तेल एवं गैस उत्खनन क्षेत्र को सेवाकर से बाहर रखा जाए
अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के बढ़ते दाम और आयात पर बढ़ती निर्भरता के बीच उद्योग जगत का कहना है कि सरकार को तेल एवं गैस उत्खनन क्षेत्र को प्रोत्साहन देने के साथ-साथ इस क्षेत्र द्वारा ली जाने वाली सेवाओं को भी सेवाकर के दायरे से बाहर रखना चाहिए।
नई दिल्ली। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के बढ़ते दाम और आयात पर बढ़ती निर्भरता के बीच उद्योग जगत का कहना है कि सरकार को तेल एवं गैस उत्खनन क्षेत्र को प्रोत्साहन देने के साथ-साथ इस क्षेत्र द्वारा ली जाने वाली सेवाओं को भी सेवाकर के दायरे से बाहर रखना चाहिए।
देश के आर्थिक विकास में तेल एवं गैस के महत्वपूर्ण योगदान को देखते हुए उद्योग जगत का कहना है कि 'खनिज तेल' की परिभाषा में कच्चे तेल के साथ-साथ प्राकृतिक गैस को भी शामिल किया जाना चाहिए। कर छूट का लाभ लेने के लिए इसमें खनिज तेल के साथ साथ प्राकृतिक गैस और कोल बेड मीथेन [सीबीएम] को भी शामिल कर लिया जाना चाहिए। वाणिज्य एवं उद्योग मंडल फिक्की ने सरकार को सौंपे बजट पूर्व ज्ञापन में यह माग रखी है। उद्योग मंडल ने कहा है कि तेल खोज गतिविधियों में पर होने वाले वास्तविक खर्च पर खनन कंपनियों को 150 प्रतिशत तक कटौती का लाभ दिया जाना चाहिए। इसमें कहा गया है कि तेल की खोज और उत्खनन काफी खर्चीला कार्य है इसमें जोखिम के साथ काफी व्यय भी होता है। इसमें कई तरह की सेवाएं खनन कंपनियों को लेनी होती है। इन सेवाओं के सेवाकर के दायरे में आने से उनकी लागत और बढ़ जाती है। ऐसे में इन सेवाओं पर कंपनियों को रिफंड मिलना चाहिए अथवा बेहतर होगा कि इन सेवाओं को सेवाकर की नकारात्मक सूची में शामिल कर लिया जाए।
ओएनजीसी के पूर्व अध्यक्ष आर.एस शर्मा ने उद्योग जगत की इस माग से सहमति जताते हुए कहा ''तेल एवं गैस की खोज और इसका उत्पादन घरेलू अर्थव्यवस्था के विकास के लिए कितना जरुरी है, इसे देखने की जरुरत है। ऐसे में तेल गैस खोज के दौरान ली जाने वाली सेवाओं पर सेवाकर से छूट मिलनी चाहिए।'' उन्होंने यह भी कहा कि कर छूट के मामले में 'खनिज तेल' की परिभाषा में केवल तेल ही नहीं बल्कि पूरे हाइड्रोकार्बन क्षेत्र को लाभ मिलना चाहिए।
जहा तक पेट्रोलियम पदाथरें की माकेटिंग का मुद्दा है उद्योग जगत की माग है कि पेट्रोलियम पदार्थो को वस्तु एवं सेवाकर के दायरे में लाया जाना चाहिए। इन्हें इससे बाहर नहीं रखा जाना चाहिए। जीएसटी के दायरे में रहने पर कर की दर कम होगी।
उधर, पेट्रोलियम मंत्रालय ने डीजल कारों पर पारीख समिति के सिफारिश के मुताबिक एक बारगी 80,000 रुपए से एक लाख रुपए तक कर लगाने की माग की है। पेट्रोलियम पदाथरें पर बढ़ती सब्सिडी की वजह से सरकारी खजाने पर भारी दबाव है। पेट्रोलियम पदाथरें की बिक्री करने वाली कंपनियों को भी लागत से कम दाम पर डीजल की बिक्री से भारी वित्तीय दबाव झेलना पड़ रहा है। सबसे ज्यादा सब्सिडी बोझ डीजल की बिक्री पर बढ़ रहा है। इसलिए मंत्रालय ने सुझाव दिया है कि डीजल सब्सिडी बोझ को कम करने के एक उपाय के तौर पर महंगी डीजल कारों पर एक बारगी उत्पाद शुल्क लगाया जा सकता है।
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