ग्रीस के वित्त मंत्री ने दिया इस्तीफा, जानिए ग्रीस संकट का क्या होगा भारत पर असर
ग्रीस की जनता ने कर्जदाताओं (यूरोपियन सेंट्रल बैंक, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और यूरोपिय आयोग) की शर्तों को नकारते हुए ‘नो’ के पक्ष में मतदान किया। लेकिन बड़े यूरोपिय देशों को दी गई ग्रीस की जनता की इस चुनौती का खामियाजा उसे यूरो जोन से बाहर होने के रूप में भुगतना
एथेंस। ग्रीस की जनता के द्वारा कर्जदाताओं की शर्तों को खारिज करने के बाद ग्रीस के वित्त मंत्री यानिस वारफाकिफ ने इस्तीफा दे दिया है। यूरपिय देशों के साथ समझौते को लेकर ग्रीस के वित्त मंत्री पर कड़ा रूख अपनाने का आरोप लगता रहा है। अपने इस्तीफे के बाद वलारफाकिफ ने कहा कि वे जानते हैं कि यूरोपिय देश उनके बारे में क्या राय रखते हैं। वे इसलिए इस्तीफा दे रहे हैं ताकि प्रधानमंत्री इस मसले को अपने तरीके से सुलझाएं और यूरोपिय देशों के साथ किसी समझौते तक पहुंच सकें। उन्होंने कहा कि जनमत संग्रह के जो नतीजे आए हैं उसका कड़ा परिणाम ग्रीस की जनता को भुगतना पड़ेगा। वे इसिलिए पद छोड़ रहे हैं कि ताकि समझौते की कोई सूरत निकाली जा सके।
ग्रीस संकट से यूरोप में भारी उथल पुथल की आशंका जताई है। माना जा रहा है कि यह संकट यूरोप तक सीमित नहीं होगा बल्कि दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाएं इसके प्रभाव में आएंगी। यही कारण है भारत में वित्त मंत्रालय से लेकर रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की तरफ से लगातार यह कहा जा रहा है कि भारत में इस संकट का आंशिक असर होगा। लेकिन यह तय है कि स्थिति चिंताजनक है और भारत पर इसके पड़ने वाले असर के बारे में फिलहाल मुकम्मल रूप से कुछ कह पाना मुश्किल है।
भारत के मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम ने कहा है कि भारत के वित्त बाजार में इस संकट से अस्थिरता आने की संभावना है, लेकिन भारत के पास पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार है। इसलिए दूसरे देशों के मुकाबले भारत पर इसका असर काफी कम होगा। हालांकि विदशी निवेशकों के पैसा निकालने के कारण रुपये की विनिमय दर प्रभावित होगी। वहीं, सरकार और रिजर्व बैंक स्थिति पर लगातार नजर रख रहे हैं और संकट से निपटने की रणनीतियों में व्यस्त हैं। आइए जानते हैं कि इस संकट का भारत पर क्या असर हो सकता है।
शेयर बाजार में भय का माहौल
ग्रीस के संकट से भारतीय बाजार में भय का माहौल है तथा शेयर तथा बांडों में धड़ाधड़ बिकवाली जारी है। वहीं, कुछ विशेषज्ञ इसका कारण जून में कमजोर पड़े मॉनसून को भी मान रहे हैं। माना जा रहा है कि ग्रीस संकट के असर से शेयर बाजार में भारी गिरावट हो सकती है।
निवेश पर होगा असर
ग्रीस संकट से निवेश पर असर पड़ने की संभावना है और विदेशी निवेशक भारतीय बाजार से पैसा निकाल सकते हैं। भारतीय शेयर बाजार में विदेशी निवेशकों की हिस्सेदारी 25 फीसद है। लेकिन भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्था और चीन की अस्थिरता को देखते हुए कम ही निवेशक होंगे जो भारतीय बाजार से पैसा निकालेंगे। हालांकि वित्त सचिव राजीव मेहर्षि का कहना है कि निवेशकों के रूख पर सरकार रिजर्व बैंक के साथ मिलकर नजर रख रही है और जरूरत पड़ने पर कई कदम उठाए जाएंगे।
रुपये की विनिमय दर पर असर
वहीं, इस संकट का असर रुपये की विनिमय दर पर पड़ने की संभावना है। यूरो के कमजोर होने से डॉलर में मजबूती आएगी, जिसके कारण डॉलर के मुकाबले रुपया और कमजोर होगा। हालांकि इस हफ्ते डॉलर के मुकाबले रुपये का रुख मजबूती का रहा है। रिजर्व बैंक ने कहा है कि भारत के पास पर्याप्त विदेशी मुद्रा का भंडार है और मुद्रा की विनिमय दर के किसी भी संकट से निपटने के लिए भारत पूरी तरह तैयार है। फिलहाल हमारा विदेशी मुद्रा भंडार 355 बिलियन डॉलर है जो अब तक का सबसे बड़ा भंडार है।
टूटेगी ब्याज दरों में कटौती की आस
आरबीआई फिलहाल ग्रीस संकट को देखते हुए ब्याज दरों में कटौती का प्रस्ताव टाल सकता है। खासतौर से बेहतर मॉनसून की संभावना और काबू में आ रही मुद्रास्फिति को देखते हुए यह उम्मीद थी की अगले महीने आरबीआई ब्याज दरों में कटौती का एलान कर सकता है। लेकिन अब इसकी संभावना नहीं दिख रही।
सॉफ्टवेयर और इंजीनियरिंग निर्यात पर होगा असर
इस संकट का असर भारत से सॉफ्टवेयर और इंजीनियरिंग निर्यात पर हो सकता है। सोमवार को सरकार और उद्योग मंडलों की तरफ से यह चेतावनी जारी की गई है। भारतीय कंपनियों के इंजिनियरिंग प्रॉडक्ट की सबसे बड़ा मार्केट यूरोपीय यूनियन है। विशेषज्ञों के मुताबिक ग्रीस के अलावा इंगलैंड, इटली, टर्की और फ्रांस जैसे देशों को किए जाने वाले निर्यात पर भी इस संकट का असर होगा। हालांकि यह असर कुछ समय के लिए ही होगा जल्दी ही बाजार में स्थिरता आएगी। इस नुकसान की भरपाई भारत के धरेलू बाजार से भी होने की संभावना है।
ग्रीस में रहनेवाले 12,000 भारतीय परेशानी में
ग्रीस में रहने वाले 12000 भारतीय जनमत संग्रह के बाद ग्रीस के यूरो जोन से निकलने को तय मानकर परेशानी में हैं। जनमत संग्रह के बाद आगे की रणनीति तय करने के लिए मंगलवार को यूरोजोन के देशों के वित्तमंत्री बैठक करने जा रहे हैं। ग्रीस के प्रधानमंत्री सिप्रास ने कहा, 'हम भी इस मीटिंग में भाग लेगें। हम चाहते हैं कि दिक्कतों के बाद भी हमारी बैंकिंग व्यवस्था में यूरो जोन यकीन रखे, इसलिए हम इस मीटिंग में भाग लेंगे।' ऐसे में ग्रीस की अपनी करंसी को लेकर कई तरह से के सवाल उठने लगे हैं। सबसे बड़ा सवाल ग्रीस की करंसी की वेल्यु का है। फिलहाल ग्रीस में यूरो चलता है जिसकी भारतीय रुपए के हिसाब से कीमत करीब 70 रुपये है लेकिन ग्रीस के यूरोजोन से निकलने के बाद ग्रीस की अपनी करंसी कब आएगी इसकी वेल्यु क्या होगी। इस करंसी का आकलन कैसे होगा इसे लेकर ढेरों सवाल ग्रीस में रह रहे भारतीयों और भारत में उनके परिजनों को परेशान कर रहे हैं।
क्या है ग्रीस संकट
ग्रीस की जनता ने कर्जदाताओं (यूरोपियन सेंट्रल बैंक, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और यूरोपिय आयोग) की शर्तों को नकारते हुए ‘नो’ के पक्ष में मतदान किया। लेकिन बड़े यूरोपिय देशों को दी गई ग्रीस की जनता की इस चुनौती का खामियाजा उसे यूरो जोन से बाहर होने के रूप में भुगतना पड़ेगा।
ग्रीस पर मार्च 2015 तक 312.7 अरब यूरो का कर्ज है, जो कि ग्रीस की अर्थव्यवस्ता का 174 फीसद है। लेकिन फिलहाल ग्रीस को आईएमएफ से लिए गए कर्ज में से 1.5 बिलियन यूरो वापस करना था, जिसे समय पर नहीं लौटाया गया। इसके बाद यूरोपिय देशों ने ग्रीस को बेलआउट पैकेज देने को लेकर कई शर्ते रखी थी।
इसे लेकर ग्रीस ने अपने यहां जनमत संग्रह कराया। इस जनमत संग्रह में 1.1 करोड की आबादी वाले देश ग्रीस के 62 फीसद लोगों ने यूरोपिय देशों के बेलआउट पैकेज को नकारते हुए, कर्ज नहीं चुकाने और कर्ज की शर्तों में बदलाव के लिए मतदान किया।
जनमत संग्रह के बाद ग्रीस ने यूरोज़ोन को बड़े नुक़सान की चेतावनी दी है। ग्रीस के वित्त मंत्री यानिस वारूफाकिस ने चेताया है कि 'अगर उनके देश को मदद नहीं मिली और देश दिवालिया हुआ तो यूरोज़ोन के अन्य देशों को एक हज़ार अरब यूरो का नुकसान होगा। हमें बैंक बंद करने के लिए बाध्य क्यों किया गया? यूरोपीय संघ के नेता ग्रीस के साथ जो कर रहे हैं, वो चरमपंथ के समान है।'
हालांकि, यूरो जोन के देशों का कहना है कि इससे उन पर कोई खास असर नहीं होगा, क्योंकि यह उनकी संयुक्त अर्थव्यवस्था का मात्र 2 फीसद है।
क्या है ग्रीस के कर्जदाताओं की शर्तें
ग्रीस के कर्जदाता चाहते है कि ग्रीस अपने देश में वैट की नई प्रक्रिया लागू करे, जिसके तहत अधिकांश वस्तुओं पर 23% वैट लागू किया जाए। खाद्य पदार्थों, बिजली और पानी पर 13% वैट, दवा, पुस्तकों पर 6% वैट लागू किया जाए और रिटायरमेंट की उम्र 70 साल से घटाकर 67 साल की जाए।
इसके अलावा वे यह भी चाहते हैं कि ग्रीस अपने यहां सरकारी कर्मचारियों की छंटनी कर खर्चों में कटौती करे। कर्जदाता देशों के मुताबिक ग्रीस सरकार को सार्वजनिक सुविधाओं मसलन स्वास्थ्य सुविधाएं, परिवहन सुविधाएं इत्यादि में कटौती करे और कर्जदाताओं की कर्ज और ब्याज चुकाए। लेकिन ग्रीस की जनता फिलहाल कर्ज के बोझ तले इन असुविधाओं को स्वीकार करने के मूड में नहीं है।
क्या चाहता है ग्रीस
ग्रीस चाहता है कि यूरोपियन सेंट्रल बैंक, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और यूरोपीय आयोग ग्रीस को दिए गए कर्ज का 30 फीसद हिस्सा यानी 240 अरब यूरो की रकम को माफ करे। इसके अलावा ग्रीस चाहता है कि उसे कर्ज के भुगतान के लिए 20 साल का वक्त दिया जाए क्योंकि उसकी अर्थव्यवस्था फिलहाल अच्छी स्थिति में नहीं है।