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दालों के उत्पादन बढ़ने से ही आएगी कीमतों में कमी: मुख्य आर्थिक सलाहकार

दालों की कीमतों से न केवल आम लोग परेशान हैं। बल्कि सरकार के लिए भी संकट है। मुख्य आर्थिक सलाहकार का कहना है कि उत्पादन बढ़ाना ही एक मात्र रास्ता है

By Lalit RaiEdited By: Published: Mon, 27 Jun 2016 09:43 AM (IST)Updated: Mon, 27 Jun 2016 09:56 AM (IST)
दालों के उत्पादन बढ़ने से ही आएगी कीमतों में कमी: मुख्य आर्थिक सलाहकार

नई दिल्ली। आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रह्माण्यम ने रविवार को संकेत दिया कि अगर दाल का उत्पादन नहीं बढ़ा तो इसके दाम नहीं घट पाएंगे। जहां तक टमाटर एवं अन्य खाने की वस्तुओं का प्रश्न है तो यह बाजार से जुड़ी समस्या है। कुछ जगहों पर ये अधिक मात्रा में उपलब्ध हो जाते हैं जबकि कुछ जगहों पर इनकी कमी रहती है।

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एशियन डेवलपमेंट रिसर्च इंस्टीट्यूट (आद्री) की रजत जयंती पर आयोजित सेमिनार में उन्होंने कहा कि 'ब्रेक्जिट' एक दुखद घटनाक्रम है जिसका असर देश की अर्थव्यवस्था पर दिखेगा। खासकर निर्यात पर इसका प्रतिकूल असर पड़ेगा।

सुब्रह्माण्यम बोले कि लोगों की खानपान की आदतें बदली हैं। दाल अधिक पसंद की जाने लगी है। आवश्यकता के अनुरूप दाल का उत्पादन नहीं हो रहा। हमें उत्पादन बढ़ाना होगा। सरकार ने पिछले तीन-चार सीजन से किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए दाल के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) अधिक तय किए हैं। दाल की खेती मुख्य रूप से वर्षा पर निर्भर है। उत्पादन बढ़ाने के लिए कृषि वैज्ञानिकों को भी सक्रिय होना पड़ेगा।

नई तकनीक का सहारा लेना आवश्यक है। जहां तक टमाटर एवं अन्य सब्जियों का सवाल है तो बाजार के बेहतर ढंग से काम नहीं करने के कारण इनमें महंगाई आती है। देश के विभिन्न बाजारों में इनकी उपलब्धता एक समान नहीं रहती। उदाहरण के लिए प्याज महाराष्ट्र में उपलब्ध रहने के बावजूद समय पर अन्य जगहों पर नहीं पहुंच पाता है।

'ब्रेक्जिट' एक 'मेजर शॉक'

'ब्रेक्जिट' की चर्चा करते हुए सुब्रह्माण्यम ने कहा कि यह एक 'मेजर शॉक' है। भले ही पटना में बैठे हुए इसके प्रभाव का अंदाजा नहीं लगे, लेकिन दूसरे विश्र्व युद्ध के बाद यह दुनिया में सबसे बड़ा आर्थिक घटनाक्रम है। यूरोप और ब्रिटेनही नहीं, इसका भारत सहित पूरी दुनिया पर असर होगा।

यूरोप में इसे लेकर शोक का माहौल है। यूरोपीय संघ से ब्रिटेन के अलग होने यानी 'ब्रेक्जिट' से भारत का निर्यात प्रभावित होगा। इसके प्रभाव से बचने के लिए ठोस 'मैक्रो-इकोनॉमिक' पहल करनी होगी। संभावित प्रभाव को नए सिरे से आंकने की भी आवश्यकता है। हां, तेल के दाम कम होंगे, जिससे भारत को लाभ होगा।


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