शेयर बाजार में 23 फीसदी रिटर्न, दिग्गज शेयरों में दोगुना हुआ पैसा
वित्त वर्ष 2014-15 आज समाप्त होने को है और कल 1 अप्रैल 2015 से वित्त वर्ष 2016 की शुरुआत हो जाएगी। बाजार के लिहाज से वित्त वर्ष 2015 काफी अच्छा रहा है। इस वित्त वर्ष में सेंसेक्स ने 29000 के स्तर को पार किया, तो निफ्टी ने भी 9000 से
नई दिल्ली। वित्त वर्ष 2014-15 आज समाप्त होने को है और कल 1 अप्रैल 2015 से वित्त वर्ष 2016 की शुरुआत हो जाएगी। बाजार के लिहाज से वित्त वर्ष 2015 काफी अच्छा रहा है। इस वित्त वर्ष में सेंसेक्स ने 29000 के स्तर को पार किया, तो निफ्टी ने भी 9000 से ज्यादा की छलांग लगाई।
शेयर मार्केट की इस उड़ान में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बनी एनडीए सरकार और उसकी नीतियों का बहुत बड़ा योगदान है। पिछली सरकार के समय पॉलिसी पैरालिसिस की स्थिति थी और निवेशकों का भरोसा डिगा हुआ था। लेकिन भारी बहुमत से चुनी गई नई सरकार ने निवेशकों का भरोसा वापस लाने में बड़ी भूमिका निभाई।
अब अगले वित्त वर्ष 2015-16 के लिए विशेषज्ञों का अनुमान है कि लंबी अवधि में शेयर बाजार अभी और बड़ी छलांग लगाने वाला है। हालांकि छोटी अवधि में अधिक बढ़ोतरी की संभावना नहीं है। सरकार ने अभी तक अपनी विदेश व्यापार कार्यनीति को जारी नहीं किया है। शेयर बाजार सरकार की नीति के इंतजार में है ताकि अगले पांच सालों की तस्वीर साफ हो सके कि सरकार किस दिशा में कदम उठाने वाली है।
यूएस फेड रिजर्व की ब्याज दरों की नीति का असर भारतीय बाजारों पर भी
यूएस फेड रिजर्व के द्वारा इस साल ब्याज दरों में बढ़ोतरी नहीं किए जाने का असर विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) पर हुआ है, जो भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्था में ज्यादा निवेश करना पसंद कर रहे हैं। हालांकि आगे चलकर अमेरिका में ब्याज दरों में बढ़ोतरी की संभावना है। इसके बावजूद बैंक ऑफ अमेरिका मेरिन लिंच ने 2018 तक सेंसेक्स के 54000 तक पहुंचने का लक्ष्य रखा है। एफआईआई के माध्यम से वित्त वर्ष 2014-2015 में 108,394.93 करोड़ रुपए का निवेश भारतीय शेयर बाजार को मिला है। जो कि किसी भी वित्त वर्ष में अभी तक का सबसे ज्यादा निवेश है। वहीं में डेट मार्केट में भी इस साल 162,631.24 करोड़ रुपए का निवेश हुआ जो कि भारत के पूंजी बाजार में अब तक का सबसे बड़ा निवेश है। वहीं, क्रेडिट सुइस की रिपोर्ट के मुताबिक एफआईआई निवेशकों के निवेश में धीमेपन के बावजूद भी बाजार में तेजी बरकरार रहने का अनुमान है। वहीं, अगले दो सालों में भारतीय शेयर बाजार में 25-30 फीसदी का रिटर्न मिलने का अनुमान लगाया गया है।
कहां-कहां मिला फायदा
वित्त वर्ष 2014-2015 में सेंसेक्स ने 22.7 फीसदी का रिटर्न दिया, तो निफ्टी में 24.5 फीसदी की उछाल दर्ज की गई है। मिडकैप इंडेक्स में 48 फीसदी और स्मॉलकैप इंडेक्स में 47.6 फीसदी की जोरदार मजबूती आई है। आंकड़ों पर नजर डाले तो सेंसेक्स और निफ्टी में शामिल शेयरों से ज्यादा का रिटर्न मिडकैप शेयरों ने दिया है।
फार्मा इंडेक्स 67 फीसदी, बैंक निफ्टी 44 फीसदी, ऑटो इंडेक्स 45 फीसदी, आईटी 30 फीसदी, एफएमसीजी 11 फीसदी, रियल्टी इंडेक्स 14 फीसदी चढ़ा है। वहीं मेटल -5 फीसदी, एनर्जी -0.50% टूटा है। मौजूदा वित्त वर्ष में 2015 में ल्यूपिन 110 फीसदी, यस बैंक 97 फीसदी, एक्सिस बैंक 87 फीसदी, मारुति सुजुकी 83 फीसदी, सिप्ला 81 फीसदी, सन फार्मा 76 फीसदी, इंडसइंड बैंक 75 फीसदी, कोटक महिंद्रा बैंक 66 फीसदी, बीपीसीएल 63 फीसदी और टेक महिंद्रा 44 फीसदी तक उछले हैं।
वित्त वर्ष 2015 में केर्न इंडिया 35 फीसदी, टाटा स्टील 20 फीसदी, रिलायंस इंडस्ट्रीज 13 फीसदी, टाटा पावर 12 फीसदी, एनएमडीसी 10 फीसदी, हिंडाल्को 5.5 फीसदी और ओएनजीसी 4.3 फीसदी तक लुढ़के हैं।
वहीं, आने वाले दिनों में बाजार की तेजी में बैंकिंग और फाइनेंशियल शेयरों का सबसे ज्यादा योगदान रहने वाला है। बैंक इंडेक्स में 18-20 फीसदी के रिटर्न की उम्मीद है। आईटी सेक्टर पर तेजी का नजरिया है और इंफ्रा शेयरों में बेहतरीन ग्रोथ की उम्मीद है। साथ ही आगे भी मिडकैप शेयर आउटपरफॉर्म करेंगे।
डॉलर की मांग बढ़ने से रुपये में गिरावट
पिछले दिनों रुपए में गिरावट देखने को मिली, जिसका कारण यह है कि वित्त वर्ष खत्म होने से पहले डॉलर की मांग में एकाएक इजाफा हो गया। वित्त वर्ष खत्म होने से पहले शार्ट टर्म के लिए निवेश करने वाले पीई निवेशक अपना पैसा बाजार से खींच लेते हैं, जिसकी वजह से डॉलर की मांग में एकाएक इजाफा हो जाता है। लेकिन अनुमान है कि आने वाले दिनों में रुपया मजबूत होगा और 61.50 से 62.50 के बीच रहेगा।
कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट से मिला फायदा
कच्चे तेल की कीमतों में पिछले एक साल में लगभग 60 डॉलर प्रति बैरल की गिरावट आई है। इस गिरावट से भारतीय अर्थव्यवस्था को काफी सहारा मिला है। कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट से सरकार को बजट और राजस्व दोनों में राहत मिली है। इससे महंगाई, चालू खाता घाटा और राजकोषीय घाटे को कम करने में सरकार को काफी सहारा मिला है। कच्चे तेली की कीमतों में 10 डॉलर की गिरावट से चालू खाता घाटे पर जीडीपी के 0.5 फीसदी के बराबर असर पड़ता है। वहीं राजकोषीय घाटे में 0.1 फीसदी तक की कमी देखने को मिलती है। भारत अपनी आवश्यकता का लगभग दो तिहाई हिस्सा कच्चा तेल आयात करता है। जो कुल आयात के 30 फीसदी के बराबर है। कच्चे तेल की कीमतों में एक डॉलर की गिरावट से देश के 4000 करोड़ रुपए बच जाते हैं। साथ ही अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की गिरावट से सरकार को सब्सिडी भी कम देना पड़ता है।
ब्याज दरों में और कटौती करेगा रिजर्व बैंक
रिजर्व बैंक देश में मुद्रास्फिति की दर को देखते हुए ब्याज दरों में कटौती के लिए बहुत सोच समझ कर कदम उठा रहा है। लेकिन अनुमान है कि अगले वित्त वर्ष में ब्याज दरों में कटौती का सिलसिला जारी रहेगा। लेकिन इनमें किसी बड़ी कटौती की संभावना नहीं है। अनुमान के मुताबिक साल 2015-16 में रिजर्व बैंक 0.75 से लेकर 1.25 फीसदी तक कटौती कर सकता है। क्योंकि वित्त वर्ष 2014-15 में रिजर्व बैंक 25 बेसिस प्वाइंट की कटौती दो बार कर चुका है। इसलिए अब बड़ी कटौती की उम्मीद नहीं है।