प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों ने सरकारी आदेश को दिखाया ठेंगा
गंगा को निर्मल बनाने की सरकार की कोशिशों को प्रदूषणकारी औद्योगिक इकाइयों ने ठेंगा दिखा दिया है। केंद्र ने ऐसी 764 औद्योगिक इकाइयों को प्रदूषण की निगरानी के लिए 31 मार्च तक सेंसर आधारित सिस्टम लगाने का आदेश दिया था। लेकिन मुश्किल से 50 इकाइयों ने इस निर्देश का पालन
नई दिल्ली [हरिकिशन शर्मा] । गंगा को निर्मल बनाने की सरकार की कोशिशों को प्रदूषणकारी औद्योगिक इकाइयों ने ठेंगा दिखा दिया है। केंद्र ने ऐसी 764 औद्योगिक इकाइयों को प्रदूषण की निगरानी के लिए 31 मार्च तक सेंसर आधारित सिस्टम लगाने का आदेश दिया था। लेकिन मुश्किल से 50 इकाइयों ने इस निर्देश का पालन किया है। प्रदूषणकारी उद्योगों के इस रवैये पर सरकार ने सख्त रुख अख्तियार करते हुए अब 30 जून का अल्टीमेटम दिया है। इसके साथ ही निगरानी सिस्टम की लागत के बराबर बैंक गारंटी जमा कराने का निर्देश भी दिया है। केंद्र ने साफ कहा है कि अगर 30 जून तक निगरानी सिस्टम नहीं लगाया गया, तो बैंक गारंटी जब्त कर ली जाएगी और प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों पर ताला लगा दिया जाएगा।
केंद्रीय जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय के एक शीर्ष अधिकारी ने कहा कि मुश्किल से 50 इकाइयों ने ही अपने संयंत्रों से निकलने वाले अपशिष्ट की निगरानी के लिए सेंसर आधारित सिस्टम लगाया है। केंद्र ने गंगा के आस-पास के क्षेत्र सहित देशभर में करीब 4,000 प्रदूषणकारी औद्योगिक इकाइयों को यह सिस्टम लगाने को कहा था।
नरमी नहीं बरतेगी सरकार
अधिकारी ने कहा कि सरकार इस मुद्दे पर प्रदूषणकारी उद्योगों के साथ कोई नरमी नहीं बरतेगी। अधिकारी ने कहा कि सेंसर आधारित प्रदूषण निगरानी सिस्टम की लागत छोटी इकाइयों के लिए लगभग 15 लाख रुपये तथा बड़ी इकाइयों के लिए 20 से 25 लाख रुपये आती है। अब अगर किसी इकाई को अपना परिचालन जारी रखना है तो बैंक गारंटी जमा कराके 30 जून तक यह सिस्टम लगा सकती है। अगर 30 जून तक सिस्टम नहीं लगा तो औद्योगिक इकाई पर ताला पड़ जाएगा।
यह व्यवस्था करनी होगी
सरकार ने इन औद्योगिक इकाइयों से दो टूक कह दिया है कि उन्हें सेंसर आधारित निगरानी तंत्र लगाना होगा। उनके यहां से निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थो के आंकडे़ उनके परिसर में निर्धारित जगह पर प्रदर्शित करने तथा केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के नियंत्रण कक्ष में भेजने की व्यवस्था करनी होगी। प्रदूषणकारी इकाइयों को यह निर्देश जल कानून की धारा 18 एक बी के तहत जारी किया गया है। इसके साथ ही गंगा को प्रदूषित करने वाले उद्योगों को 2016 तक जीरो लिक्विड डिस्चार्ज की नीति भी अपनानी होगी।