दस हजार किमी हाईस्पीड नेटवर्क बनाने की तैयारी
हीरक रेल चतुर्भुज योजना के तहत सरकार चीन की तर्ज पर देश के चार प्रमुख महानगरों के बीच 10 हजार किलोमीटर लंबा हाईस्पीड और सेमी हाईस्पीड नेटवर्क विकसित करेगी। इसके तहत दिल्ली-मुंबई-चेन्नई-कोलकाता के चतुर्भुज के साथ दिल्ली-चेन्नई और कोलकाता-मुंबई के सीधे रूट भी विकसित किए जाएंगे।
नई दिल्ली (जागरण ब्यूरो)। हीरक रेल चतुर्भुज योजना के तहत सरकार चीन की तर्ज पर देश के चार प्रमुख महानगरों के बीच 10 हजार किलोमीटर लंबा हाईस्पीड और सेमी हाईस्पीड नेटवर्क विकसित करेगी। इसके तहत दिल्ली-मुंबई-चेन्नई-कोलकाता के चतुर्भुज के साथ दिल्ली-चेन्नई और कोलकाता-मुंबई के सीधे रूट भी विकसित किए जाएंगे। मोदी सरकार ने सत्ता संभालते ही राष्ट्रपति अभिभाषण के जरिये हीरक रेल चतुर्भुज (डायमंड क्वाड्रीलेटरल रेल कॉरीडोर) के विकास की बात कही थी। बाद में रेलमंत्री सदानंद गौड़ा ने रेल बजट में भी इसका जिक्र किया था। मगर इसका स्वरूप क्या होगा, इसका किसी को अंदाजा नहीं था। परंतु धीरे-धीरे इस विषय में स्थिति स्पष्ट होने लगी है।
रेलवे बोर्ड के चेयरमैन अरुणोंद्र कुमार के मुताबिक हीरक रेल चतुर्भुज के अंतर्गत 10 हजार किलोमीटर का विशाल हाईस्पीड और सेमी या मीडियम हाईस्पीड नेटवर्क तैयार करने का प्रस्ताव है। रेलवे में सौ फीसद प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआइ) का रास्ता इसीलिए खोला गया है। विदेशी कंपनियों ने इसका स्वागत किया है। वे इसमें निवेश को उत्सुक हैं। यह निवेश विश्व बैंक और एशियाई विकास बैंक जैसी बहुपक्षीय वित्तीय संस्थाओं के सस्ते व दीर्घकालिक कर्ज की मदद से होगा। डेडीकेटेड फ्रेट कॉरीडोर के विकास में यह मॉडल कामयाब रहा है, जहां अब तक अस्सी हजार करोड़ रुपये का एफडीआइ आ चुका है। हाईस्पीड कॉरीडोर के जरिये इसे दोहराए जाने की उम्मीद है। हाईस्पीड की लागत के बारे पूछे जाने पर रेलवे बोर्ड चेयरमैन ने कहा यह सामान्य रेलवे नेटवर्क के मुकाबले महंगी, मगर मेट्रो रेल के मुकाबले सस्ती है। सामान्य रेलवे लाइन बिछाने में प्रति किलोमीटर 7-8 करोड़ रुपये का खर्च आता है। मेट्रो लाइन का खर्च 300 करोड़ रुपये है। इनके मुकाबले एक किलोमीटर हाईस्पीड रेलवे लाइन बिछाने में लगभग 100 करोड़ रुपये या इससे कुछ कम लागत आती है।
इस तरह 10 हजार किमी हाईस्पीड नेटवर्क के विकास पर आठ-दस लाख करोड़ रुपये के निवेश की आवश्यकता होगी। यह बहुत बड़ी राशि है।
बहुपक्षीय संस्थाओं की मदद से लंबी अवधि में चरणबद्ध ढंग इसे प्राप्त करना इसे प्राप्त किया जा सकता है। असल बात यह है कि बहुराष्ट्रीय संस्थाएं कर्ज देने के लिए तैयार हैं। अब विदेशी कंपनियों को तय करना है कि इसकी वापसी कैसे करेंगी। जाहिर है इसके लिए न केवल हाईस्पीड ट्रेनों का उपयुक्त किराया ढांचा विकसित करना होगा, बल्कि कमाई के अन्य उपाय भी करने होंगे। इसमें रेल टैरिफ अथॉरिटी की अहम भूमिका होगी। यह उसी तरह रेलवे नियामक की भूमिका निभाएगी जिस तरह विमानन क्षेत्र में एयरपोर्ट इकोनॉमिक रेगुलेटरी अथॉरिटी या दूरसंचार क्षेत्र में ट्राई की है। विदेशी कंपनियों को हाईस्पीड समेत संपूर्ण रेलवे क्षेत्र में निवेश की अनुमति है। वे चाहें तो निर्माण, संचालन और रखरखाव तीनों में, अथवा केवल निर्माण व संचालन में या फिर इनमें से किसी एक में निवेश कर सकती हैं। रेलवे की भूमिका भूमि अधिग्रहण और मंजूरियां प्राप्त करने में उनके मददगार की होगी। अपनी हाल की जर्मनी यात्रा का जिक्र करते हुए कुमार ने कहा कि यह यूरोपीय देश भारत के सेमी हाईस्पीड नेटवर्क के अलावा स्टेशनों के विकास में निवेश करना चाहता है। जर्मनी ने इस बाबत गहरी रुचि दिखाई है।
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