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यूरोप में पैर पसार रहा ड्रैगन

भारत में कारोबारी नियमों की सुस्ती का फायदा अक्सर चीन के हक में जाता है। अफ्रीका से लेकर यूरोपीय मुल्कों के साथ साझेदारी के मुद्दे पर भारत की सुस्ती ड्रैगन को अपने पंख फैलाने का मौका दे देती है।

By Anjani ChoudharyEdited By: Published: Thu, 16 Oct 2014 10:38 PM (IST)Updated: Thu, 16 Oct 2014 10:38 PM (IST)
यूरोप में पैर पसार रहा ड्रैगन

हेलसिंकी [प्रणय उपाध्याय]। भारत में कारोबारी नियमों की सुस्ती का फायदा अक्सर चीन के हक में जाता है। अफ्रीका से लेकर यूरोपीय मुल्कों के साथ साझेदारी के मुद्दे पर भारत की सुस्ती ड्रैगन को अपने पंख फैलाने का मौका दे देती है। कुछ ऐसी ही कहानी फिनलैंड के साथ भारत के रिश्तों की भी है, जहां पुराने रिश्तों पर चीनी सक्रियता भारी पड़ रही है।

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दुनिया में तकनीक और इनोवेशन की बड़ी ताकत कहलाने वाले छोटे से मुल्क फिनलैंड में भारत के मुकाबले चीनी छात्रों की संख्या करीब चार गुना है। फिनिश कंपनियों के साथ कारोबार के लिहाज से भी चीन दोगुना बड़ी संख्या रखता है। भारत में मौजूद फिनिश कंपनियों की संख्या अगर 130 है, तो चीन में 300।

फिनलैंड के राष्ट्रपति साउली नीनिस्तो कहते हैं कि भारत को लेकर लंबे वक्त से फिनिश नागरिकों की सोच सकारात्मक रही है। हालांकि यह सही है कि बीते कुछ समय में भारत के मुकाबले चीन के साथ फिनलैंड की तकनीकी साझेदारी में काफी इजाफा हुआ। लेकिन भारत-फिनलैंड सहयोग में काफी संभावनाएं मौजूद हैं। नीनिस्तो वोडाफोन और नोकिया जैसे मामलों का हवाला देते हुए कहते हैं कि संभव है इसने निवेशकों के मन में भय पैदा किया हो।

बहरहाल, सवाल संबंधों को केवल आंकड़ों के तराजू में तौलने का नहीं है। कारोबार और रणनीतिक हितों का साधने की चीनी रणनीति का नमूना है कि दो साल पहले फिनिश कंपनी नोकिया में सॉफ्टवेयर महारथी माइक्रोसॉफ्ट की हिस्सेदारी के मद्देनजर बड़े पैमाने पर हटाए गए कर्मियों का इस्तेमाल करने में देर नहीं लगाई। फिनलैंड के रोजगार मंत्रालय में निदेशक पेत्री पेलतोनिन बताते हैं कि बीते साल चीन की टेलीकॉम उपकरण निर्माता हुआवे ने फिनलैंड में नए शोध व अनुसंधान केंद्र की शुरुआत कर दी। इसने नोकिया से बाहर हुए बड़े कर्मचारी वर्ग को रोजगार भी मुहैया करा दिया।

आर्थिक तंगी से जूझते यूरोपीय उद्योगों में चीन ने बीते पांच सालों में बड़ी तेजी से निवेश किया है। डॉयचे बैंक के आंकड़ों के मुताबिक 2010 में यूरोपीय मुल्कों में चीनी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का आंकड़ा 6.1 अरब यूरो था। अब यह चार गुना से अधिक बढ़ चुका है। यूरोजोन संकट के दौरान चीन की कंपनियों को यूरोप की तकनीक और ब्रांड को खरीदने का मौका दिया। उद्योग जगत में बड़े खरीद सौदों पर नजर रखने वाली संस्था मर्जर मार्केट इंटरनेशनल की रिपोर्ट के मुताबिक इस साल की पहली तिमाही में ही चीनी कंपनियों के यूरोप में निवेश का आंकड़ा 7.2 अरब डॉलर पहुंच गया था, जो बीते साल के मुकाबले कहीं ज्यादा है।

हालांकि सूत्र बताते हैं कि चीन के रवैये को लेकर यूरोपीय मुल्कों में खलबली भी है। पोलैंड में वारसा से एक नए राजमार्ग बनाने का ठेका चीन की कंपनी को दिया गया था जो बाद में कंपनी के रवैये को देखते हुए रद कर दिया गया। ऐसे में यूरोप के कई मुल्क लोकतांत्रिक भारत के साथ कारोबार को अधिक सुरक्षित व फायदेमंद मानते हैं। लेकिन इस उम्मीद को ठोस शक्ल देने के लिए जरूरी है कि भारत अपने बाजार की मुकम्मल मार्केटिंग भी करे और निवेश के लिए सही रणनीति भी अपनाए।

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