जीएसटी से पहले लागू हो सकता है सेनजीएसटी
नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। विकास की रफ्तार बढ़ाने के लिए जरूरी टैक्स सुधारों पर सरकार बजट में आगे कदम बढ़ा सकती है। खासतौर पर अप्रत्यक्ष कर ढांचे में बदलाव के लिए बहुप्रतीक्षित वस्तु व सेवा कर (जीएसटी) को लेकर वित्त मंत्री अरुण जेटली बजट में रोडमैप दे सकते हैं। इसकी शुरुआत केंद्रीय जीएसटी लागू करने से की जा सकती है। इसके अलावा
नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। विकास की रफ्तार बढ़ाने के लिए जरूरी टैक्स सुधारों पर सरकार बजट में आगे कदम बढ़ा सकती है। खासतौर पर अप्रत्यक्ष कर ढांचे में बदलाव के लिए बहुप्रतीक्षित वस्तु व सेवा कर (जीएसटी) को लेकर वित्त मंत्री अरुण जेटली बजट में रोडमैप दे सकते हैं। इसकी शुरुआत केंद्रीय जीएसटी लागू करने से की जा सकती है। इसके अलावा प्रत्यक्ष कर पर भी बजट में सरकार आगे कदम बढ़ा सकती है।
सरकार ने ऐसा संकेत आर्थिक समीक्षा-2013-14 में दिया है जिसे वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बुधवार को संसद में पेश किया। आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि जीएसटी लागू करने की दिशा में पहला कदम सेनजीएसटी हो सकता है। सेनजीएसटी के लागू होने पर इसके लिए बनी सूचना प्रौद्योगिकी प्रणाली का भी परीक्षण हो जायेगा और केंद्र व राज्यों के लिए जीएसटी लागू करना आसान हो जाएगा।
उल्लेखनीय है कि दो तरह का जीएसटी लागू करने का विचार है- केंद्रीय जीएसटी और राज्य जीएसटी। इसलिए आर्थिक समीक्षा में पहले केंद्रीय जीएसटी को लागू करने की बात कही गयी है।
समीक्षा में कहा गया है कि इस बात पर आम राय है कि भारत में अप्रत्यक्ष कर सुधारों की दिशा में जीएसटी मील का पत्थर साबित होगा। जीएसटी के लागू होने पर एक राष्ट्रीय बाजार होगा, विभिन्न तरह के टैक्स खत्म हो जायेंगे, आयात और निर्यात पर सही तरीके से टैक्स लगाये जायेंगे। इससे न सिर्फ उत्पादन की प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी बल्कि भारत से निर्यात भी बढ़ेगी।
आर्थिक समीक्षा में जीएसटी के साथ-साथ प्रत्यक्ष कर संहिता को भी लागू करने की सिफारिश की गयी है।
आर्थिक समीक्षा में मौजूदा कर ढांचे में कई बदलाव के संकेत भी मिलते हैं। समीक्षा में कहा गया है कि उपकर (सेस), अधिभार (सरचार्ज), लेन-देन पर कर और लाभांश वितरण कर को लोक वित्त के सिद्धांतों में खराब माना जाता है इसलिए इन्हें खत्म करने की जरूरत है। कर संबंधी विसंगतियों को खत्म करने से सक्षमता बढ़ सकती है और विकास दर को बढ़ावा मिल सकता है।
उद्योग जगत पर अधिक कर न लगाने की वकालत करते हुए आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि दुनियाभर में उभरती अर्थव्यवस्थाओं में कंपनियों पर सर्वाधिक कर भारत में ही है। इसलिए बेहतर होगा कि उभरती अर्थव्यवस्थाओं में कर की जो दरें हैं उसके औसत के बराबर कर दर हम भारत में रखें। ऐसा होने पर वैश्रि्वक और भारतीय कंपनियों के लिए निवेश का अच्छा स्थान होगा।
समीक्षा में भारत की कर व्यवस्था को जटिल करार देते हुए कहा गया है कि कर संरचना और प्रशासन में समस्याएं हैं।