शुरू हो सकता है कॉरपोरेट दर में कमी का सिलसिला
राजस्व के मोर्चे पर दिक्कत से जूझ रही सरकार अगर चालू वित्त वर्ष में राजकोषीय संतुलन बनाती है तो आगामी बजट में कॉरपोरेट टैक्स की दर में कमी का सिलसिला शुरू हो सकता है।
नई दिल्ली। राजस्व के मोर्चे पर दिक्कत से जूझ रही सरकार अगर चालू वित्त वर्ष में राजकोषीय संतुलन बनाती है तो आगामी बजट में कॉरपोरेट टैक्स की दर में कमी का सिलसिला शुरू हो सकता है।
कॉरपोरेट टैक्स की दर घटाने का फैसला इस बात पर भी निर्भर करेगा कि उद्योग जगत की मौजूदा स्थिति रियायतों की वापसी के लिए कितनी मुफीद है। चालू साल में प्रत्यक्ष कर संग्रह में कमी से सरकार का राजकोषीय प्रबंधन दबाव में है।
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने अपने पिछले बजट में कॉरपोरेट टैक्स की दर को चरणबद्ध तरीके से मौजूदा 30 फीसद से घटाकर 25 फीसद पर लाने का ऐलान किया था। लेकिन इसके साथ ही वित्त मंत्री ने उद्योग जगत को मिल रही टैक्स रियायतों में भी कटौती की बात कही थी। उद्योग की तरफ से औद्योगिक मोर्चे के मौजूदा हालात को देखते हुए रियायतें वापस न लेने की मांग उठने लगी है।
सूत्र बताते हैं कि अगर रियायतों की वापसी शुरू नहीं होगी तो टैक्स की दर घटाना तर्कसंगत नहीं होगा। ऐसी स्थिति में इस बात की संभावना अधिक है कि वित्त मंत्री कारपोरेट टैक्स की दर में कटौती का एक रोडमैप बजट में प्रस्तुत करें। सूत्रों का कहना है कि इसके तहत वित्त मंत्री टैक्स की दर घटाने के चरणों के साथ साथ उद्योगों को मिलने वाली रियायतों की वापसी की सूची को भी बजट का हिस्सा बना सकते हैं।
सूत्र बताते हैं कि कारपोरेट टैक्स की दर में कटौती की शुरुआत दो फीसद की कमी से हो सकती है। लेकिन यह साल 2016-17 से होगी अथवा 2017-18 से इस पर अभी संदेह बना हुआ है। इसका निर्णय राजकोषीय संतुलन पर निर्भर कर रहा है। यदि राजकोषीय संतुलन का गणित ठीक बैठा तो वित्त मंत्री कारपोरेट टैक्स में कटौती का सिलसिला अगले वित्त वर्ष से ही शुरू कर सकते हैं।
चालू वित्त वर्ष के लिए सरकार ने 555649 करोड़ रुपये के राजकोषीय घाटे का अनुमान लगाया था जो जीडीपी के 3.9 फीसद के बराबर है। दिसंबर के अंत तक सरकार का राजकोषीय घाटा लक्ष्य के 87.9 फीसद तक पहुंच गया है। इसकी बड़ी वजह प्रत्यक्ष कर संग्रह की रफ्तार का धीमा होना है। माना जा रहा है कि चालू वित्त वर्ष में प्रत्यक्ष कर संग्रह अपने बजटीय लक्ष्य 7.97 लाख करोड़ रुपये से कम रह सकता है। हालांकि अप्रत्यक्ष कर संग्रह में पेट्रोल और डीजल पर उत्पाद शुल्क में वृद्धि ने सरकार को काफी राहत दी है। लेकिन औद्योगिक उत्पादन में कमी ने उत्पाद शुल्क के संग्रह को भी प्रभावित किया है।