभाग के रेडार पर ई-कॉमर्स बिजनेस
टैक्स बेस बढ़ाने की कोशिशों में जुटे आयकर विभाग के रडार पर ई-कॉमर्स बिजनेस भी है।
नई दिल्ली। टैक्स बेस बढ़ाने की कोशिशों में जुटे आयकर विभाग के रेडार पर ई-कॉमर्स बिजनेस भी है। विभाग ने अधिकारियों को इन लोकप्रिय ऑनलाइन पोर्टलों पर मिलने वाली सेवाओं से जुड़ी तमाम गतिविधियों पर करीब से नजर रखने को कहा है। राजस्व को बढ़ाने के लिए विभाग हर मुमकिन कोशिश में जुटा हुआ है। यह भी उसी का हिस्सा है।
विभाग ने देश में ऑनलाइन रिटेल कारोबार पर एक आधिकारिक आकलन रिपोर्ट बनाने के बाद इस "बड़े कारोबार" की निगरानी करने का फैसला किया है। यहां सेवाओं से जुड़ी गतिविधियों पर स्रोत पर कर कटौती यानी टीडीएस की वसूली के लिए उसने ऐसा किया है। यह इंटरनेट रिटेल प्लेटफॉर्म पर विशेष सेवाएं प्राप्त करने के लिए फर्मों की ओर से किए जाने वाले भुगतान से ले लिया जाता है।
विभाग की सर्वोच्च नीति निर्धारक इकाई केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) ने चालू वित्त वर्ष में राजस्व संग्रह बढ़ाने को इसके लिए "रणनीतिक कार्ययोजना" तैयार की है। उसने आयकर अधिकारियों से इस कारोबार पर विशेष ध्यान देने के लिए कहा है।
2015-16 के लिए बनाई गई कार्ययोजना के मुताबिक कई संगठित और असंगठित एजेंसियों की विभिन्न वेबसाइटों पर आने वाले विज्ञापन, वेबसाइट बनाने, पेज का अनुवाद, डाटा एंट्री, रिसर्च जैसे कामों के लिए भुगतानों के साथ अन्य कई क्षेत्र हैं, जिनसे टीडीएस श्रेणी के तहत खासा राजस्व अर्जित किया जा सकता है।
एक वरिष्ठ आयकर अधिकारी ने बताया कि कर संग्रह के लिहाज से ई-कॉमर्स बिजनेस काफी नया क्षेत्र है। इस सेक्टर में धन की बड़ी राशि एक हाथ से दूसरे हाथ में जाती है। बेहतर टीडीएस संग्रह के लिए इस लोकप्रिय ऑनलाइन सेक्टर में तमाम संभावनाओं को खंगालने का फैसला किया गया है।
बड़ा है यह कारोबार
इंडस्ट्री के अनुमानों के मुताबिक, 2012 में भारत में ई-कॉमर्स बिजनेस का आकार करीब छह अरब डॉलर का था। 2021 तक इसके 76 अरब डॉलर तक पहुंच जाने की उम्मीद है। 2014-15 में वित्त मंत्रालय की ओर से तैयार इकोनॉमिक सर्वे में कहा गया था कि अगले पांच साल में इस सेक्टर के 50 फीसद की रफ्तार से बढ़ने की उम्मीद है।