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एफटीए को लेकर भारत और ईयू के बीच तनाव बढ़ा

भारत और यूरोपीय संघ के बीच हुई वार्ता ने दोनों पक्षों के रिश्तों में नई गर्माहट तो भर दी है लेकिन एफटीए को लेकर फिलहाल कोई राह निकलती नहीं दिख रही है।

By Sanjeev TiwariEdited By: Published: Mon, 02 May 2016 10:28 PM (IST)Updated: Mon, 02 May 2016 10:49 PM (IST)
एफटीए को लेकर भारत और ईयू के बीच तनाव बढ़ा

जयप्रकाश रंजन, ब्रसेल्स। चार वर्षों के इंतजार के बाद भारत और यूरोपीय संघ के बीच हुई शीर्ष स्तरीय वार्ता ने दोनों पक्षों के रिश्तों में नई गर्माहट तो भर दी है लेकिन मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) को लेकर फिलहाल कोई राह निकलती नहीं दिख रही है।

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दोनों पक्ष अपने-अपने एजेंडे से टस से मस होने को तैयार नहीं है। वैसे भारत और यूरोपीय संघ के प्रतिनिधियों के बीच इस बारे में एक बातचीत का दौर सितंबर, 2016 में होने के आसार हैं लेकिन जिस तरह से दोनों तरफ से अपने एजेंडे पर अड़े होने की बात हो रही है, उससे निकट भविष्य में समझौता होने की गुंजाइश कम ही है।

खासतौर पर भारत किसी भी सूरत में आयातित यूरोपीय कारों पर आयात शुल्क घटाकर अपने फलते-फूलते घरेलू ऑटोमोबाइल उद्योग को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहता। यह एफटीए की राह में सबसे बड़ी बाधा बनकर उभरा है।

यूरोपीय संघ के महानिदेशक (व्यापार) के प्रवक्ता डेनियल रोसारियो ने इस बारे में भारत के रवैये पर निराशा जताते हुए कहते हैं कि मुक्त व्यापार समझौते में हमेशा ज्यादा वक्त लगता है लेकिन भारत और यूरोपीय संघ के बीच इस बारे में सिर्फ मुलाकात के लिए मुलाकात नहीं होनी चाहिए। वह साफ तौर पर कहते हैं कि भारत को ऐसे संकेत देने होंगे कि वह समझौता करने को तैयार है। लेकिन मुझे लगता है कि भारत फिलहाल आगे बढ़ने को तैयार नहीं है। यूरोपीय संघ के एक अन्य वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि भारत अभी भी एक खुली अर्थव्यवस्था की तरह काम नहीं कर रहा। भारत सरकार का यह रवैया मुक्त व्यापार जैसे समझौते में सबसे अहम बाधा है।

दूसरी तरफ भारतीय पक्ष ईयू के साथ एफटीए (इसे दोनों देशों ने द्विपक्षीय व्यापार व निवेश समझौते यानी बीटीआइए का नाम दिया है) में देरी के लिए यूरोपीय संघ को जिम्मेदार मान रहा है। वाणिज्य मंत्री निर्मला सीतारमण ने रविवार को भारत में एक कार्यक्रम में कहा है कि व्यापार समझौते में देरी की वजह यह है कि ईयू उसमें खास रुचि नहीं दिखा रहा। भारत की तरफ से वार्ता शुरू करने का प्रस्ताव भेजा गया है लेकिन अभी तक ईयू की तरफ से उसका कोई जबाव नहीं आया है।

साफ है कि दोनों पक्ष एक-दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं। यही वजह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और यूरोपीय कमीशन के प्रेसीडेंट जीन क्लाउडे जंकर और यूरोपीय काउंसिल के प्रेसीडेंट डोनाल्ड टस्क के बीच इस साल 30 मार्च को हुई शिखर वार्ता के बाद जारी संयुक्त बयान में एफटीए को लेकर सिर्फ एक पंक्ति लिखी हुई थी।

एफटीए नहीं होने से नुकसान

वाणिज्य मंत्रालय भले ही इस मुद्दे पर एकमत न हो लेकिन सरकार को सलाह देने वाली संस्था नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत का कहना है कि भारत को ईयू के साथ एफटीए करने में अब देरी नहीं करनी चाहिए। अगर भारत देरी करेगा तो वह घाटे में रहेगा क्योंकि ईयू दूसरे देशों के साथ व्यापार समझौते पर तेजी से आगे बढ़ रहा है। हाल ही में ईयू और वियतनाम में एफटीए पर वार्ता पूरी हो गई है।

कनाडा के साथ भी ऐसा ही हो रहा है। इसके अलावा अमेरिका के साथ भी टीटीआइपी नाम से अलग समझौता हो रहा है। इन देशों की कंपनियां ईयू के बाजार में हावी हो सकती हैं।


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