'ब्रेग्जिट' से फीकी पड़ सकती है भारत में सुधारों की चमक
बीते 15 वर्षो में भारत में एफडीआइ का तीसरा बड़ा स्रोत रहा है ब्रिटेन। लेकिन ब्रेक्जिट की वजह से वैश्विक मंदी आ सकती है और FDI की रफ्तार सुस्त पड़ सकती है ।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। राजग सरकार ने राजनीतिक विरोध को दरकिनार कर तावड़तोड़ फैसले लेकर घरेलू और विदेशी निवेशकों को रिझाने के लिए एक के बाद एक सुधार लागू किए हैं। लेकिन इन सुधारों की चमक 'ब्रेग्जिट' से फीकी पड़ सकती है।
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यूरोपीय संघ से ब्रिटेन के तलाक से लड़खड़ाए अंतरराष्ट्रीय आर्थिक जगत में आने वाले दिनों में निवेश की रफ्तार सुस्त पड़ने के आसार हैं। ऐसे में सरकार इन सुधारों से जितने प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की उम्मीद कर रही है, उतना एफडीआइ जुटाना बड़ी चुनौती साबित हो सकता है। खास तौर पर ब्रिटेन व यूरोपीय संघ से आने वाला एफडीआइ घट सकता है।
वित्त वर्ष 2015-16 में भारत में 55.46 अरब डालर एफडीआइ आया था जो 2013-14 के 36.04 अरब डालर के मुकाबले काफी अधिक था। हालांकि दुनियाभर के पूंजी, मुद्रा और शेयर बाजारों पर 'ब्रेग्जिट' के प्रभाव तथा अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व के ब्याज दरें बढ़ाने की संभावनाओं के बीच माना जा रहा है कि 20 जून को रक्षा सहित 9 क्षेत्रों में एफडीआइ की नीति उदार बनाने का शायद पूरा फायदा फिलहाल न मिले।
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ब्रेग्जिट की खबर आते ही शुक्रवार को डॉलर के मुकाबले रुपये के मूल्य में गिरावट और शेयर बाजार में गिरावट से निवेशकों के रुख का संकेत मिलता है। रेटिंग एजेंसी इकरा की वरिष्ठ अर्थशास्त्री अदिति नायर का कहना है कि सरकार ने हाल ही में एफडीआइ को उदार बनाने के जो कदम उठाए हैं, ब्रेग्जिट उसके फायदे पर असर डाल सकता है क्योंकि पूरे यूरोप में राजनीतिक अस्थिरिता आने का अंदेशा है।
वैसे बीते 15 वर्षो में भारत में निवेश करने के मामले में मॉरीसस और सिंगापुर के बाद ब्रिटेन तीसरे नंबर पर रहा है। ऐसे में ब्रिटेन में अनिश्चितता आने से भारत में एफडीआइ आने की उम्मीदों पर तात्कालिक दृष्टि से पानी फिर सकता है। वहीं मॉरीसस और सिंगापुर के साथ दोहरा कराधान निवारण संधि (डीटीएए) में संशोधन के बाद इन देशों की कंपनियों पर आने वाले वर्षों में कैपिटल गेन टैक्स लगने लगेगा जिससे मध्यावधि में वहां से आने वाले एफडीआइ पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है।
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इस बीच विश्व बैंक ने वैश्विक विकास दर के अपने अनुमान को घटा दिया है जो दुनियाभर में सुस्ती का संकेत है। इसका एक मतलब यह भी है कि दुनियाभर में निवेश की रफ्तार सुस्त रहने वाली है। इसे देखते हुए भारत में एफडीआइ बढ़ने की संभावना फिलहाल मुश्किल नजर आ रही है।
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हालांकि सरकार यह मानकर चल रही है कि दुनिया में भले ही उथल-पुथल हो लेकिन भारत सर्वाधिक तेज विकास दर हासिल करने वाला अकेला बड़ा देश है। इसलिए वैश्विक निवेशक भारत का रुख कर सकते हैं।