एक साल में 41 फीसद महंगी हुई दालें: सरकार
पिछले एक साल के दौरान रिटेल मार्केट में दालों के भाव 41 प्रतिशत तक बढ़ गए। फसलों के प्रतिकूल मौसम के कारण उत्पादन में गिरावट इसकी वजह रही। सरकार की ओर से शुक्रवार को संसद में यह जानकारी दी गई।
नई दिल्ली। पिछले एक साल के दौरान रिटेल मार्केट में दालों के भाव 41 प्रतिशत तक बढ़ गए। फसलों के प्रतिकूल मौसम के कारण उत्पादन में गिरावट इसकी वजह रही। सरकार की ओर से शुक्रवार को संसद में यह जानकारी दी गई।
राज्यसभा में एक सवाल के लिखित जवाब में खाद्य मंत्री राम विलास पासवान ने कहा, 'पिछले एक साल में प्रमुख दालों के भाव 12.63 फीसद से लेकर 40.73 प्रतिशत तक बढ़े हैं। दालों के दाम इस कदर तेजी से बढ़ने की प्रमुख वजह खराब मौसम के कारण उत्पादन में गिरावट रही।'
20 जुलाई को देश में मूंग दाल का औसत भाव 12.63 प्रतिशत बढ़कर 98.47 रुपये प्रति किलो रहा। 18 जुलाई, 2014 को मूंग की दाल 87.43 रुपये प्रति किलो थी। इस दौरान उड़द दाल का खुदरा औसत भाव 34.39 प्रतिशत बढ़कर 99.03 रुपये प्रति मिलो हो गया। इसी अवधि में अरहर या तुअर दाल की औसत खुदरा कीमत 99.31 रुपये प्रति किलो रही, जिसमें 40.73 प्रतिशत बढ़ोतरी दर्ज की गई।
पिछले एक साल में मसूर की दाल 23 प्रतिशत महंगी हो गई। सरकार की ओर से राज्यसभा में जो आंकड़े उपलब्ध कराए गए, उसके मुताबिक रिटेल मार्केट में फिलहाल मसूर की दर 82.53 रुपये प्रति किलो है। इस दौरान चने की दाल 30.53 प्रतिशत महंगी होकर 60.29 रुपये प्रति किलो हो गई।
एक अन्य सवाल के जवाब में पासवान ने कहा कि घरेलू बाजार में आपूर्ति बढ़ाने और कीमतों पर अंकुश लगाने के लिए सरकार ने दालें आयात करने का फैसला किया है। उन्होंने कहा, 'खाने-पीने की जरूरी चीजों के दाम बेतहाशा बढ़ने के कई कारण रहे हैं। प्रतिकूल मौसम, परिवहन लागत बढ़ना, आपूर्ति की कमी, जमाखोरी और कालाबाजारी की वजह से बाजार में माल की कम आवक।'
फसल वर्ष (जुलाई-जून) 2014-15 के दौरान देश में ज्यादातर दालों का उत्पादन करीब 20 लाख टन कम रहा। इस वजह से बाजार में इनकी आपूर्ति कम रही। फसल के प्रतिकूल मौसम इसकी एक बड़ी वजह रही। एक अनुमान के मुताबिक फसल वर्ष 2014-15 में दालों का उत्पादन घटकर 1.738 करोड़ टन रह गया, जबकि एक साल पहले 1.925 करोड़ टन दालों का उत्पादन हुआ था।
आम तौर पर देश में दालों की जितनी खपत होती है, उस पैमाने पर उत्पादन नहीं हो पाता। उत्पादन और खपत का अंतर पाटने के लिए तकरीबन 40 लाख टन दालें आयात की जाती हैं। ज्यादातर आयात निजी सौदों के जरिए किया जाता है।