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गन्ना किसानों पर पड़ेगी दोहरी मार

केंद्र के हजारों करोड़ रुपये राहत पैकेज के बावजूद गन्ना किसानों की मुश्किलें सुलझने के बजाए और उलझ गई हैं। चालू पेराई सीजन में गन्ना किसानों का हजारों करोड़ रुपये का भुगतान अभी तक मिलों ने नहीं किया है। वहीं, पहली अक्टूबर से शुरू हो रहे सीजन में पेराई के

By Shashi Bhushan KumarEdited By: Published: Sat, 19 Sep 2015 08:42 AM (IST)Updated: Sat, 19 Sep 2015 08:48 AM (IST)
गन्ना किसानों पर पड़ेगी दोहरी मार

सुरेंद्र प्रसाद सिंह, नई दिल्ली। केंद्र के हजारों करोड़ रुपये राहत पैकेज के बावजूद गन्ना किसानों की मुश्किलें सुलझने के बजाए और उलझ गई हैं। चालू पेराई सीजन में गन्ना किसानों का हजारों करोड़ रुपये का भुगतान अभी तक मिलों ने नहीं किया है। वहीं, पहली अक्टूबर से शुरू हो रहे सीजन में पेराई के लिए मिलें तैयार नहीं हैं। उत्तर प्रदेश के आधा दर्जन उद्योग समूहों ने चीनी मिलों को बंद करने के लिए सरकार को नोटिस भेज दिया है। इससे गन्ना किसानों पर दोहरी मार पड़ने की आशंका बढ़ गई है।

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मांग व आपूर्ति का संतुलन बिगड़ने और अंतरराष्ट्रीय बाजार में चीनी की कीमतें धराशायी होने की वजह से चीनी उद्योग भारी संकट में है। चीनी उद्योग के हालात पिछले दो साल में ज्यादा बिगड़े हैं। नतीजतन मिलों ने गन्ना किसानों का भुगतान रोक लिया। चालू पेराई सीजन के मात्र 20 दिन और बचे हैं, लेकिन मिलों पर गन्ना भुगतान का 14 हजार करोड़ रुपये बकाया है।

गन्ना किसानों की माली हालत बिगड़ रही है। किसानों का भुगतान कराने के लिए केंद्र सरकार ने चीनी मिलों को 6000 करोड़ रुपये का ब्याज मुक्त कर्ज उपलब्ध कराया गया है। इस भारी भरकम पैकेज से न तो मिलों को राहत मिली और न ही गन्ना किसानों को।

उत्तर प्रदेश सरकार ने अपनी ओर से प्रति क्विंटल गन्ने पर 40 रुपये की सब्सिडी घोषित कर 2800 करोड़ रुपये का लाभ मिलों को दिया, जिसका कोई असर किसानों के भुगतान पर नहीं पड़ा है। कमोबेश यही हालत महाराष्ट्र, कर्नाटक, पंजाब, हरियाणा और उत्तराखंड के गन्ना किसानों की भी है।

उत्तर प्रदेश में गन्ना क्षेत्र आरक्षण के लिए आयोजित बैठक का भी चीनी मिल मालिकों ने बहिष्कार किया है। पिछले कुछ दिनों में अलग-अलग क्षेत्रों की तीन बैठकें हुई, लेकिन मिल मालिक अथवा उनके प्रतिनिधि नहीं पहुंचे। हालांकि इस मुद्दे पर किसान जागृति मंच के संयोजक सुधीर पंवार ने कहा कि केंद्र सरकार की दीर्घकालिक नीति होनी चाहिए, जिसमें चीनी बाजार में केंद्र सरकार का सीधा हस्तक्षेप होना चाहिए।

उनका कहना है कि 65 फीसद घरेलू खपत वाली चीनी का उपयोग बड़े औद्योगिक उपभोक्ता करते हैं। चीनी मूल्य के घटने का सबसे अधिक फायदा उन्हें ही मिलता है। सरकार की रियायतों का लाभ भी उन्हें ही प्राप्त होता है। चीनी की उत्पादन लागत और बिक्री मूल्य में अंतर के बगैर चीनी उद्योग का भला होने वाला नहीं है।

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