लेन बढ़ाने की कवायद या लेन-देन का चल रहा खेल !
भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआइ) ने एनएच-1 के दिल्ली-पानीपत खंड को एकमुश्त छह या आठ लेन में बदलने के बजाय शुरू के एक चौथाई हिस्से को आठ लेन और बाकी को छह लेन में बदलने का दोषपूर्ण निर्णय लिया। नतीजतन 15 साल बाद अब इस पूरे खंड को फिर से
संजय सिंह, नई दिल्ली। भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआइ) ने एनएच-1 के दिल्ली-पानीपत खंड को एकमुश्त छह या आठ लेन में बदलने के बजाय शुरू के एक चौथाई हिस्से को आठ लेन और बाकी को छह लेन में बदलने का दोषपूर्ण निर्णय लिया। नतीजतन 15 साल बाद अब इस पूरे खंड को फिर से आठ लेन करने की जरूरत पड़ रही है। इस तरह एक ही सड़क को बार-बार बनाकर एनएचएआइ न केवल जनता का धन बर्बाद कर रहा, बल्कि राष्ट्रीय राजमार्गो पर त्वरित व निर्बाध यातायात के मकसद को भी धता बता रहा है।
एनएचएआइ की इस करतूत के कारण ऐसी स्थिति बन गई कि एक तरफ मुकरबा चौक से दिल्ली-हरियाणा बार्डर तक की 8 लेनिंग हो रही थी तो दूसरी तरफ उसके आगे पानीपत तक के खंड को चार से छह लेन में बदलने की प्रक्रिया चल रही थी। यही नहीं, ‘कोढ़ में खाज’ की उक्ति को चरितार्थ करते हुए एनएचएआइ ने इस खंड को तीन प्रोजेक्ट में बांटकर टेंडर किए। लेकिन, यह प्रयास भी ‘तीन तिगाड़ा काम बिगाड़ा’ साबित हुआ क्योंकि एक प्रोजेक्ट में पूरे नौ साल लग गए। चरणों में लेन बढ़ाने के इस खेल में एनएचएआइ और कांट्रैक्टर फर्मो के बीच कितने का लेन-देन हुआ, यह कहना मुश्किल है। लेकिन, कैग की रिपोर्टे इस ओर इशारा करती हैं। तीन में से पहले यानी दिल्ली-हरियाणा बार्डर से कमसपुर के 15 किमी के प्रोजेक्ट को तो कांट्रैक्टर ने दो साल में पूरा कर दिया। परंतु कमसपुर से पंछी गुजरान के 21.7 किमी के बड़े प्रोजेक्ट को पूरा करने में एनएचएआइ के पसीने छूट गए। यह प्रोजेक्ट रुक-रुक कर दो चरणों में पूरा हुआ। इसका पहला कांट्रैक्ट अगस्त 2001 में अवार्ड हुआ था। लेकिन, भूमि अधिग्रहण, यूटिलिटी शिफ्टिंग आदि की रुकावटों के चलते दिसंबर 2004 में इसे रद करना पड़ा।
अक्टूबर 2005 में नई कंपनी को कांट्रैक्ट दिया गया, जिसने पांच साल बाद दिसंबर 2010 में जाकर किसी तरह काम निपटाया। इसके आगे पंछी गुजरान से पानीपत के 20 किमी खंड को छह लेन करने में भी इरकॉन जैसी पेशेवर कंपनी को भी तकरीबन चार साल का वक्त लग गया। वह अक्टूबर 2006 में काम शुरू कर दिसंबर 2010 में पूरा कर सकी।
कठिन है घोटाला पकड़ना
कैग के अलावा किसी अन्य के लिए इस साठगांठ को पूरी तरह उजागर करना संभव नहीं है। सीबीआइ की नजर भी इस ओर तभी जाती है जब किसी मामले की विशिष्ट शिकायत की जाए। लेकिन, उस स्थिति की काट भी एनएचएआइ और कांट्रैक्टर्स ने निकाल ली हैं। वे एक-दूसरे पर अदालत में केस कर देते हैं। इन मुकदमों का फैसला जब तक आता है तब तक कांट्रैक्टर तो अपना मुनाफा काट चुका होता है।