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सेबी के शिकंजे से नहीं बचेंगे भेदिया कारोबारी

बाजार नियामक सेबी ने भेदिया कारोबारियों और जानबूझकर कर्ज नहीं चुकाने वालों (विलफुल डिफॉल्टर) को सख्त संदेश देने के लिए बड़े बदलावों का एलान किया है। नए मानकों के तहत प्रोमोटर का परिवार भी भेदिया कारोबार (इनसाइडर ट्रेडिंग) के दायरे में आएगा। अब इसके आरोपी को ही बेगुनाही का सबूत

By Rajesh NiranjanEdited By: Published: Wed, 19 Nov 2014 11:57 PM (IST)Updated: Thu, 20 Nov 2014 02:38 AM (IST)
सेबी के शिकंजे से नहीं बचेंगे भेदिया कारोबारी

मुंबई। बाजार नियामक सेबी ने भेदिया कारोबारियों और जानबूझकर कर्ज नहीं चुकाने वालों (विलफुल डिफॉल्टर) को सख्त संदेश देने के लिए बड़े बदलावों का एलान किया है। नए मानकों के तहत प्रोमोटर का परिवार भी भेदिया कारोबार (इनसाइडर ट्रेडिंग) के दायरे में आएगा। अब इसके आरोपी को ही बेगुनाही का सबूत देना होगा। इसके अलावा विलफुल डिफॉल्टर बाजार से पैसा नहीं जुटा पाएंगे। कंपनियों को स्टॉक एक्सचेंजों से डिलिस्ट कराना भी आसान हो गया है। अब 25 फीसद निवेशकों की मंजूरी के बाद 76 दिनों के भीतर कंपनी अपनी सूचीबद्धता (लिस्टिंग) समाप्त करा सकेगी।

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भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) की बुधवार को हुई बोर्ड बैठक में निवेशकों और कारोबार के हित में नियम बदलने के संबंध में उक्त सभी फैसले लिए गए। नए मानकों के तहत इनसाइडर की परिभाषा का दायरा बढ़ा दिया गया है। इसके तहत प्रमोटर से जुड़े व्यक्ति यानी कनेक्टेड पर्सन भी आ गए हैं। छह माह से जुड़े व्यक्ति भी इनसाइडर माने जाएंगे। सेबी ने ऐसा भेदिया कारोबार के नियमों को अंतरराष्ट्रीय मापदंडों के अनुरूप बनाने के लिए भी किया है।

नियामक ने कहा है कि कंपनियों के डायरेक्टर और प्रमुख अफसर फ्यूचर मार्केट में ट्रेडिंग नहीं कर सकते। नियमों का मामूली उल्लंघन करने की सूरत में कोई व्यक्ति या कंपनी नोटिस जारी होने के पहले मामले का निपटारा करा सकेगी। इस बैठक में डिलिस्टिंग के नियमों में बदलाव को भी मंजूरी दी गई। डिलिस्टिंग की समय सीमा पहले की तुलना में आधी कर दी गई है। नए नियमों के तहत अब 76 दिन होगी। पहले इसके लिए 137 दिन की समय सीमा तय की गई थी। नए नियम में 25 फीसद पब्लिक शेयर टेंडर होने पर डिलिस्टिंग होगी।

डिपॉजिटरी पार्टिसिपेंट के लिए दोनों ही डिपॉजिटरी (सीडीएसएल व एनएसडीएल) में एक बार ही रजिस्ट्रेशन कराना होगा। इससे पंजीकरण प्रक्रिया आसान होगी। अभी तक पार्टिसिपेंट को सीडीएसएल और एनएसडीएल दोनों के पास ही पंजीकरण कराना होता था। नियामक ई-आइपीओ लाने पर भी विचार कर रहा है।

म्यूचुअल फंड की नेटवर्थ सीमा बढ़ी

म्यूचुअल फंड के न्यूनतम नेटवर्थ की सीमा भी 10 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 50 करोड़ रुपये कर दी गई है। इस कदम का मकसद बाजार से उन खिलाडिय़ों को बाहर करना है, जो फंड कारोबार को लेकर गंभीर नहीं हैं। इसके तहत सेबी ने सीमा से कम नेटवर्थ वाले फंड हाउसों के एनएफओ (न्यू फंड ऑफर्स) आवेदनों को मंजूरी देना बंद कर दिया है।

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