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आरबीआइ गवर्नर के वीटो पावर पर फंसी सरकार

ब्याज दरें तय करने में रिजर्व बैंक के गवर्नर के वीटो पावर को छीनने संबंधी प्रस्ताव पर उठे विवाद के बाद सरकार अब इससे पल्ला झाड़ती नजर आ रही है। वित्त मंत्रालय ने सोमवार को साफ किया कि उसने इस बारे में अभी कोई निर्णय नहीं किया है। इसलिए यह

By Rajesh NiranjanEdited By: Published: Mon, 03 Aug 2015 09:17 PM (IST)Updated: Mon, 03 Aug 2015 09:55 PM (IST)
आरबीआइ गवर्नर के वीटो पावर पर फंसी सरकार

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। ब्याज दरें तय करने में रिजर्व बैंक के गवर्नर के वीटो पावर को छीनने संबंधी प्रस्ताव पर उठे विवाद के बाद सरकार अब इससे पल्ला झाड़ती नजर आ रही है। वित्त मंत्रालय ने सोमवार को साफ किया कि उसने इस बारे में अभी कोई निर्णय नहीं किया है। इसलिए यह कहना सही नहीं है कि सरकार रिजर्व बैंक (आरबीआइ) की शक्तियां कम करना चाहती है। आइएफसी के संशोधित मसौदे में कहा गया है कि मौद्रिक नीति पर फैसला रिजर्व बैंक की सात सदस्यीय समिति को करना चाहिए। इस फैसले में आरबीआइ गवर्नर को कोई वीटो पावर हासिल नहीं होगा।

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मंत्रालय ने यह स्पष्टीकरण पिछले हफ्ते भारतीय वित्तीय कोड (आइएफसी) का संशोधित मसौदा जारी होने के बाद दिया है। इसमें मौद्रिक नीति तय करने के संबंध में आरबीआइ गवर्नर के वीटो पावर को छीनने का प्रावधान है। वित्त मंत्रालय ने 23 जुलाई को यह मसौदा अपनी वेबसाइट पर जारी किया था। इसके बाद से इस पर विवाद खड़ा हो गया। आरबीआइ गवर्नर ने शुक्रवार को वित्त मंत्री अरुण जेटली से मुलाकात की थी।

वित्त सचिव राजीव महर्षि ने सोमवार को जल्दबाजी में संवाददाताओं को बुलाकर इस मुद्दे पर सरकार की स्थिति स्पष्ट करने का प्रयास किया। हालांकि महर्षि यह बताने में नाकाम रहे कि मौद्रिक नीति तय करने को लेकर आरबीआइ गवर्नर की वीटो शक्ति छीनने का यह प्रस्ताव आइएफसी के मसौदे में आखिर किसका था।

महर्षि ने कहा कि सरकार ने वित्त कोड के मसौदे पर अभी निर्णय नहीं किया है। सरकार ने अभी इस पर सुझाव मांगे हैं। यह अभी विचाराधीन है। सरकार इस पर विचार कर रही है। इसलिए यह निष्कर्ष निकालना कि आरबीआइ की शक्तियां कम की गई हैं या सरकार ने ऐसा करने का फैसला किया है, सही नहीं होगा। वित्त कोड के मसौदे पर सरकार का दृष्टिकोण उस समय सामने आएगा जब इससे संबंधित विधेयक संसद की मंजूरी और विचार के लिए पेश किया जाएगा।

इससे पहले मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमणियन ने कहा था कि आइएफसी का संशोधित मसौदा वित्तीय क्षेत्र विधायी सुधार आयोग की रिपोर्ट पर आधारित है। हालांकि एफएसएलआरसी के सदस्य एम गोविन्द राव ने इसका खंडन कर दिया था। एफएसएलआरसी ने दो साल पहले मार्च, 2013 में मौद्रिक नीति समिति बनाने का सुझाव दिया था। इसमें उसने आरबीआइ गवर्नर को वीटो पावर देने का सुझाव दिया था। एफएसएलआरसी का गठन 2011 में वित्तीय क्षेत्र के कानूनों में जरूरी संशोधन सुझाने के लिए किया गया था। जस्टिस बीएन श्रीकृष्ण की अध्यक्षता वाले इस आयोग ने तत्कालीन वित्त मंत्री पी चिदंबरम को रिपोर्ट सौंपी थी।

महर्षि के मुताबिक, वित्त मंत्रालय ने अपनी वेबसाइट पर जो संशोधित मसौदा रखा है, उस पर कहीं भी इसका उल्लेख नहीं है कि यह एफएसएलआरसी की सिफारिश है। जब उनसे पूछा गया कि आखिर यह संशोधित मसौदा किसका है तो वित्त सचिव ने कहा कि भारत की जनता इस मसौदे की मालिक है। इसलिए यह मसौदा सार्वजनिक किया गया है।

बहुमत के आधार पर होता फैसला

वित्त सचिव ने कहा कि अधिकतर देशों में केंद्रीय बैंक का गवर्नर मौद्रिक नीति तय नहीं करता। दुनियाभर में जिन 26 देशों में केंद्रीय बैंक मुद्रास्फीति को नियंत्रित करता है, उनमें से 18 देशों में मौद्रिक नीति बहुमत के आधार पर तय होती है न कि आम सहमति से और गवर्नर भी अपने मताधिकार का इस्तेमाल कर सकता है। यह पूछे जाने पर कि क्या मौद्रिक नीति समिति का गठन आइएफसी के पेश होने पर ही निर्भर करेगा, महर्षि ने कहा कि सरकार और रिजर्व बैंक ने मौद्रिक नीति फ्रेमवर्क समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। इसलिए यह समिति अहम हो गई है। इस संबंध में सरकार और केंद्रीय बैंक के बीच एक समिति बनी है। इसका खुलासा संसद में किया जाएगा। आरबीआइ के बोर्ड में वित्त सचिव की जगह वित्त मंत्रालय के अतिरिक्त सचिव को नामित किए जाने के सवाल पर महर्षि ने कहा कि यह सरकार का अधिकार है कि बोर्ड में किसे नामित किया जाए। इसलिए वह इस बारे में कुछ टिप्पणी नहीं करेंगे।

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