विकास के कई मानकों में दुनिया से बहुत पीछे हैं हम
आर्थिक विकास की ऊंची दर को लेकर भले ही हमारी उम्मीदें बहुत अधिक हों, लेकिन सामाजिक-आर्थिक विकास के मानकों में आज भी भारत की स्थिति बेहद खराब है। खासतौर पर पुरुषों के मुकाबले कामकाजी महिलाओं के अनुपात के मामले में हम दुनिया के कई छोटे देशों से भी पीछे हैं। लोगों को उपलब्ध स्वास्थ्य सुविधाओं के
नई दिल्ली [नितिन प्रधान]। आर्थिक विकास की ऊंची दर को लेकर भले ही हमारी उम्मीदें बहुत अधिक हों, लेकिन सामाजिक-आर्थिक विकास के मानकों में आज भी भारत की स्थिति बेहद खराब है। खासतौर पर पुरुषों के मुकाबले कामकाजी महिलाओं के अनुपात के मामले में हम दुनिया के कई छोटे देशों से भी पीछे हैं। लोगों को उपलब्ध स्वास्थ्य सुविधाओं के मामले में तो भारत की स्थिति बेहद दयनीय है।
वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की ताजा वैश्रि्वक रिपोर्ट में केवल एक बात भारत को राहत पहुंचाती है और वह है लोगों का राजनीतिक सशक्तीकरण। इस मामले में भारत की स्थिति बहुत बेहतर है। रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया के 142 देशों में पुरुषों के मुकाबले कामकाजी महिलाओं के अनुपात के मामले में भारत 114वें स्थान पर है। इस सूची में फिलीपींस जैसा छोटा देश एशिया में पहले स्थान पर है, जबकि पड़ोसी चीन भारत से बहुत आगे 18वें स्थान पर है।
भारत उन कुछ देशों की सूची में है जहां कामकाजी महिलाओं की संख्या तेजी से कम हो रही है। शायद यही वजह है कि पिछले साल 101वें स्थान पर रहने वाला भारत इस साल सूची में और नीचे खिसक गया। इसकी एक वजह जन्म के समय लड़के-लड़कियों के अनुपात का बढ़ता अंतर भी है। यह दर्शाता है कि कन्या भ्रूण हत्या पर रोक के तमाम उपायों के बावजूद देश में अब भी स्थितियां सुधरी नहीं है।
पिछले दिनों ही हरियाणा में एक चुनावी सभा के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी लड़कों के मुकाबले लड़कियों की कम संख्या पर चिंता जताई थी। हरियाणा में कन्या भ्रूण हत्या के मामले सबसे अधिक पाए जाते हैं।