ऑनलाइन रिटेल पर असमंजस में सरकार
ऑनलाइन रिटेल कंपनियों के बढ़ते कद और कारोबार पर अंकुश लगाने को लेकर मोदी सरकार असमंजस में है। वोट बैंक की राजनीति जहां ऑनलाइन रिटेल पर अंकुश लगाने की वकालत कर रही है, वहीं टैक्स व ट्रांजैक्शन संबंधी पारदर्शिता के कारण राजस्व विभाग इसे बढ़ावा देने के पक्ष में है। राजस्व विभाग
नई दिल्ली [अवनीश कुमार मिश्र]। ऑनलाइन रिटेल कंपनियों के बढ़ते कद और कारोबार पर अंकुश लगाने को लेकर मोदी सरकार असमंजस में है। वोट बैंक की राजनीति जहां ऑनलाइन रिटेल पर अंकुश लगाने की वकालत कर रही है, वहीं टैक्स व ट्रांजैक्शन संबंधी पारदर्शिता के कारण राजस्व विभाग इसे बढ़ावा देने के पक्ष में है।
राजस्व विभाग से जुड़े सूत्रों के मुताबिक टैक्स व ट्रांजैक्शन के लिहाज से ऑनलाइन रिटेल कंपनियां ज्यादा पारदर्शी हैं। ऑनलाइन रिटेल कंपनियों के कुल कारोबार का दो तिहाई हिस्सा क्त्रेडिट व डेबिट कार्ड या इंटरनेट बैंकिंग के जरिये होता है। जिन मामलों में कैश ऑन डिलीवरी के जरिये सौदा किया जाता है, वहां भी खरीदार के बारे में पूरी जानकारी होती है। वस्तुत: ऑनलाइन रिटेल में सामान को घर पर डिलीवर किया जाता है, इसलिए खरीदार का पता भी सत्यापित हो जाता है। सही पते की जानकारी होने पर आयकर विभाग की वार्षिक सूचना विवरणी से खरीदार का मिलान करना आसान हो जाता है। खुदरा दुकानों में 70 फीसद तक खरीदारी नकद में होती है। अधिकांश मामलों में पता भी गलत लिखाया जाता है। लिहाजा आयकर विभाग के लिए असली खरीदार का पता लगाना मुश्किल होता है।
राजस्व विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि काले धन पर अंकुश लगाने के लिहाज से सरकार प्लास्टिक मनी को बढ़ावा देना चाहती है। ऑनलाइन रिटेल सरकार की इस नीति के अनुरूप है। ऑनलाइन रिटेल कंपनियां टैक्स की अदायगी के मामले में ईमानदार हैं। चाहे वैट की अदायगी हो या सर्विस टैक्स की, ये कंपनियां समुचित टैक्स काट कर समय से जमा करा देती हैं। विभाग नकली ग्राहक बनकर टैक्स बचाने के लिए बिना बिल का सामान लेने की कई कोशिशें कर चुका है, पर कोई भी कंपनी राजी नहीं हुई।