नए फंड की पुरानी समस्या
यह 2006-07 का शिखर नहीं है, फिर भी म्यूचुअल फंड निवेशकों का न्यू फंड ऑफर्स के बारे में संशय बरकरार है। वैल्यू रिसर्च में हमें निवेश सलाह के लिए जो ईमेल मिलते हैं उनमें सबसे प्रमुख सवाल एनएफओ (न्यू फंड ऑफर) में निवेश नहीं करने की सलाह के तर्क से
यह 2006-07 का शिखर नहीं है, फिर भी म्यूचुअल फंड निवेशकों का न्यू फंड ऑफर्स के बारे में संशय बरकरार है। वैल्यू रिसर्च में हमें निवेश सलाह के लिए जो ईमेल मिलते हैं उनमें सबसे प्रमुख सवाल एनएफओ (न्यू फंड ऑफर) में निवेश नहीं करने की सलाह के तर्क से संबंधित होते हैं जो मैं हमेशा ही देता रहा हूं। नए फंड में निवेश न करने के बारे में उन्हें जो सलाह दी जा जाती है, वह अधिकांश निवेशकों को मुश्किल से स्वीकार होती है।
एनएफओ के विरुद्ध तर्क पूरी तरह स्पष्ट है। नए फंड का कोई ट्रैक रिकॉर्ड नहीं होता। नए फंड के बारे में बाजार में कुछ भी कहा जाए, लेकिन कोई चीज पूरी तरह नई नहीं होती। हमेशा पुराने फंड होते हैं जो उपलब्ध होते हैं। इसलिए उसी तरह के पुराने फंड में से एक लेकर उसके ट्रैक की समीक्षा की जाए और नया फंड चुनने के बजाय उसी में निवेश किया जाए।
नए फंड में निवेश के लिए जो सबसे भ्रामक तर्क दिए जाते हैं, उनमें से एक यह है कि इसका एनएवी कम है। यह धारणा कि ऊंचे एनएवी वाले फंड से निम्न एनएवी वाला फंड अधिक सस्ता है, पूरी तरह गलत है। दुर्भाग्य से कुछ फंड सेल्समेन अब भी इसी विचार को सक्रियता से प्रचारित करते हैं। हालांकि यह एक लिटमस टेस्ट की तरह काम करता है, जब आप किसी फंड विक्रेता के संपर्क में आते हैं। अगर कोई फंड विक्रेता आपको यह सुझाव देता है कि कम एनएवी वाला फंड अच्छा है, तो आप बिना कुछ सोचे-समझे यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि या तो वह मूर्ख है या आपको मूर्ख बना रहा है।
इसके पीछे जो सिद्धांत है उसे समझने का आसान तरीका है। एनएवी से साधारणतया यह पता चलता है कि कोई फंड जब से लांच हुआ है, तब से उसने कितना लाभ हासिल किया है। यह इस पर निर्भर करता है कि उस फंड के पोर्टफोलियो के निवेश का फंड मैनेजर कैसे प्रबंधन करता है। अगर अलग-अलग समय पर लांच हुए दो फंड सालाना 20 प्रतिशत की दर से वृद्धि हासिल कर रहे हैं, तो एक साल पुराने फंड का एनएवी 12 होगा तथा दो साल पुराने फंड का एनएवी 14 होगा। इसलिए किसी फंड के एनएवी की तुलना किसी अन्य की बजाय उसके विगत के प्रदर्शन से करना ही ठीक है। इस तरह दो भिन्न फंड के एनएवी की तुलना किसी निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए नहीं की जा सकती।
इसलिए एनएफओ खत्म होने वाला नहीं है। भले ही सेबी नए फंड को अनुमति देने में उतना उदार नहीं हो जितना वह दस साल पहले था। अन्य जो बदलाव हुए हैं उनका मतलब है कि नए फंड लांच करना और बेचना अब भी अच्छा कारोबार है। सबसे बड़ा बदलाव एंट्री लोड को खत्म करना है। निवेशकों से वसूले जाने वाले इस शुल्क को वितरकों को प्रोत्साहित करने के लिए दिया जाता था। इसके चलते फंड हाउसेस और एडवाइजर्स के लिए क्लोज एंड फंड पसंदीदा प्रोडक्ट बन गए हैं।
वर्ष 2010 तक क्लोज एंड इक्विटी फंड व्यवहारिक तौर पर 90 के दशक में अपने शिखर पर पहुंचने के बाद बिल्कुल खत्म हो गए थे। हालांकि अब वे तेजी से पनप रहे हैं। उदाहरण के लिए पिछले साल 81 एनएफओ आए। इनमें से 75 क्लोज एंड और 24 ओपन एंड थे। एनएफओ में निवेश की गई धनराशि में से 10,138 क्लोज एंड में और 5,049 करोड़ रुपये ओपन एंड फंड में आई।
इसकी वजह साफ है। चूंकि फंड कंपनियां लॉक्ड इन रेवेन्यू सिस्टम के प्रति आश्वस्त हैं, इसलिए वे क्लोज एंड एनएफओ की बिक्री के लिए ज्यादा से ज्यादा कमीशन दे सकती हैं। हालांकि, निवेशकों को दोहरा नुकसान होता है। वे न सिर्फ एनएफओ के जरिये बिना ट्रैक रिकॉर्ड देखे निवेश कर रहे हैं, बल्कि वे क्लोज एंड होने की वजह से व्यवहारिक उद्देश्य से लॉक्ड-इन होते हैं।
इसलिए तर्क बिल्कुल स्पष्ट है कि फंड निवेशकों को एनएफओ का व्यापक मूल्यांकन करना चाहिए। एक अच्छे ट्रैक वाले फंड में निवेश करना चाहिए। अब हम निवेशकों के उस मूल प्रश्न पर आ गए हैं कि अगर प्रत्येक व्यक्ति इस सलाह को मानता है तो नए फंड कैसे बाजार में आ रहे हैं। मेरा उत्तर यह है कि मैं वाकई इसकी परवाह नहीं करता। पूरे विश्व में निवेशक समझदारी से व्यवहार करें इसकी संभावनाएं कम ही हैं। निवेशकों को अपने निवेश के बारे में चिंता करनी चाहिए। उन्हें अपने हित को ध्यान में रखते हुए फैसले लेने चाहिए और बड़ी समस्याओं को उन लोगों के लिए छोड़ देना चाहिए, जिन्होंने उनको पैदा किया है।
धीरेंद्र कुमार