कृषि मंत्री ने कहा, 'नीतियों में बदलाव से बदलेगी खेती'
जलवायु परिवर्तन से खेती पर संकट के बादल छाने लगे हैं। मानसून के कमजोर रहने की आशंका और इसके अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले विपरीत असर को देखते हुए सरकार ने इससे निपटने की तैयारियां शुरू कर दी हैं। बेहाल खेतिहरों की दशा सुधारने में जुटी मोदी सरकार की घोषणाओं से
जलवायु परिवर्तन से खेती पर संकट के बादल छाने लगे हैं। मानसून के कमजोर रहने की आशंका और इसके अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले विपरीत असर को देखते हुए सरकार ने इससे निपटने की तैयारियां शुरू कर दी हैं। बेहाल खेतिहरों की दशा सुधारने में जुटी मोदी सरकार की घोषणाओं से कुछ उम्मीदें जरूर बंधी है। माटी की सेहत, हर खेत को पानी, परंपरागत जैविक खेती पर जोर, उन्नत बीज और उपज बेचने के लिए मंडी कानून में सुधार की दिशा में प्रयास शुरू कर दिए गए हैं। केंद्रीय कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह की नजर में नीतिगत खामियों के चलते खेती की दशा बिगड़ी है। इसमें पर्याप्त बदलाव की जरूरत है। दैनिक जागरण राष्ट्रीय ब्यूरो के उप प्रमुख सुरेंद्र प्रसाद सिंह ने इन विषयों पर उनसे लंबी बातचीत की। प्रस्तुत है उसका कुछ हिस्सा...
आगामी खरीफ सीजन में मानसून के कमजोर होने का अंदेशा है। इस तरह का सूखा आपकी सरकार के लिए दूसरी बार होगा। इससे निपटने की क्या तैयारी है?
हमारी सरकार बनी तो देश में अकाल की स्थिति थी। तब हमने 500 जिलों के लिए आकस्मिक योजना बनाई थी, जो इस बार 580 जिलों में बनाकर भेज दी गई है। उस समय प्रधानमंत्री ने बीज, चारा और डीजल पर सब्सिडी का प्रावधान किया था। राज्य और केंद्र के अफसरों व किसानों की मेहनत ने रंग दिखाया। भीषण सूखे का मुकाबला करते हुए हमने कामयाबी हासिल की है। केवल दो फीसद बुवाई कम हुई और पैदावार तीन फीसद घटी थी। तब का मामला गंभीर था, इस बार उतनी खराब स्थिति नहीं होने वाली है।
चालू रबी सीजन में फसलें खेतों में खड़ी थी, तभी फरवरी-मार्च में आई बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि ने भारी तबाही मचाई। किसानों के हित में सरकार ने क्या उपाय किए?
नुकसान का जो आंकलन आया है, उसके मुताबिक चार से पांच फीसद तक पैदावार कम होगी। किसानों के नुकसान की भरपाई के लिए सरकार ने पांच अहम उपाय किए हैैं। राज्यों के आपदा राहत कोष की राशि को बढ़ाकर डेढ़ गुना कर दिया गया है। अतिवृष्टि पहले राष्ट्रीय आपदा में शामिल नहीं था। इसके लिए हमने राज्यों से कहा है कि राज्य आपदा निधि (एसडीआरएफ) की 10 फीसद राशि अतिवृष्टि से होने वाले नुकसान के लिए राहत बांटने में खर्च करें। दूसरा सबसे बड़ा फैसला कर एसडीआरआफ के मानक को ढीला करते हुए 50 फीसद नुकसान की सीमा को घटाकर 33 फीसद और मुआवजे की राशि प्रति हेक्टेयर बढ़ाकर डेढ़ गुना कर दिया गया है। मौसम की मार से खराब गेहूं की खरीद भी न्यूनतम समर्थन मूल्य पर सुनिश्चित कर दी गई है।
घाटे की खेती के चलते किसानों में आत्महत्या की प्रवृत्ति बढ़ रही है। इसे रोकने के लिए सरकार क्या उपाय कर रही है?
आत्महत्या के बहुत से कारण हैं। आत्महत्या बहुत दु:खद विषय है। पहले कृषि का जीडीपी में हिस्सा 55 फीसद था, जो अब घटकर 14 प्रतिशत के निचले स्तर पर पहुंच गया है। यानी आजादी के बाद से ही खेती की चिंता बहुत कम की गई। नीतियों में बदलाव की सख्त जरूरत महसूस की जा रही है। किसानों को यह नहीं मालूम है कि उसके किस खेत में कौन सी फसल बोई जाए और कौन सी खाद व दवा डाली जाए। उसके खेत पर पानी नहीं है, जिससे वह फसलों की सिंचाई कर सके। 300 रुपये घंटे की दर से पानी खरीद कर सिंचाई करनी पड़ती है। भला ऐसे में खेती कहां से फायदे में आएगी। 2013 में कुल 1100 किसानों ने आत्महत्या की है, जिसमें अकेले महाराष्ट्र में 800 से ज्यादा लोगों ने खुदकुशी की। सिंचाई साधनों के लिए महाराष्ट्र में दस सालों में 70,000 करोड़ रुपये गया। लेकिन सिंचित भूमि का आंकड़ा 98 फीसद पंजाब में है और देशभर में 45 फीसद। जबकि महाराष्ट्र में सिर्फ 16 फीसद खेती सिंचित है।
उत्पादकता बढ़ाने और खेती को लाभकारी बनाने की दिशा में क्या उपाय किए गए?
खेती की लागत बढ़ रही है। बाजार में अच्छा मूल्य नहीं मिल रहा है। हमारी प्राथमिकता लागत में कमी करने, उत्पादकता बढ़ाने, अच्छी मार्केटिंग, उन्नत प्रजाति के बीज उपलब्ध कराने, सिंचाई की सुविधा, खाद व दवाएं उपलब्ध कराना है। इससे ही किसानों का भला होगा।
खेती के लिए सब्सिडी देने में क्या सरकार हाथ पीछे खींच रही है? क्या इससे खाद के मूल्य नहीं बढ़ेंगे?
फर्टिलाइजर के मूल्य में कोई वृद्धि नहीं की गई है। खाद की सब्सिडी में धेला भर की कमी नहीं की गई है। देश के बंद चार बड़े खाद कारखानों को सरकार सौ दिन के भीतर चालू करने जा रही है। ताकि किसानों को पर्याप्त खाद घरेलू कारखानों से मिल जाए। कीटनाशकों की गुणवत्ता को बनाए रखना हमारी प्राथमिकता है ताकि किसानों को नकली और मिलावटी दवाओं से नुकसान न उठाना पड़े।
हरितक्रांति में फसलों की बढ़ी उत्पादकता अब घटने लगी, जो गंभीर चिंता का विषय है। इसके लिए सरकार क्या कर रही है?
हरितक्रांति के दौर में उत्पादकता की जो गति थी, वह अब घट रही है। खेती की सतत उत्पादकता के लिए स्वायल हेल्थ कार्ड और जैविक खेती जैसे उपाय जरूरी है। इसीलिए अब योजनाएं मिशन मोड में चलाई जा रही हैैं। खाद्य सुरक्षा के लिए देश के पूर्वी राज्यों को लक्षित कर दूसरी हरितक्रांति शुरू की गई है, जिसके नतीजे भी मिलने लगे हैैं। दरअसल हरितक्रांति के समय इन राज्यों की संभावनाओं का दोहन नहीं किया गया।
क्या सरकार फिर कृषि ऋण माफी पर विचार कर रही है?
कर्ज माफी ही खेती व किसानों की समस्याओं का इलाज होती तो महाराष्ट्र जैसे राज्य में किसान इतनी संख्या में आत्महत्या क्यों करता? सिर्फ कर्ज माफी व सब्सिडी से उनकी हालत में सुधार संभव नहीं है।
हर खेत को पानी देने की सरकार की घोषणा पर अमल कब शुरू होगा?
सिंचाई की व्यवस्था पिछली सरकारों ने की होती तो प्रधानमंत्री सिंचाई योजना की क्यों जरूरत पड़ती? योजना के संचालन के लिए कृषि, जल संसाधन और भूमि संसाधन विभाग की ओर से समन्वित प्रयास किए जा रहे हैैं। योजना की शुरुआत के लिए चालू बजट में ही 5300 करोड़ रुपये का प्रावधान कर दिया गया है।
राष्ट्रीय कृषि बाजार की स्थापना की दिशा में क्या प्रगति हुई है?
देश में मंडी कानून का हाल इतना खराब है कि राज्यों के भीतर ही विभिन्न मंडियों के बीच तालमेल नहीं है। प्रत्येक मंडी में कारोबार के लिए अलग-अलग लाइसेंस की जरूरत पड़ती है। मंडी शुल्क, कारोबार पर एकाधिकार व प्रतिबंधात्मक मार्केटिंग की कुप्रथाओं के जाल के चलते कृषि उपज का सही मूल्य किसानों को नहीं मिल पाता है। इसमें सुधार के लिए राष्ट्रीय कृषि बाजार की अवधारणा पर अमल शुरू किया जा रहा है। इसके लागू होने पर एक ही लाइसेंस और एक ही बार शुल्क देने की सहूलियत मिल जाएगी।
जलवायु परिवर्तन के चलते संकर नस्ल के दुधारू पशुओं की प्रजनन क्षमता व दुग्ध उत्पादन के प्रभावित होने का खतरा है। इस चुनौती से निपटने के लिए क्या उपाय किए जा रहे हैैं?
सरकार ने इसके लिए राष्ट्रीय गोकुल मिशन की शुरुआत की है। इसमें देसी नस्लों के दुधारु पशुओं की नस्लों का विकास व संवर्धन करेंगे। देसी नस्लों की गाय व भैैंसों की दूध देने की क्षमता बढ़ते तापमान के बावजूद प्रभावित नहीं होती है।
देश में जलाशयों की भारी संख्या के बावजूद उनका उपयोग नहीं हो पा रहा है। क्या सरकार मछली पालन को बढ़ावा देने की दिशा में कुछ कर रही है?
जलाशयों के साथ देश की लंबी समुद्री सीमा के होने का लाभ हमे मछली पालन के लिए मिलता है। देश में फिलहाल 50 लाख टन मछली का उत्पादन होता है। सरकार ने इसके लिए ‘नीली क्रांति’ की शुरुआत की है। मछली उत्पादन बढ़ने से जहां खाद्य सुरक्षा को बल मिलेगा, वहीं इसके निर्यात से विदेशी मुद्रा प्राप्त होगी।
कृषि शिक्षा व अनुसंधान की दिशा में सरकार क्या कर रही है?
कृषि शिक्षा व अनुसंधान को महत्व देने के उद्देश्य से मोदी सरकार के गठन के साथ ही कई शिक्षण संस्थानों की स्थापना की घोषणा की गई। ताकि आने वाले दिनों में उन्नत खेती के लिए कृषि वैज्ञानिकों की मांग को पूरा किया जा सके। कृषि से संबंधित इन शिक्षण संस्थानों की स्थापना उन राज्यों में की जा रही है, जहां इनकी जरूरत है।
कृषि में युवाओं की रुचि घट रही है। उन्हें इस क्षेत्र में आकर्षित करने के लिए क्या किया जा रहा है?
इसके लिए एक आकर्षक योजना शुरू की गई है, जो युवाओं में खेती के प्रति रुचि पैदा करेगी। गांवों के युवाओं का पलायन रोकने के लिए कृषि व कृषि संबंधित कार्यो से आय बढ़ाने वाले उद्यम शुरू किए जा रहे हैैं। ऐसे उद्यमों के लिए 35 वर्ष से कम उम्र के ग्र्रामीण युवाओं को प्रशिक्षित किया जाएगा। व्यावहारिक अनुभवों के माध्यम से कुशल, उद्यमशीलता व मार्केटिंग के लिए देशभर में कृषि छात्रों का नेटवर्क तैयार किया जाएगा।
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'हमारी प्राथमिकता लागत में कमी करने, उत्पादकता बढ़ाने, अच्छी मार्केटिंग, उन्नत प्रजाति के बीज उपलब्ध कराने, सिंचाई की सुविधा, खाद व दवाएं उपलब्ध कराना है। इससे ही किसानों का भला होगा।'