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GST बिल से होने वाली क्षतिपूर्ति के लिए वित्त मंत्री ने की सैस की वकालत

जेटली ने सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक पर कहा कि समाज के अलग-अलग वर्गो के इस्तेमाल की वस्तुओं पर कर की दरें भी अलग रखनी होंगी।

By Atul GuptaEdited By: Published: Wed, 26 Oct 2016 08:46 PM (IST)Updated: Wed, 26 Oct 2016 09:49 PM (IST)
GST बिल से होने वाली क्षतिपूर्ति के लिए वित्त मंत्री ने की सैस की वकालत

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। जीएसटी लागू होने पर राज्यों को होने वाली राजस्व हानि की भरपाई के लिए तंबाकू और लग्जरी उत्पादों पर सैस लगाने के प्रस्ताव की वकालत की है। वित्त मंत्री का कहना है कि राज्यों को राजस्व क्षतिपूर्ति के लिए अगर जीएसटी की दर में अतिरिक्त वृद्धि की जाती है तो यह बहुत अधिक और असहनीय होगी।

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वित्त मंत्री ने यह वक्तव्य ऐसे समय दिया है जब तीन और चार नवंबर को जीएसटी काउंसिल की बैठक होने जा रही है। काउंसिल की इस बैठक में जीएसटी की दरें तय की जाएंगी। केंद्र ने जीएसटी की चार दरें- 6 प्रतिशत, 12 प्रतिशत, 18 प्रतिशत और 26 प्रतिशत रखने का प्रस्ताव किया है। इसके अलावा लग्जरी वस्तुओं और तंबाकू उत्पादों पर सैस लगाने तथा सोने पर चार प्रतिशत जीएसटी का प्रस्ताव काउंसिल के समक्ष रखा है। काउंसिल की 18 और 19 अक्टूबर को हुई बैठक में इस संबंध मंे चर्चा भी हुई थी लेकिन इस पर कोई सहमति नहीं बन पायी।

जेटली ने सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक पर कहा कि समाज के अलग-अलग वर्गो के इस्तेमाल की वस्तुओं पर कर की दरें भी अलग रखनी होंगी। अन्यथा जीएसटी प्रतिकूल होगा। एयरकंडीशनर्स और हवाई चप्पल पर टैक्स की दर समान नहीं रखी जा सकती। साथ ही इतना टैक्स वसूलना होगा जिससे कि राजस्व हानि न हो। सरकार को न तो राजस्व की हानि हो और न ही उसे अचानक से लाभ हो।

जेटली ने सैस लगाने के पीछे विचार को बताते हुए कहा कि अगर केंद्र सरकार को राज्यों को राजस्व हानि की भरपाई के लिए धन उधार लेना पड़ा तो इससे उसकी देयता बढ़ जाएगी जिससे केंद्र, राज्य और निजी क्षेत्र के लिए कर्ज महंगा हो जाएगा। उन्होंने कहा कि इस उद्देश्य के लिए प्रत्यक्ष कर की दर बढ़ाना भी तार्किक नहीं है। सिद्धांतत: यह भी तर्क दी गयी है कि सैस की जगह जीएसटी की अतिरिक्त दर के माध्यम से भी राज्यों को राजस्व की क्षति की पूर्ति की जा सकती है।

जेटली ने कहा कि अगर पहले वर्ष 50,000 करोड़ रुपये राजस्व क्षति की पूर्ति करने की जरूरत पड़ती है तो टैक्स के माध्यम से इसके लिए धनराशि जुटाना बहुत मुश्किल होगा। ऐसी स्थिति में केंद्र सरकार को 50,000 करोड़ रुपये क्षतिपूर्ति के लिए 1.72 लाख करोड़ रुपये टैक्स जुटाना होगा। जेटली ने कहा कि जीएसटी के माध्यम से जो भी राशि आएगी उसका 50 प्रतिशत राज्यों को जीएसटी का हिस्सा चला जाएगा जबकि शेष 50 प्रतिशत राशि का 42 प्रतिशत राज्यों को डिवोल्युशन के तौर पर चला जाएगा। इस तरह 100 रुपये जीएसटी में केंद्र के पास मात्र 29 रुपये बचेंगे। ऐसे में इस टैक्स का प्रभाव काफी अधिक असहनीय होगा।

जेटली ने कहा कि इसके विकल्प के तौर पर सैस लगाए जा सकते हैं जिन्हें पांच साल बाद जीएसटी में ही समाहित कर दिया जाएगा। ये सैस तंबाकू और लग्जरी उत्पादों पर लगाए जा सकते हैं। साथ ही स्वच्छ ऊर्जा सैस भी लगाया जा सकता है। इससे न तो करदाताओं पर कोई प्रभाव पड़ेगा और न ही राज्यों को राजस्व हानि होगी।

जेटली ने कहा कि अगर सैस लगाया जाता है तो ऐसी स्थिति में जिन लोगों को जीएसटी से लाभ होगा उन्हें राजस्व हानि होने वाले राज्यों को भरपाई नहीं करनी पड़ेगी। केंद्र को भी इस प्रक्रिया मंे कोई लाभ नहीं होगा। ऐसे में सैस के माध्यम से राज्यों को राजस्व हानि की भरपाई करने से करदाताओं पर अधिक बोझ भी नहीं पड़ेगा।

जेटली ने कहा कि सरकार ने काउंसिल के समक्ष जीएसटी की चार दरों का प्रस्ताव किया है जबकि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति की बास्केट में शामिल 50 प्रतिशत वस्तुओं को जीएसटी से छूट दी गयी है। ऐसी वस्तुओं पर जीएसटी की जीरो दर रखी गयी है। उन्होंने कहा कि इस कवायद की कोशिश यह है कि जीएसटी की दरें ऐसी न हों जिससे आम लोगों पर टैक्स का बोझ अधिक पड़े।

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