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कंपनी मालिकों-अधिकारियों को राहत के लिए भ्रष्टाचार कानून में संशोधन

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार इंडिया इंक को बड़ी राहत देने के प्रयास में पिछली यूपीए सरकार के बनाए भ्रष्टाचार निरोधक (संशोधन) अधिनियम 2013 में बदलाव के लिए विधेयक पेश करेगी। इस कानून के पास होने पर कंपनियों के बड़े अधिकारियों और मालिकों पर तब तक कानून का शिकंजा नहीं कसा

By Shashi Bhushan KumarEdited By: Published: Tue, 12 May 2015 11:41 AM (IST)Updated: Tue, 12 May 2015 12:00 PM (IST)
कंपनी मालिकों-अधिकारियों को राहत के लिए भ्रष्टाचार कानून में संशोधन

नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार इंडिया इंक को बड़ी राहत देने के प्रयास में पिछली यूपीए सरकार के बनाए भ्रष्टाचार निरोधक (संशोधन) अधिनियम 2013 में बदलाव के लिए विधेयक पेश करेगी। इस कानून के पास होने पर कंपनियों के बड़े अधिकारियों और मालिकों पर तब तक कानून का शिकंजा नहीं कसा जाएगा, जब तक कि यह साबित न हो जाए कि निचले कर्मचारियों और अधिकारियों द्वारा किए गए भ्रष्टाचार में उनका हाथ रहा है या नहीं।

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2013 वाला विधेयक 1988 के भ्रष्टाचार निरोधक कानून में संशोधन के मकसद से पेश किया गया था। इसमें एक प्रावधान करके किसी भी कमर्शल ऑर्गनाइजेशन में होने वाले कामकाज पर नजर रखने की जिम्मेदारी वाले हर शख्स पर भ्रष्टाजार की जिम्मेदारी निर्धारित की गई थी।

साल 2013 वाले बिल के अनुसार व्यावसायिक संगठन का कोई भी ऑफिसर तब भ्रष्टाचार का दोषी पाया जाएगा, अगर यह पता चलता है कि वह उसकी अनदेखी के चलते हुआ है और मामले में खुद को निर्दोष साबित करने की जिम्मेदारी उसी पर होगी। इस कानून के तहत भ्रष्टाचार के अपराध के दोषियों के लिए तीन से सात साल की सजा तय की गई है। हालांकि कंपनियों में बॉस के खिलाफ इस कानून का दुरुपयोग होने और उनका उत्पीडऩ होने का खतरा इसमें था।

एनडीए सरकार की तरफ से इस कानून में नए संशोधन से विधेयक के अहम प्रावधान बदल गए हैं। अब किसी कंपनी में हुए भ्रष्टाचार में उसके डायरेक्टर, मैनेजर, सेक्रटरी या दूसरे ऑफिसर तब दोषी माने जाएंगे जब यह साबित हो जाएगा कि भ्रष्टाचार वैसे ऑफिसर की इजाजत या मिलीभगत से हुआ है। भ्रष्टाचार में मिलीभगत होने का दोष साबित करने की जिम्मेदारी अब सरकारी एजेंसी की होगी, जबकि 2013 के प्रोविजन में आरोपियों को शुरू में ही दोषी मान लिया जाता था।


प्रिवेंशन टू भ्रष्टाचार (अमेंडमेंट) ऐक्ट 2015 पर सोमवार को राज्यसभा में पेश किया जाना तय हुआ था, लेकिन सदन के बारबार स्थगित होने के चलते उसे पेश नहीं किया जा सका। मिनिस्टर ऑफ स्टेट (पर्सनेल) जितेंद्र सिंह ने एक आर्थिक अखबार को दिए गए इंटरव्यू में बताया था कि उनकी सरकार इस कानून को मौजूदा सत्र में लाने की कोशिश करेगी। कानून में इन बदलावों को शामिल करते वक्त एनडीए सरकार ने लॉ कमिशन ऑफ इंडिया की सलाह पर गौर किया है। कमिशन ने इस साल फरवरी में जारी अपनी रिपोर्ट में 2013 के कानून में प्रोविजन पर वॉर्निंग जारी की थी।


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