कॉल दरों को महंगा करने की जरूरत नहीं
स्पेक्ट्रम की लागत बहुत ज्यादा बताकर कॉल दरों को बढ़ाने की मोबाइल ऑपरेटरों की मंशा को मोदी सरकार परवान नहीं चढ़ने देगी। सरकार का स्पष्ट तौर पर मानना है कि स्पेक्ट्रम के लिए कंपनियां जो पैसा दे रही हैं उसकी वजह से उनकी लागत इतनी नहीं बढ़ जाएगी जिसका बोझ
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। स्पेक्ट्रम की लागत बहुत ज्यादा बताकर कॉल दरों को बढ़ाने की मोबाइल ऑपरेटरों की मंशा को मोदी सरकार परवान नहीं चढ़ने देगी। सरकार का स्पष्ट तौर पर मानना है कि स्पेक्ट्रम के लिए कंपनियां जो पैसा दे रही हैं उसकी वजह से उनकी लागत इतनी नहीं बढ़ जाएगी जिसका बोझ आम ग्राहकों पर डालने की नौबत आए।
सरकार का आकलन है कि स्पेक्ट्रम की इस खरीद से देश की सभी दूरसंचार कंपनियों पर संयुक्त तौर पर महज 5,000 करोड़ रुपये का सालाना बोझ पड़ेगा। यह रकम उनकी वित्तीय स्थिति को देखते हुए काफी कम है।
संचार मंत्री रविशंकर प्रसाद ने इस बारे में बकायदा आंकड़ों के साथ मोबाइल सेवा प्रदाता कंपनियों को संकेत दिए सरकार कॉल दरों में वृद्धि के मुद्दे पर नजर रखे हुए है। हालांकि उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि कॉल दरों को बढ़ाने या इसके बारे में फैसला करने का काम मोबाइल ऑपरेटरों का है और नियामक ट्राई उस पर नजर रखे हुए है।
प्रसाद ने बताया कि देश में 97 करोड़ मोबाइल ग्राहक हैं। ये औसतन हर महीने 350 मिनट कॉल करते हैं। इस तरह से हर वर्ष कुल 4,07,400 करोड़ मिनट कॉल किये जाते हैं। अगर इसे स्पेक्ट्रम खरीद के लिए हर वर्ष खर्च होने वाले 5,300 करोड़ रुपये से विभाजित किया जाए तो 1.3 पैसा प्रति मिनट का अतिरिक्त बोझ हर कॉल पर आएगा।
मोबाइल ऑपरेटर लगातार यह कह रहे हैं कि स्पेक्ट्रम की कीमत बहुत ज्यादा होने की वजह से उन्हें आने वाले दिनों में कॉल दरों को बढ़ाना पड़ सकता है। हालांकि कंपनियों को कुल स्पेक्ट्रम के लिए जो 1.10 लाख करोड़ रुपये की राशि देनी है वह एक बार में नहीं देनी है।
पहले वर्ष यानी चालू वित्त वर्ष में सिर्फ 28,872 करोड़ रुपये की राशि चुकानी है। उसके बाद दो वर्ष तक कोई राशि नहीं देनी है। इस अवधि के बाद हर वर्ष 5,300 करोड़ रुपये की अदायगी करनी होगी। दूरसंचार कंपनियों को यह भी ध्यान में रखना होगा कि भारत इस समय दुनिया का सबसे आकर्षक मोबाइल बाजार है। यहां इंटरनेट कारोबार के बढ़ने की सबसे ज्यादा संभावना जताई जा रही है।
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