ग्रीस संकट पर भारत सरकार सतर्क, एफडीआई को लेकर बढ़ी चिंता
ग्रीस की तरफ से अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आइएमएफ) और यूरोपीय संघ की शर्तों के आगे झुकने से साफ मना किए जाने के बाद भारत सरकार भी सतर्क हो गई है। ग्रीस के इस फैसले के बाद उसका लोन चुकाने से डिफॉल्ट करना और यूरो जोन से से बाहर होना तय है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। ग्रीस संकट से सीधे तौर पर भारतीय अर्थव्यवस्था का बहुत कुछ लेना-देना नहीं है, मगर जिस तरह से यह यूरोपीय देश अनिश्चित आर्थिक संकट में धंसता जा रहा है उसे लेकर चिंता बढ़ी है। इसकी झलक सोमवार को शेयर, मुद्रा, बांड, सराफा हर वित्तीय बाजार में दिखाई दी। स्थिति की गंभीरता को समझते हुए वित्त मंत्रालय और रिजर्व बैंक के अधिकारी पूरे हालात पर पैनी नजर रखे हुए हैं। केंद्र सरकार को इस बात की चिंता है कि वैश्विक हालात में बदलाव से कहीं विदेशी निवेशक देश से पलायन नहीं करने लगें।
वित्तीय बाजार में अस्थिरता
ग्रीस की तरफ से यूरोपीय संघ की शर्तों के आगे नहीं झुकने के फैसले के बाद शेयर बाजार काफी गिरावट के साथ खुला। एक समय तक सेंसेक्स में 600 अंकों की गिरावट आ चुकी थी। स्थिति को संभालने के लिए वित्त मंत्रालय के सबसे बड़े अधिकारी वित्त सचिव को बयान देना पड़ा। इसका असर हुआ। सेंसेक्स कुछ संभला, मगर यह सूचकांक 166 अंको की गिरावट के साथ बंद हुआ। यही हाल मुद्रा बाजार भी रहा। भारतीय मुद्रा 20 पैसे कमजोर होकर 63.85 रुपये प्रति डॉलर पर आ गई। शेयरों में अनिश्चितता को देख सराफा बाजार में खरीदारी शुरू हो गई। इससे सोना 240 रुपये प्रति दस ग्राम की बढ़त पर बंद हुआ। बांड बाजार में भी तेजी का रुख रहा। बाजार के जानकारों का कहना है कि जब तक ग्रीस संकट को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं हो जाती है, तब तक भारतीय वित्तीय बाजार इसी तरह की अनिश्चितता में रहेंगे।
केंद्र सरकार परेशान
वैसे तो भारत और ग्रीस के बीच खास द्विपक्षीय कारोबार नहीं होता। इसके बावजूद सरकार ग्रीस संकट के गहराने की संभावना से परेशान है। यही वजह है कि वित्तीय बाजार में उथल-पुथल होते देख वित्त सचिव राजीव महर्षि ने मीडिया से बात की। महर्षि ने कहा, 'ग्रीस संकट का भारत पर सीधा असर नहीं पड़ेगा, लेकिन परोक्ष तौर पर असर पड़ सकता है। खास तौर पर अगर यूरोपीय देशों में ब्याज दरें बढ़ती हैं, तो विदेशी संस्थागत निवेशक यानी एफआइआइ भारत से अपने पैसे बाहर निकल सकते हैं। हालात पर हम नजर रखे हुए हैं। रिजर्व बैंक के साथ भी बातचीत हो रही है। वह अपने स्तर पर कदम उठाने को तैयार है। वित्त मंत्रालय के प्रमुख आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमणियन और वाणिज्य सचिव राजीव खेर ने भी संकट से भारतीय अर्थव्यवस्था पर खास असर नहीं पडऩे की बात कही है। हाल ही में भारत ने इस देश को इंजीनियरिंग उत्पादों का निर्यात बढ़ाना शुरू किया है। इसके प्रभावित होने की आशंका है, लेकिन देश के कुल निर्यात में इसका हिस्सा काफी कम है।
क्या है ग्रीस संकट
वर्ष 2008 से ही ग्रीस आर्थिक संकट से जूझ रहा है। यूरोपीय संघ व अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आइएमएफ) समेत अन्य कर्जदाताओं ने ग्रीस पर बकाया 107 अरब यूरो के कर्ज को नए सिरे से पुनर्गठित किया। इसे एक बेलआउट पैकेज दिया। इस पैकेज के मुताबिक ग्रीस को कर्ज राशि 30 जून, 2015 को लौटानी है। ग्रीस की आर्थिक स्थिति नहीं सुधर पाई। सरकार के पास भुगतान को पैसे नहीं है, लेकिन वह यूरोपीय संघ की सुधार संबंधी नई शर्तों को मानने के लिए भी तैयार नहीं है। मंगलवार को अगर ग्रीस भुगतान नहीं करता है तो वह तकनीकी तौर पर कर्ज नहीं लौटाने वाला यानी डिफॉल्टर राष्ट्र घोषित हो सकता है। ग्रीस सरकार ने संकट के विकराल होने से रोकने के लिए बैंकों से बड़ी राशि की निकासी पर पांच दिनों की रोक लगा दी है।
तत्कालिक असर
-सेंसेक्स 600 अंक लुढ़ककर फिर संभला
-अंत में यह 166 अंकों की गिरावट के साथ बंद
-रुपया 20 पैसा कमजोर, मगर सराफा बाजार में तेजी
दीर्घकालिक प्रभाव
-सरकार को संस्थागत निवेशकों के देश से बाहर जाने का भय
-वित्त मंत्रालय और रिजर्व बैंक रखे हुए हैं हालात पर पैनी नजर
-डॉलर और यूरो के प्रभावित होने से भारत को ज्यादा चिंता
-विदेश से कर्ज ले चुकी घरेलू कंपनियों पर बढ़ सकता है बोझ
ग्रीस संकट से हम वैसे ही निपटने को तैयार हैं, जैसे कि अन्य देश। भारतीय अर्थव्यवस्था पर इसका सीधा कोई खास नहीं पड़ेगा।
-अरविंद सुब्रमणियन, प्रमुख आर्थिक सलाहकार
मुश्किल में ग्रीस, हो सकता है यूरो से बाहर
ब्रसेल्स। ग्रीस यूरोजोन से अलग होने की कगार पर खड़ा है। बेलआउट प्रस्ताव पर जनमत संग्रह में ग्रीस को 'हां' कहना है। नहीं तो उसे अलग रास्ता चुनना होगा। यूरोपीय कमीशन के प्रमुख जीन क्लाउड जंकर ने ग्रीसवासियों से 'हां' के पक्ष में वोट करने की अपील की है।
ग्रीस के प्रधानमंत्री एलेक्सिस सिप्रास के रवैये पर रोष प्रकट करते हुए जंकर ने वामपंथी सरकार से वोटरों को कम से कम अब सच बोल देने को कहा है। यूरोजोन के गुस्साए वित्त मंत्रियों ने शनिवार को उसके बेलआउट एग्रीमेंट को विस्तार देने से मना कर दिया। वोट की तारीख आने तक यह करार उसे 30 जून के आगे भी वित्तीय रूप से चलता रहने देता। हाथ खींचते ही ग्रीस में अफरातफरी मच गई। सोमवार से एक हफ्ते तक बैंकों को बंद करने के आदेश जारी कर दिए गए। पैसा निकालने के लिए लोग एटीएम पर टूट पड़े तो वे खाली हो गए। मंगलवार को एटीएम खुलेंगे, मगर किसी को भी 60 यूरो से ज्यादा की राशि नहीं मिलेगी। बिगड़ते आर्थिक हालात से ग्रीसवासी दहशत में हैं।
पेट्रोल पंपों पर लंबी लाइनें नजर आने लगी है। पैसा नहीं होने से पेट्रोलियम का आयात भी ठप हो सकता है। ग्रीस पिछले छह साल से भारी वित्तीय संकट से जूझ रहा है। रविवार को यूरोपियन सेंट्रल बैंक (ईसीबी) ने उसे और कर्ज देने से इन्कार कर दिया। इसके बाद हालात और बदतर हो गए हैं। नकदी का संकट होने से सरकार ने कई वित्तीय पाबंदियां लगा दी हैं। सात जुलाई तक शेयर बाजार भी नहीं खुलेंगे। बेलआउट प्रस्ताव पर 'नहीं' का साफ मतलब है कि ग्रीस डिफॉल्ट कर जाएगा। उसे अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आइएमएफ) का 1.5 अरब यूरो का बकाया 30 जून तक यानी मंगलवार तक लौटाना है। बेलआउट के विस्तार के सिप्रास के नए अनुरोध को लेनदार नहीं मानते हैं तो उसका संकट बढ़ना तय है।
खर्चों में कटौती नहीं करने का वादा कर सत्ता में आई सिप्रास सरकार ने वोटरों को सलाह दी है कि वह डील के समर्थन में वोट न करें। यह उनके लिए और शर्मिंदगी लाएगा।