फंसे कर्ज घटाने को खींची लक्ष्मण रेखा
तमाम उपायों के बावजूद अपने फंसे कर्जे (एनपीए) को कम करने में असफल रहे सरकारी बैंकों के सामने आरबीआइ गवर्नर रघुराम राजन ने लक्ष्मण रेखा खींच दी है। इन बैंकों को सख्त हिदायत देते हुए राजन ने मंगलवार को साफ कहा कि उन्हें हर हालत में मार्च, 2017 तक एनपीए
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। तमाम उपायों के बावजूद अपने फंसे कर्जे (एनपीए) को कम करने में असफल रहे सरकारी बैंकों के सामने आरबीआइ गवर्नर रघुराम राजन ने लक्ष्मण रेखा खींच दी है। इन बैंकों को सख्त हिदायत देते हुए राजन ने मंगलवार को साफ कहा कि उन्हें हर हालत में मार्च, 2017 तक एनपीए की समस्या से निजात पाना होगा। वैसे, राजन पहले भी एनपीए पर बैंकों को खरी-खरी सुनाते रहे हैं, लेकिन यह पहली दफा है कि उन्होंने इसके लिए समय सीमा तय कर दी है। इसका साफ मतलब हुआ है कि बैंक ऑफ इंडिया, बैंक ऑफ महाराष्ट्र, यूको बैंक, यूनाइटेड बैंक जैसे सरकारी बैंकों को अगले दो वर्षो के भीतर एनपीए को घटाने के लिए अहम कदम उठाने होंगे।
गवर्नर की इस हिदायत का बैंकिंग क्षेत्र पर कई तरह से असर पड़ने की उम्मीद है। सबसे पहले तो जिन बैंकों के एनपीए का स्तर 8-9 फीसद है, उन्हें इसे3-4 फीसद पर लाने के लिए काफी बड़ी राशि का समायोजन करना होगा। इससे उनका मुनाफा काफी कम हो सकता है। उदाहरण के तौर पर सितंबर, 2015 तक यूको बैंक का एनपीए 8.9 फीसद है। अगर बैंक अगले दो वर्षो के दौरान अछा खासा मुनाफा नहीं कमाता है जो इसके लिए एनपीए घटाना असंभव है। कम से कम दस सरकारी बैंक ऐसे हैं जिनके एनपीए सात से नौ फीसद के बीच है। आरबीआइ गवर्नर राजन ने इस बात के भी संकेत दिए कि एनपीए में यह कटौती आम बैंक ग्राहकों के लिए भी फायदे का सौदा साबित होगा। इससे उद्योग जगत को यादा कर्ज मिलने का रास्ता साफ होगा और कर्ज की दरों में भी नरमी आएगी। सितंबर को समाप्त तिमाही में सभी सरकारी बैंकों का संयुक्त एनपीए 3.14 लाख करोड़ रुपये था।
राजन ने वित्त मंत्री अरुण जेटली से विचार-विमर्श के बाद ही यह एलान किया है, क्योंकि बैंकों के लिए सरकार के सहयोग के बिना दो वर्षों में इसे कर दिखाना लगभग असंभव है। बिजली, स्टील, कपड़ा उद्योग पर बैंकों का काफी कर्ज बकाया है। हाल ही में बिजली क्षेत्र पर बकाया कर्ज को कम करने के लिए एक स्कीम का भी एलान किया गया है। वित्त मंत्रलय ने एक समिति गठित की है, जो एनपीए कम करने के लिए सुझाव देगी। इसके लिए सरकार को भी अपने खजाने से काफी बड़ी राशि बैंकों को देनी पड़ेगी।