रसोई होगी रूखी, चना नहीं बजेगा घना
मौसम के बिगड़ैल मिजाज से अब खाने का जायका भी बदल जाएगा। आम आदमी की रसोई में दाल और तेल की कमी से खाने की थाली सूनी नजर आएगी। बेमौसम बरसात और ओलावृष्टि ने दलहन व तिलहन फसलों को सर्वाधिक नुकसान पहुंचाया है। इससे किसानों की कमर तो टूटी ही,
सुरेंद्र प्रसाद सिंह, नई दिल्ली। मौसम के बिगड़ैल मिजाज से अब खाने का जायका भी बदल जाएगा। आम आदमी की रसोई में दाल और तेल की कमी से खाने की थाली सूनी नजर आएगी। बेमौसम बरसात और ओलावृष्टि ने दलहन व तिलहन फसलों को सर्वाधिक नुकसान पहुंचाया है। इससे किसानों की कमर तो टूटी ही, सरकारी खजाने पर भी इसका असर पड़ेगा।
दलहन और तिलहन के मामले में हमारी ज्यादातर जरूरतें आयात से पूरी होती हैं। इसके लिए लगभग एक लाख करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा खर्च करनी पड़ेगी। अचानक आई आपदा से इन फसलों की पैदावार घटी तो आयात पर निर्भरता और बढ़ेगी। रबी सीजन में प्रमुख दलहन चना है, तो तिलहन में सरसों बड़ी फसल है। अधिक लागत और जोखिम वाली दलहन व तिलहन फसलों के नुकसान पर भी सरकारी मुआवजा गेहूं की तर्ज पर ही देने का प्रावधान है।
किसानों का डूबना तय
उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाणा और राजस्थान में दलहन व तिलहन की फसलें चौपट हुई हैं। ऐसे में नगदी कही जाने वाली इन फसलों के खराब होने से किसानों का डूबना तय है। रबी सीजन में दलहन फसलें चना, मटर और मसूर प्रमुख हैं। कुछ राज्यों में उड़द और मूंग की खेती भी रबी में होती है। दलहन फसलों में अकेले चने की हिस्सेदारी आधे से भी अधिक है। चालू सीजन में 1.32 करोड़ हेक्टेयर में दलहन फसलों की बुवाई की गई है। पैदावार का अग्रिम अनुमान 1.84 करोड़ टन है। लेकिन बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि से 11 लाख हेक्टेयर की दलहन फसलें क्षतिग्रस्त हुई हैं।
थोथा हो गया चना
बदली वाला मौसम और तापमान कम होने से चने की फली में ऐसे कीड़े घुस गए, जिससे दाने थोथे या खोखले हो गए। कृषि मंत्रालय के अग्रिम अनुमान के मुताबिक दलहन की पैदावार में लगभग 10 लाख टन तक की कमी आ सकती है। घरेलू मांग को पूरा करने के लिए सालाना 30 से 35 लाख टन दालों का आयात किया जाता है। इस पर तकरीबन 20 हजार करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा व्यय होती है, जो इस बार और बढ़ेगी।
तिलहन निकालेगा खजाने का तेल
बारिश ने तिलहन को बहुत नुकसान पहुंचाया है। उत्तर और पूरब के राज्यों में प्रचलित सरसों तेल की किल्लत होगी। खराब मौसम के चलते सरसों की 11 लाख हेक्टेयर फसल खराब हुई है। जबकि तिलहन बुवाई का रकबा 78 लाख हेक्टेयर ही है। ऐसे में तिलहन फसलों को नुकसान और भारी पड़ेगा। वैसे भी खाद्य तेलों की कुल घरेलू खपत का 55 फीसद आयात से पूरा होता है। पिछले सालों में एक करोड़ टन से भी अधिक खाद्य तेलों का आयात होता रहा है, जो इस बार और बढ़ेगा। अंतरराष्ट्रीय बाजार के रुख के हिसाब से खाद्य तेलों के आयात के लिए 80 हजार करोड़ रुपये से अधिक की विदेशी मुद्रा की जरूरत पड़ेगी।