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एक वर्ष में फंसे कर्ज के दलदल में और धंसे बैंक

मोदी सरकार के एक वर्ष के दौरान वैसे तो अर्थव्यवस्था के कई मोर्चो पर सकारात्मक संकेत दिखाई देने लगे हैं, लेकिन एक क्षेत्र ऐसा है जिसकी स्थिति सुधरती नहीं दिख रही। यह क्षेत्र है सरकारी बैंकों का।

By Murari sharanEdited By: Published: Sat, 16 May 2015 09:15 PM (IST)Updated: Sat, 16 May 2015 09:48 PM (IST)
एक वर्ष में फंसे कर्ज के दलदल में और धंसे बैंक

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। मोदी सरकार के एक वर्ष के दौरान वैसे तो अर्थव्यवस्था के कई मोर्चो पर सकारात्मक संकेत दिखाई देने लगे हैं, लेकिन एक क्षेत्र ऐसा है जिसकी स्थिति सुधरती नहीं दिख रही। यह क्षेत्र है सरकारी बैंकों का।

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असल में पिछले वित्त वर्ष 2014-15 में देश के सरकारी बैंकों की स्थिति पहले से भी खराब हुई है। कई बड़े बैंक अभी भी चेयरमैन के बगैर काम कर रहे हैं। फंसे कर्जे (एनपीए) की समस्या बढ़ती जा रही है। मानकों को पूरा करने के लिए जरूरी फंड बैंक कहां से जुटाएंगे, इसका भी खाका सरकार अभी तक तैयार नहीं कर पाई है।

भारतीय बैंकों पर जारी रिपोर्ट में घरेलू रेटिंग एजेंसी क्रिसिल ने कहा है कि फंसे कर्जे की काट अभी तक न तो सरकार निकाल पाई है और न ही बैंक। चालू वित्त वर्ष 2015-16 के दौरान बैंकों का संयुक्त तौर पर एनपीए (नॉन परफार्मिग एसेट्स) बढ़कर 4,00,000 करोड़ रुपये हो सकता है।

पिछले वित्त वर्ष के अंत में यह 2.6 लाख करोड़ रुपये के करीब है। एक अन्य अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसी मूडीज ने तो यहां तक कहा है कि अगर भारतीय बैंकों में एनपीए की स्थिति नहीं सुधरी तो इसका असर देश की रेटिंग पर पड़ सकता है। इस संभावना को रिजर्व बैंक गवर्नर रघुराम राजन भी बखूबी समझ रहे हैं।

यही वजह है कि दो दिन पहले उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा है कि कर्ज के समय पर नहीं लौटाने की समस्या आने वाले दिनों में और गंभीर हो सकती है। बैंक जिन ग्राहकों को कर्ज चुकाने का दोबारा मौका दे रहे हैं, उनमें से बहुत से कभी भी कर्ज नहीं चुका सकेंगे।

घटने लगा लाभ का आंकड़ा

एनपीए बढ़ने की वजह से बैंकों का मुनाफा भी कम होने लगा है। देश के दूसरे सबसे बड़े सरकारी बैंक पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबी) का मुनाफा पिछले वित्त वर्ष की अंतिम तिमाही में लगभग 62 फीसद घट गया। बैंक ऑफ बड़ौदा का शुद्ध लाभ इस अवधि में 48 फीसद कम हुआ।

बैंक ने अपने एनपीए में मामूली सुधार किया है। देना बैंक के मुनाफे में 70 फीसद की कमी आई है। दरअसल, जब बैंकों का एनपीए बढ़ता है तो उन्हें इसके एक हिस्से का समायोजन अपने मुनाफे से करना होता है। इस वजह से जब भी एनपीए बढ़ता है, तो इनका मुनाफा भी कम होता है। केंद्र सरकार का कहना है कि जब अर्थव्यवस्था की स्थिति अच्छी होगी तो फंसे कर्जे से भी बैंकों को राहत मिलेगी।

सरकार नहीं पेश कर पाई रोडमैप

लंबी अवधि में बैंकों की फंड जरूरत कैसे पूरी की जाएगी, इसका भी कोई रोडमैप सरकार अभी तक नहीं पेश कर पाई है। रिजर्व बैंक का आकलन कहता है कि मार्च, 2018 तक बैंकों को 4.2 लाख करोड़ रुपये की जरूरत होगी। इसके लिए बैंकों को कई स्त्रोतों से फंड जुटाना होगा। लेकिन यह रास्ता क्या होगा, इसका फैसला सरकार को करना है।


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