किसानों को सिर्फ कर्ज का झुनझुना
न खाद, न पानी फिर भी वित्त मंत्री चिदंबरम खेती के जरिये चुनावी फसल काटने की जुगत में हैं। मानसून की दरियादिली और किसानों की मेहनत से खाद्यान्न की रिकॉर्ड पैदावार पर सरकार ने अपनी पीठ थपथपाई है। किसानों को प्रोत्साहन देने की जगह उर्वरक सब्सिडी में मात्र एक हजार करोड़ रुपये की वृद्धि की है। इससे
सुरेंद्र प्रसाद सिंह, नई दिल्ली। न खाद, न पानी फिर भी वित्त मंत्री चिदंबरम खेती के जरिये चुनावी फसल काटने की जुगत में हैं। मानसून की दरियादिली और किसानों की मेहनत से खाद्यान्न की रिकॉर्ड पैदावार पर सरकार ने अपनी पीठ थपथपाई है। किसानों को प्रोत्साहन देने की जगह उर्वरक सब्सिडी में मात्र एक हजार करोड़ रुपये की वृद्धि की है। इससे आने वाले दिनों में किसानों को महंगा डीजल और महंगी खाद खरीदने के लिए तैयार रहना होगा। इसके बावजूद अंतरिम बजट में खेती की विकास दर के साढ़े चार फीसद से भी अधिक हो जाने का अनुमान है।
इस फसल वर्ष में रिकॉर्ड तोड़ पैदावार से प्रसन्न वित्त मंत्री चिदंबरम को उम्मीद है कि चालू वित्त वर्ष में कृषि की विकास दर 4.6 फीसद रहेगी। पिछले चार सालों में यह चार फीसद के स्तर पर बना रही है। खेती के लिए मौजूदा कर्ज 7.35 लाख करोड़ रुपये होने का अनुमान है।
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दरअसल खाद्यान्न की 26.3 करोड़ टन की बंपर पैदावार पर सरकार भले ही इतरा रही हो, लेकिन इसके लिए उसे अच्छे मानसून व किसानों की मेहनत का शुक्रगुजार होना चाहिए। अंतरिम बजट में खेती को बढ़ावा देने के लिए कुछ खास नहीं है।
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हैरानी इस बात की होनी चाहिए कि कृषि उपज के उचित मूल्य के लिए कोई प्रणाली विकसित नहीं की गई। प्याज के मूल्य कभी 100 रुपये किलो तो दो महीने बाद ही मूल्य पांच रुपये किलो। जिंस बाजारों के इस उतार-चढ़ाव में किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ता है। देश के गन्ना किसानों को उनके गन्ने का मूल्य भुगतान इस साल तो दूर पिछले साल का बकाया भी अभी तक नहीं मिल पाया है।
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महंगाई घटने से सरकार भले ही खुशफहमी की शिकार हो, लेकिन उसे पता नहीं है कि किसानों का क्या हाल है? चीनी लागत मूल्य से कम पर बिक रही है। बीते साल 41 अरब डॉलर का कृषि निर्यात किया गया। यह बढ़कर 2013-14 में 45 अरब डॉलर हो जाने की उम्मीद है। लेकिन कृषि अनुसंधान, खेती के लिए बेहतर बीज, खाद, कीटनाशक और उपज का अच्छा मूल्य देने के लिए अंतरिम बजट में कोई प्रावधान नहीं है।