व्यस्तता के कारण अधूरी दवा लिख रहे डॉक्टर
हृदय के मरीजों और डॉक्टरों को यह खबर सतर्क करने वाली है। यह जानकर हैरानी होगी विशेषज्ञ डॉक्टर भी मरीजों के दर्द-ए-दिल का पूरा ख्याल नहीं रखते। इलाज के लिए पहुंचे मरीजों को डॉक्टर कई बार जरूरी दवा लेने की सलाह देना ही भूल जाते हैं। मरीजों की भीड़ व
नई दिल्ली। हृदय के मरीजों और डॉक्टरों को यह खबर सतर्क करने वाली है। यह जानकर हैरानी होगी विशेषज्ञ डॉक्टर भी मरीजों के दर्द-ए-दिल का पूरा ख्याल नहीं रखते। इलाज के लिए पहुंचे मरीजों को डॉक्टर कई बार जरूरी दवा लेने की सलाह देना ही भूल जाते हैं। मरीजों की भीड़ व व्यस्तता के कारण आनन-फानन में आधी अधूरी दवाएं लिख देते हैं।
अमेरिका के कई संस्थानों के डॉक्टरों के साथ मिलकर दिल्ली के कालरा अस्पताल द्वारा 68,195 मरीजों पर किए गए अध्ययन में यह बात सामने आई है। हाल ही में यह अध्ययन अमेरिकन जनर्ल ऑफ हार्ट एसोसिएशन में प्रकाशित हुआ है।
अमेरिका के मिनियापॉलिश हार्ट इंस्टीट्यूट सहित वहां के कई संस्थानों के डॉक्टरों ने भारत में हृदय की बीमारियों और इलाज की गुणवत्ता जानने के मकसद से यह अध्ययन शुरू किया। इस अध्ययन में कालरा अस्पताल भी शामिल है।
जनवरी, 2011 से फरवरी, 2014 तक देश के 10 अस्पतालों के ओपीडी में इलाज कराने वाले हृदय के 68,195 मरीजों का ब्योरा एकत्र कर उसका अध्ययन किया गया, जिसमें सात प्राइवेट, दो ट्रस्ट के अस्पताल व एक मेडिकल कॉलेज से जुड़ा अस्पताल शामिल है।
पुरुष मरीजों की संख्या अधिक थी : अध्ययन में पाया गया कि हृदय के मरीजों में 29.7 फीसद को उच्च रक्तचाप, 14.9 फीसद को मधुमेह, 14.8 फीसद को धमनी की बीमारी, 4 फीसद को हार्ट फेल्योर की परेशानी थी। एटियल फैब्रिलेशन से पीड़ित मरीज भी थे। 7.6 फीसद मरीज तंबाकू का सेवन करने वाले पाए गए। धमनी की बीमारी से पीड़ित 85 फीसद मरीज पुरुष थे। इस तरह उच्च रक्तचाप से पीड़ित 71 फीसद मरीज पुरुष थे। महिला मरीजों की संख्या कम थी।
48.6 फीसद मरीजों को दी गई दवा : अध्ययन में पाया गया है कि उच्च रक्तचाप से पीड़ित 48.6 फीसद मरीजों को ही एस्प्रिन की दवा दी गई। इसके अलावा कोलेस्ट्राल कम करने की दवा भी सभी मरीजों को नहीं दी गई। सिर्फ 50.6 फीसद मरीजों को स्टेटिन आधारित कोलेस्ट्राल कम करने की दवा दी गई और 2.7 फीसद मरीज को कोलेस्ट्राल कम करने की दूसरी दवा दी गई। हार्ट फेल्योर के 58 फीसद मरीजों को ही दोबारा हार्ट अटैक से बचाने वाली बीटा-ब्लोकार दवा दी गई।
बड़े पैमाने पर अध्ययन जरूरी : अध्ययन में शामिल कालरा अस्पताल के सीईओ व हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. आरएन कालरा ने कहा कि इस दवा से मरीज की आयु बढ़ जाती है। जो मरीज इस दवा को सहन कर सकता है, उसे जरूर दिया जाना चाहिए। अध्ययनकर्ताओं ने सुझाव दिया है कि हृदय के मरीजों की देखभाल के सही आंकलन के लिए बड़े पैमाने पर अध्ययन किया जाना चाहिए।
मरीजों के अनुकूल नहीं सुविधाएं : अध्ययन में यह भी सवाल उठाया गया है कि अस्पतालों में मरीजों के अनुकूल सुविधाएं नहीं है। हर बार अस्पताल जाने पर मरीज को नया ओपीडी कार्ड बनाना पड़ता है। भीड़ के चलते डॉक्टर मरीजों को कम समय देते हैं। रिकार्ड के बेहतर रखरखाव के लिए इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम अपनाया जाना चाहिए।