डॉलर के मुकाबले रुपया 4 माह के निचले स्तर पर, जानिए क्यों हुआ ऐसा?
आरबीआइ के मौद्रिक नीति की समीक्षा के एक दिन बाद ही डॉलर के मुकाबले रुपया गिरकर साढ़े चार माह के निचले स्तर पर आ गया। आज डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत 61.20 रुपये है जो कल 60.
नई दिल्ली। आरबीआइ के मौद्रिक नीति की समीक्षा के एक दिन बाद ही डॉलर के मुकाबले रुपया गिरकर साढ़े चार माह के निचले स्तर पर आ गया। आज डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत 61.20 रुपये है जो कल 60.8450 पर बंद हुआ था। आरबीआइ की द्विमाही मौद्रिक नीति की समीक्षा में यथास्थिति को बनाए रखने की वजह से मंगलवार को भी मार्केट में इसका असर देखा गया था। हालांकि आज शेयर बाजार में हल्की गिरावट देखी जा रही है।
आइए जानते हैं, डॉलर के मुकाबले में रुपये में गिरावट के क्या कारण हैं-
रिस्क एवर्जन का असर:
यूक्रेन में बढ़े जियो-पॉलिटिकल तनाव की वजह से दुनियाभर की मार्केट्स में रिस्क एवर्जन का असर देखा गया है। जिससे एशियाई बाजारों में गिरावट देखी गई। भारतीय शेयर बाजार भी कमोबेश उसी राह पर चल पड़ा है। इसीलिए विदेशी संस्थागत निवेशक जो भारतीय शेयर बाजार में निवेश किए थे। अब वे अपने निवेश को समेटने लगे हैं। जिससे डॉलर की मांग बढ़ रही है जिसका असर रुपये पर देखा जा रहा है।
डॉलर में खासी मजबूती:
रायटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक ज्यादातर एशियाई मुद्राओं में डॉलर के मुकाबले कमजोरी देखी जा रही है। जिसकी वजह से इसमें पूरी एशियाई मुद्राओं के मुकाबले ही मजबूती देखी जा रही है। इसके साथ जबरदस्त ऑकड़ों से यूएस अर्थव्यस्था में मिल रहे सुधार के संकेतों का भी असर डॉलर पर देखा जा रहा है।
सरकारी बैंकों में डॉलर की मांग बढ़ी:
रुपये में कमजोरी से सरकारी बैंकों में डॉलर की मांग में बढ़ोतरी हो रही है। हालांकि मीडिया में आई खबरों के मुताबिक रूपये की कमजोरी को रोकने के लिए बुधवार को ही सेंट्रल बैंक ने डॉलर की बिक्री की है। हालांकि, ज्यादा उतार-चढ़ाव को रोकने के लिए आरबीआइ फॉरेक्स मार्केट में हस्तक्षेप करता है।
ब्याज दरों में कटौती की उम्मीद:मौद्रिक नीति की समीक्षा के दौरान आरबीआइ के गवर्नर ने यह संकेत दिया कि आरबीआइ अब जरूरत से ज्यादा उच्च ब्याज दरों को नहीं बनाए रख पाएगा। जिससे यह संभावना बढ़ गई कि इन्फ्लेशन में गिरावट के साथ ब्याज दर में भी कटौती संभव है। इस तरह से भारत में ब्याज दरों में कटौती की संभावना और अमेरिका में ब्याज दरों में बढ़ोतरी होने की संभावना से निवेशक भारत में निवेश कम करके अमेरिका में निवेश बढ़ा सकते हैं। जो विदेशी निवेशकों के लिए ज्यादा फायदेमंद हो सकता है। विदेशी संस्थागत निवेशक जब इक्विटी से पैसे निकालते हैं तो डॉलर की मांग बढ़ती है जिससे रुपये पर दबाव बढ़ता है।