लिफाफों में करोड़ों लेकर निकले यात्री
काले धन को लेकर अमीर देशों की कड़ाई का असर एक नए रूप में सामने आ रहा है। स्विस बैंकों में करोड़ों का काला धन छुपाने वाले अब इसकी वापसी की जुगत में लग गए हैं। ऐसे लोग स्विस बैंकों से नकदी निकाल उसे छिपाकर ला रहे हैं। इसकी वजह बना है यूरोपीय देशों और अमेरिका के साथ स्विट्जरलैंड सरकार का करार। काले धन की जन्नत कह
पेरिस। काले धन को लेकर अमीर देशों की कड़ाई का असर एक नए रूप में सामने आ रहा है। स्विस बैंकों में करोड़ों का काला धन छुपाने वाले अब इसकी वापसी की जुगत में लग गए हैं। ऐसे लोग स्विस बैंकों से नकदी निकाल उसे छिपाकर ला रहे हैं। इसकी वजह बना है यूरोपीय देशों और अमेरिका के साथ स्विट्जरलैंड सरकार का करार। काले धन की जन्नत कहा जाने वाला स्विट्जरलैंड प्रमुख देशों के भारी दबाव में इस करार पर दस्तखत करने को मजबूर हुआ। इसके तहत स्विस बैंकों को खुद अपने यहां धन जमा करने वाले के खाते से टैक्स काटकर उसके देश की सरकार को देना होता है।
इससे बचने के लिए लोग क्या-क्या उपाय आजमा रहे हैं इसका पर्दाफाश फ्रांस, इटली और स्पेन समेत कई यूरोपीय देशों के कस्टम अधिकारियों ने किया है। देखिए, इसका एक नजारा। पेरिस स्टेशन के प्लेटफॉर्म पर एक कारोबारी ट्रेन का इंतजार कर रहा है। इसमें कुछ भी असामान्य नहीं है। मगर टैक्स अफसरों की तेज नजर से वह बच नहीं पाया। उन्होंने तलाशी ली तो उसके पास से लिफाफों में भरे 3.5 लाख यूरो निकले। पूछने पर पता चला कि वह बेल्जियम की ट्रेन पकड़ने वाला था। यह रकम जब्त कर ली गई। यूरोपीय संघ के नियमानुसार कोई भी व्यक्ति 10 हजार यूरो से ज्यादा की नकदी अधिकारियों को पूर्व जानकारी दिए बिना लेकर नहीं चल सकता है।
यह कोई अकेला मामला नहीं है। अब बोरिस बॉइलन को ले लीजिए। वह इराक और ट्यूनीशिया में फ्रांसीसी राजदूत रह चुके हैं। उन्हें फ्रांस का लीजन द ऑनर सम्मान भी मिल चुका है। इस साल जुलाई में वह भी अच्छी खासी नकदी के साथ कस्टम अधिकारियों के चंगुल में आ गए। यह रकम उन्होंने अपनी गोपनीयता के लिए कुख्यात स्विस बैंक के खाते से निकाली थी। इसे लेकर वह फ्रांस लौटे थे। मकसद था उनकी काली कमाई पर टैक्स न कटे, और न ही उन पर टैक्स चोरी का दाग लगे।
स्विटजरलैंड से आने वाले कारोबारियों, पेशेवरों और पर्यटकों ही नहीं, राजनयिकों से भी ऐसी रकम की जब्ती आम बात हो गई है। कई बार तो भारत-चीन समेत एशियाई देशों के काले धन को भी ठिकाने लगाने या फिर मनीलांड्रिंग के लिए नकदी को यूरोपीय देशों में ले जाया जा रहा है। नकदी को ले जाने के लिए लगेज, केक बॉक्स, पोटैटो चिप्स बैग से लेकर बच्चों की जेब का भी इस्तेमाल किया जा रहा है। अक्सर ये 500 यूरो के नोट की गड्डियां होती हैं।
रंग लाई ओईसीडी की कोशिशें
स्विट्जरलैंड की सरकार ने कई देशों के साथ बीते वर्ष तो कुछ के साथ इस साल टैक्स चोरी रोकने की संधि पर हस्ताक्षर किए हैं। हालिया वित्तीय संकट के बाद अमीर देशों का संगठन काले धन के खिलाफ हाथ धोकर पड़ गया था। लोग कर चुकाने के बजाय अपनी काली कमाई स्विस बैंकों समेत कई टैक्स हैवेन में ले जाकर जमा कर रहे थे। इसके खिलाफ ओईसीडी ने लगातार अभियान चलाकर अंतरराष्ट्रीय दबाव बनाया।
अब स्विस बैंकों को अपने यहां धन जमा करने वाले ग्राहकों के खाते से हर साल टैक्स काटकर उनके देशों को सौंपना पड़ रहा है। भारत को भी इस पहल का लाभ मिलना तय है।