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1 साल सरकार का: बड़े बदलाव की ओर बढ़े कदम

खनन क्षेत्र में जड़ता खत्म करने में मिली कामयाबी को अपने एक साल की उपलब्धि मान रहे केंद्रीय खदान और इस्पात मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर आने वाले सालों में बदलाव को लेकर आश्वस्त दिखते हैं। प्रधानमंत्री के ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम व रोजगार सृजन में अपने विभाग की मजबूत भागीदारी

By Rajesh NiranjanEdited By: Published: Mon, 25 May 2015 08:04 AM (IST)Updated: Mon, 25 May 2015 09:18 AM (IST)
1 साल सरकार का: बड़े बदलाव की ओर बढ़े कदम

खनन क्षेत्र में जड़ता खत्म करने में मिली कामयाबी को अपने एक साल की उपलब्धि मान रहे केंद्रीय खदान और इस्पात मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर आने वाले सालों में बदलाव को लेकर आश्वस्त दिखते हैं। प्रधानमंत्री के ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम व रोजगार सृजन में अपने विभाग की मजबूत भागीदारी सुनिश्चत करने की राह पर बढ़ चले तोमर भविष्य को लेकर आशावादी हैं। मंत्रालय की प्राथमिकताओं व भविष्य की योजनाओं को लेकर उन्होंने दैनिक जागरण के विशेष संवाददाता सीतेश द्विवेदी से विस्तार से बात की। प्रस्तुत है प्रमुख अंश।

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एक साल बाद किन निर्णयों को उपलब्धि के रूप में देखते हैं?

उपलब्धियां अनेक हैं। सबसे बड़ी उपलब्धि अनिर्णय व ठहराव से ग्रस्त विभाग को सही दिशा में लाने की रही है। जब हमने सत्ता संभाली थी, उस समय मंत्रालय विशेषकर खनन क्षेत्र ठहराव के दौर में था। न्यायालय के निर्णयों, अवैध खनन, आवेदन में पारदर्शिता की कमी के चलते साठ हजार से ज्यादा आवेदन राज्य सरकारों के पास लंबित थे। इन सब के कारण देश में खनिज उत्पादन भारी गिरावट से जूझ रहा था। 2009-10 में लौह अयस्क का उत्पादन 2,180 लाख टन था। यह 2013-14 में यह घटकर 1,520 लाख टन पर आ गया था। यह चिंताजनक था। सरकार ने इसमें बड़े बदलाव की पहल करते हुए खान और खनिज विकास एवं विनियमन अधिनियम में संशोधन किया। पारदर्शिता से काम करने की सरकार की प्रतिबद्धता को पूरा करने के साथ ही यह संशोधन खनन क्षेत्र की दिशा-दशा बदलने वाला साबित होगा। पारदर्शिता में कमी, विवेकाधिकार कोटा, आवंटन में देरी, क्षेत्र को लेकर निजी क्षेत्र की हिचकिचाहट अब समाप्त होगी। खनन में खोज को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय खनिज अन्वेषण ट्रस्ट की स्थापना की गई। खदानों का आवंटन 50 साल की अवधि के लिए कर दिया गया है। इससे क्षेत्र में अनिश्चितता का महौल समाप्त करने में मदद मिलेगी। इसके अलावा इस्पात के क्षेत्र में अनुसंधान के लिए मंत्रालय पीपीपी माडल के तहत 400 करोड़ की लागत से ‘स्टील रिसर्च टेक्नोलॉजी मिशन ऑफ इंडिया’ स्थापित कर रहा है। यह अभिनव प्रयोग है। इसके जरिये लौह व इस्पात के क्षेत्र में अनुसंधान और विकास देश में ही संभव हो सकेगा। यह निर्णय आने वाले बड़े बदलाव के वाहक बनेंगे।

आपने कहा कि जड़ता समाप्त करना बड़ा काम था। यह पिछली सरकारों पर सवाल है?

मैं किसी सरकार पर उंगली नहीं उठा रहा हूं। लेकिन जब दूसरे देशों के साथ तुलना करते हैं तो पाते हैं कि हम कहां खड़े हैं। देश में खनन क्षेत्र की डिजिटल मैपिंग का काम महज 15 फीसद ही हुआ है। जबकि कुल उपलब्ध क्षेत्र के एक फीसद क्षेत्र में ही खनन का कार्य हो रहा है। आज अगर यह 25 फीसद होता तो बेरोजगारी की समस्या से निजात पाया जा सकता था। निश्चित रूप से यह पिछली सरकारों की अदूरदर्शिता के कारण हुआ है। दरअसल, देश में आवंटन व खोज का काम नितांत अवैज्ञानिक तरीके से हो रहा था। पूर्व की सरकारों ने इस ओर ध्यान नहीं दिया। हम इस हालात को बदलने के लिए तैयार हैं। जल्द ही यह जमीनी स्तर पर देखने को मिलेगा।

अन्वेषण को गति देने के लिए आपकी सरकार क्या कर रही है?

इसलिए हमने राष्ट्रीय खनिज अन्वेषण ट्रस्ट का गठन किया है। इसके अलावा एमएमडीआर अधिनियम के तहत राष्ट्रीय इस्पात निगम लिमिटेड, स्टील अथारिटी आफ इंडिया लिमिटेड, एनएमडीसी लिमिटेड, केआइओसीएल लिमिटेड व एमओआइएल लिमिटेड जैसे पांच केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को पर्यवेक्षण कार्य हेतु अधिसूचित किया गया है। दरअसल, नीतियों के अभाव में अन्वेषण का काम पुराने ढर्रे से चल रहा था। इसकी कीमत खदान क्षेत्र को चुकानी पड़ रही थी। जबकि, अन्वेषण से जुड़ी शोध की महत्ता भी उतनी नहीं थी। अब नीलामी प्रक्रिया के आ जाने के बाद इस दिशा में बड़े बदलाव देखने को मिलेंगे। जमीन के गर्भ में देखकर बोली लगाने की प्रक्रिया आने से भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के शोधपत्र भी महत्वपूर्ण होने वाले हैं। यकीन मानिए कि ये सब इस क्षेत्र में आमूल-चूल परिवर्तन लाने वाले कदम हैं, जो हमने उठाए हैं।

खदानों की लीज अवधि को 50 साल करने के निर्णय से अनिश्चय व उत्पादन क्षमता पर प्रभाव पड़ेगा?

ऐसा नहीं होगा। यदि अधिसूचना जारी होने के दिन किसी की लीज अवधि को तीस वर्ष हुए हैं, तो वह अगले बीस सालों के लिए निश्चिंत हो सकता है। इसी तरह यदि किसी की लीज अवधि दो दिन, दो माह, दो साल में समाप्त हो रही होगी, तो उसे अधिसूचना जारी होने के दिन से पांच वर्ष का विस्तार मिल जाएगा। मर्चेंट माइनर को 31 मार्च 2020 तक जबकि कैप्टिव माइनर को 31 मार्च 2030 तक का विस्तार मिल सकेगा। इससे लौह अयस्क और दूसरे खनिजों की उत्पादन क्षमता प्रभावित होने से रोकने में मदद मिलेगी।

सेल को लेकर क्या योजनाएं हैं?

हम सेल की उत्पादन क्षमता 2025 तक 50 मिलियन टन तक पहुंचाने के लक्ष्य पर काम कर रहे हैं। आने वाले समय में सेल के आधुनिकीकरण व उसकी क्षमता बढ़ाने के लिए इसमें 1.5 लाख करोड़ रुपये का निवेश करने की योजना है।

आगे आपकी क्या प्राथमिकताएं होंगी?

हमारी पहली प्राथमिकता इस्पात का उत्पादन बढ़ाने के साथ इसकी खपत बढ़ाने की होगी। हमें इस क्षेत्र में निवेश आकर्षित करना और खनन के क्षेत्र में खदानों की जल्द-से-जल्द नीलामी करना है। हम जल्द ही इस विषय में राज्य सरकारों से बात करेंगे। उनके अनुरोध पर अन्वेषण के क्षेत्र में जी-1 व जी-2 तक उन्हें मदद करनी है।

खनन के साथ ही विस्थापितों की चुनौती से आपकी सरकार  कैसे निपटेगी?

हमने एमएमडीआर में संशोधन कर जिला खनिज निधि की स्थापना की है। इसका मुख्य उद्देश्य खनन के कारण प्रभावित क्षेत्रों व व्यक्तियों विशेषत: अनुसूचित जाति व जनजातियों की देखभाल करना है। इसके वित्त पोषण के लिए मौजूदा खनन पट्टा धारकों को रायल्टी के बराबर तक अतिरिक्त राशि का भुगतान करना होगा। नए पट्टाधारकों के लिए यह सीमा रायल्टी की एक तिहाई राशि तक होगी। जिला निधि से राज्यों को हर साल 10 हजार करोड़ से अधिक की धनराशि प्राप्त होने की उम्मीद है, जिसका उपयोग प्रभावित लोगों की सहायता के लिए किया जाना है। यह कदम सरकार के सबका साथ सबका विकास की नीति के प्रति दृढ़ता दर्शाने वाला है।

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