गोल्ड लोन देकर बुरे फंसे बैंक
नई दिल्ली [जयप्रकाश रंजन]। पिछले तीन-चार वर्षो से आंख मूंद कर सोने के बदले कर्ज बांटने में जुटे बैंकों के पैरों के नीचे से जमीन खिसक चुकी है। पांच महीनों में सोने की कीमत में लगभग 25 फीसद की कमी को देखते हुए सरकारी और निजी क्षेत्र के बैंक अपनी तिजोरी में जमा सोने की कीमत का आकलन करने में जुटे हैं। दबे स्वर में बैंक यह स्वीकार करने लगे हैं कि सोने के भाव में गिरावट से उनके फंसे कर्ज की समस्या और बढ़ सकती है।
नई दिल्ली [जयप्रकाश रंजन]। पिछले तीन-चार वर्षो से आंख मूंद कर सोने के बदले कर्ज बांटने में जुटे बैंकों के पैरों के नीचे से जमीन खिसक चुकी है। पांच महीनों में सोने की कीमत में लगभग 25 फीसद की कमी को देखते हुए सरकारी और निजी क्षेत्र के बैंक अपनी तिजोरी में जमा सोने की कीमत का आकलन करने में जुटे हैं। दबे स्वर में बैंक यह स्वीकार करने लगे हैं कि सोने के भाव में गिरावट से उनके फंसे कर्ज की समस्या और बढ़ सकती है।
रिजर्व बैंक के ताजा आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2009 में बैंकों की तरफ से वितरित कुल लोन में सोने के बदले कर्ज की हिस्सेदारी महज एक फीसद थी। यह वर्ष 2012 में बढ़ कर 2.4 फीसद हो गई है। अगर बैंकों ने इस पर रोक नहीं लगाई तो वर्ष 2016 तक कुल कर्ज में यह हिस्सेदारी बढ़कर सात फीसद तक हो जाएगी। इन चार वर्षो में बैंकों की तरफ से वितरित कुल कर्ज की राशि में औसतन 16-17 फीसद की वृद्धि हुई है। लेकिन गोल्ड लोन देने की रफ्तार में औसतन 70-80 फीसद की वृद्धि हुई है।
जानकारों के मुताबिक बैंकों के लिए सबसे ज्यादा मुसीबत पिछले दो वर्षो [2011 और 2012] में वितरित कर्ज बन सकते हैं। इस दौरान सोने की कीमत 30 से 32 हजार रुपये प्रति दस ग्राम रही है। आम तौर पर बैंक जमा सोने की कीमत का 70 से 80 फीसद के बराबर राशि बतौर कर्ज दे रहे थे। अभी सोने की कीमत 26,350 रुपये प्रति दस ग्राम है। इस तरह से देखा जाए तो बैंकों ने हाल के महीनों में सोने की जिस कीमत के बदले कर्ज दिया है, वास्तविक कीमत उससे कम हो चुकी है। अगर सोने की कीमत में थोड़ी गिरावट और हो गई तो बैंकों के गोल्ड लोन पोर्टफोलियो का बहुत बड़ा हिस्सा प्रभावित हो जाएगा।
सोने के बदले सबसे ज्यादा कर्ज [करीब 35,000 करोड़ रुपये] भारतीय स्टेट बैंक [एसबीआइ] ने दिया है। एसबीआइ ने आधिकारिक तौर पर मौजूदा गिरावट से किसी नकारात्मक असर पड़ने की संभावना से इन्कार किया है। लेकिन कॉरपोरेशन बैंक, विजया बैंक, इलाहाबाद बैंक जैसे छोटे पूंजी आधार, मगर ज्यादा फंसे कर्जे [एनपीए] वाले बैंकों के लिए स्थिति बिगड़ सकती है। सरकारी व निजी बैंकों के मुकाबले सोने के बदले कर्ज बांट रही गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों [एनबीएफसी] की स्थिति ज्यादा खराब है। मुथूट फाइनेंस, मणप्पुरम गोल्ड फाइनेंस जैसी एनबीएफसी जो जमकर सोने के बदले कर्ज बांट रही थी, बुरी तरह फंस चुकी हैं। शेयर बाजार में इनकी कीमत लगातार गिर रही है। रिजर्व बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक कुछ एनबीएसपी के कुल वितरित कर्ज में सोने के बदले कर्ज की हिस्सेदारी 40 फीसद तक है।