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मेक इन इंडिया में बढ़ेगी एसईजेड की भूमिका

आर्थिक विकास की रफ्तार बढ़ाने के लिए सरकार ने अपनी योजनाओं और नीतियों को एक दूसरे से जोड़कर उसका लाभ उठाने की योजना बनायी है। इसके तहत मेक इन इंडिया और एसईजेड को पैकेज नीति के रूप में देख रही है।

By Rajesh KumarEdited By: Published: Sat, 09 Apr 2016 08:24 PM (IST)Updated: Sat, 09 Apr 2016 11:55 PM (IST)
मेक इन इंडिया में बढ़ेगी एसईजेड की भूमिका

नितिन प्रधान, नई दिल्ली। आर्थिक विकास की रफ्तार बढ़ाने के लिए सरकार ने अपनी योजनाओं और नीतियों को एक दूसरे से जोड़कर उसका लाभ उठाने की योजना बनायी है। इसके तहत मेक इन इंडिया और एसईजेड को पैकेज नीति के रूप में देख रही है। इसका लाभ यह होगा कि न केवल मेक इन इंडिया को बल मिलेगा बल्कि सुप्त अवस्था में पड़े एसईजेड को भी फिर से पुनर्जीवित किया जा सकेगा।

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दरअसल, सरकार मेक इन इंडिया को एसईजेड से पूरी तरह जोड़ कर देख रही है। मुख्यत: निर्यात को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से शुरू किये गए एसईजेड को मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र से जोड़कर उनका संपूर्ण लाभ लेने की कोशिश सरकार कर रही है। इसके तहत मेक इन इंडिया के तहत मैन्यूफैक्चरिंग के क्षेत्र में प्रस्तावित नई इकाइयों को एसईजेड में स्थापित करने का विचार है।

वाणिज्य व उद्योग मंत्री निर्मला सीतारमण ने दैनिक जागरण के साथ बातचीत में कहा कि सही मायनों में निर्यात के मामले में आज भी एसईजेड बेहतरीन काम कर रहे हैैं। लेकिन उन्हें केवल निर्यात योग्य इकाइयों तक सीमित करने से उनके पास उपलब्ध विशाल लैैंड बैैंक का पूरा लाभ नहीं उठाया जा सका है। मेक इन इंडिया के तहत लगने वाली इकाइयों को इस जमीन का फायदा मिल सकता है।

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हाल ही में बोर्ड आफ ट्रेड की बैठक में भी एसईजेड के भरपूर इस्तेमाल पर विस्तार से चर्चा की गई थी। बैठक में एसईजेड को पुनर्जीवित करने को लेकर फैसला भी हुआ था। इसी कड़ी में अब मेक इन इंडिया के साथ एसईजेड को जोडऩे का काम शुरू किया जा रहा है। वाणिज्य व उद्योग मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक नई औद्योगिक इकाइयों को एसईजेड में लगाने की अनुमति देने से कंपनियों के लिए जमीन अधिग्र्रहण की समस्या भी काफी हद तक कम हो जाएगी।

पहले ही मोदी सरकार एसईजेड में गैर मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र में इकाइयों के विस्तार को अनुमति देकर इनके व्यापक उपयोग का रास्ता खोल चुकी है। मंत्रालय की राय है कि एसईजेड में नई इकाइयों को स्थापित कर उन्हें निर्यात और घरेलू मैन्यूफैक्चरिंग दोनों नियमों के दायरे में शामिल किया जा सकता है। मैन्यूफैक्चरिंग इकाई से होने वाले निर्यात की मात्रा पर निर्यात लाभ मिले और घरेलू बाजार के लिए होने वाले उत्पादन पर उत्पाद शुल्क लगाया जा सकता है। हालांकि अभी इस पर कोई अंतिम फैसला नहीं हुआ है। लेकिन यदि ऐसा होता है तो न केवल एसईजेड में खाली पड़ी जमीन का इस्तेमाल हो पाएगा बल्कि मेक इन इंडिया के तहत मैन्यूफैक्चरिंग को बढ़ावा देने की सरकार की कोशिश भी सफल हो सकेगी।

मेक इन इंडिया की घोषणा के बाद चीन से मोबाइल कंपनियों के अलावा ट्रक निर्माण, इलेक्ट्रानिक्स और कैमिकल क्षेत्र में भी सरकार को कई प्रस्ताव मिले हैैं। छोटे ट्रक बनाने वाली चीन की एक कंपनी का प्रस्ताव पुणे के पास प्लांट लगाने का है।


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