ग्लोबल कार कंपनियों को अब समझ आया, मुश्किल बाजार है भारत
कार बनाने वाली ग्लोबल कंपनियों ने भारत के लिए नीतियों की समीक्षा कर रही हैं।
नई दिल्ली। कार बनाने वाली ग्लोबल कंपनियां भारत के लिए नीतियों की समीक्षा कर रही हैं। वे हर हाल में बिक्री बढ़ाना चाहती हैं। वजह यह है कि कार मार्केट एक बार फिर रफ्तार पकड़ता नजर आ रहा है और प्रमुख स्थानीय कंपनियों ने दाम बढ़ाने शुरू कर दिए हैं।
पिछले हफ्तों जनरल मोटर्स, निसान मोटर और रेनो जैसी कंपनियों ने सैकड़ों कर्मचारियों की छंटनी की घोषणा कर चुकी हैं। इनमें से कुछ ने पहले ही उत्पादन घटा दिया है। विश्लेषकों ने आशंका जताई है कि आगे भी ऐसे कड़े फैसले किए जाएंगे। फॉक्सवैगन एजी ग्रुप की स्कोडा ऑटो जैसी कुछ दूसरी कंपनियां भारतीय बाजार में अपनी जड़े नए सिरे से जमाने की कोशिश में हैं। मसलन, स्कोडा की प्रीमियम कारों पर फोकस किया जा रहा है।
निसान इंडिया के प्रेसिडेंट गिलॉम सिकार्ड ने कहा, 'भारत दुनिया के सबसे आसान बाजारों में शुमार नहीं है।' उनकी यह टिप्पणी दक्षिण भारत स्थित रेनो-निसान के संयुक्त प्लांट से सैकड़ों कर्मचारियों की छंटनी के बाद आई।
बहरहाल, भारतीय कार बाजार में एक बार फिर रिकवरी के संकेत नजर आने लगे हैं। इस मार्च के दौरान इस बाजार में तेजी शुरू हुई थी, जिसके बाद हर महीने बिक्री बढ़ने के आंकड़े आ रहे हैं। लेकिन बेहतर होते हालात का सबसे ज्यादा फायदा मुख्य रूप से मारुति सुजुकी इंडिया जैसी अग्रणी स्थानीय कंपनियों को हो रहा है। जुलाई के आंकड़े दर्शाते हैं कि एक दशक से भी ज्यादा समय बाद इस कंपनी की बाजार हिस्सेदारी एक बार फिर 50 प्रतिशत से अधिक हो गई।
मार्च के अंत में खत्म हुए साल के दौरान भारत में पैसेंजर कारों की बिक्री 5 प्रतिशत बढ़ी, लेकिन इसी अवधि में रेनो, जीएम, फॉक्सवैगन, स्कोडा और फोर्ड जैसी ग्लोबल कार कंपनियों की बिक्री दो अंकों में घटी। इसके उलट मारुति और हुंडइर्घ् मोटर की बिक्री में 11 प्रतिशत का इजाफा हुआ।
मौजूदा स्थिति यह है कि मारुति और हुंडई भारत के बेस्ट सेलिंग ब्रांड्स बन गए हैं। अब इन कंपनियों ने वैसे वाहनों (एसयूवी) के बाजार में भी दखल देना शुरू कर दिया है, जहां कभी रेनो, निसान और फोर्ड जैसी कंपनियों की बादशाहत थी। उदाहरण के लिए मारुति सुजुकी इंडिया ने हाल ही में एक सेडान-एसयूवी क्रॉसओवर मॉडल लॉन्च किया, जबकि हुंडई ने क्रेटा एसयूवी बाजार में उतारी है।
उम्मीद के मुताबिक बिक्री नहीं
ग्राहकों की विशाल तादाद और आबादी के मुताबिक कारों की कम पहुंच जैसी आकर्षक स्थिति को देखते हुए वाहन कंपनियों ने भारत में तेली से क्षमता विस्तार किया। उन्हें उम्मीद थी कि यहां बिक्री इस कदर बढ़ेगी कि साल 2020 तक भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा कार बाजार बन जाएगा। लेकिन, बिक्री उम्मीद के मुताबिक नहीं बढ़ पाई। इस मामले में छोटे मॉडलों की कमी, कमजोर डीलर नेटवर्क और बिक्री बाद सर्विस की ज्यादा लागत बड़ी बाधा साबित हुई।निसान ने एक खास प्रयोग किया। पिछले साल कंपनी ने डैटसन ब्रांड की सस्ती कारें भारतीय बाजार में उतारी, लेकिन बिक्री बढ़ाने में विफल रही। कारण यह रहा कि छोटे शहरों में कंपनी की डीलरशिप की कमी है, जबकि ऐसे शहरों में ही छोटी सस्ती कारों की सबसे ज्यादा मांग होती है।
सलाहकार फर्म पीडब्ल्यूसी के ऑटोमोटिव हेड अब्दुल माजीद ने कहा, 'उन्होंने भारत को इस नजरिए से देखा कि यह ऐसा बाजार है, जहां उनकी मौजूदगी होनी चाहिए। लेकिन वे समझ नहीं पाए कि भारत बिलकुल अलग तरह का बाजार है।'
माजीद ने कहा, 'उन्हें लगा कि यदि वे अच्छी कीमत पर कार पेश करेंगे, तो लोग उन्हें खरीदेंगे। लेकिन यहां केवल शुरुआती कीमत पर बात नहीं बनती। ग्राहक ईंधन की कम खपत और कार रखने की पूरी खपत जैसी दूसरी चीजों पर भी गंभीरता से गौर करते हैं।'
बहरहाल, निसान और रेनो का कहना है कि वे नए मॉडलों के सहारे प्रतिस्पर्धा का सामना करेंगे, खास तौर पर छोटी कारों की बदौलत। इसके लिए वे डीलर नेटवर्क बढ़ाएंगे। जीएम लोकल-मेड 10 नए मॉडलों पर दांव लगा रही है, जिन्हें अगले पांच वर्षों के दौरान उतारा जाएगा। स्कोडा ने भी अगले साल तीन प्रीमियम सेडान लॉन्च करने की योजना बनाई है।