अच्छे दिनों की राह में बड़ी चुनौतियां
‘अच्छे दिनों को वापस’ लाने के नारे के साथ सत्ता में आई मोदी सरकार को इस बात का आभास हो गया है कि भारतीय अर्थव्यवस्था में इसकी राह बेहद कठिन है। शायद यही वजह है कि आर्थिक मोर्चे पर सरकार के पिछले छह महीने के कामकाज का लेखा-जोखा जब वित्त
नई दिल्ली। ‘अच्छे दिनों को वापस’ लाने के नारे के साथ सत्ता में आई मोदी सरकार को इस बात का आभास हो गया है कि भारतीय अर्थव्यवस्था में इसकी राह बेहद कठिन है। शायद यही वजह है कि आर्थिक मोर्चे पर सरकार के पिछले छह महीने के कामकाज का लेखा-जोखा जब वित्त मंत्रलय ने शुक्रवार को पेश किया तो उसमें उपलब्धियों से ज्यादा चुनौतियों का जिक्र है। महंगाई से लेकर लंबित परियोजनाओं की राह आसान करने तक हर जगह सरकार को सिर्फ चुनौतियां ही दिखाई दे रही हैं। इसके बावजूद यह दावा किया गया है कि चालू वित्त वर्ष के लिए तय 5.5 फीसद की आर्थिक विकास दर और 4.1 फीसद के राजकोषीय घाटे का लक्ष्य हासिल कर लिया जाएगा।
मध्यावधि समीक्षा के जरिये सरकार ने यह भी साफ कर दिया है कि वह सही मायने में अपनी आर्थिक नीति अब अगले बजट में ही रखेगी। चालू वर्ष में सरकार का सारा जोर किसी भी तरह अर्थव्यवस्था की रफ्तार को 5.5 फीसद पर कायम रखने और राजकोषीय घाटे को काबू में करने को लेकर है। अगला बजट ही सात से आठ फीसद की आर्थिक विकास दर को फिर से हासिल करने का रास्ता साफ करेगा। सरकार को भरोसा है कि वह अगले कुछ वर्षो में 7-8 फीसद की आर्थिक विकास दर हासिल कर लेगी। लेकिन इसकी राह की सबसे बड़ी चुनौती देश में निवेश का माहौल तैयार करना और 18 लाख करोड़ रुपये की लंबित परियोजनाओं में तेजी से काम शुरू करना है। खास तौर पर निजी क्षेत्र को किस तरह से नए निवेश के लिए तैयार किया जाए, सरकार को इस बाधा को दूर करना होगा।
महंगाई की मौजूदा स्थिति को सरकार ने अपनी एक बड़ी उपलब्धि बताई है, लेकिन इसके साफ संकेत हैं कि आने वाले दिनों में इसमें वृद्धि हो सकती है। अगले पांच तिमाहियों के लिए महंगाई की दर के 5.1 से 5.8 फीसद के बीच रहने का अनुमान लगाया गया है। अभी यह शून्य फीसद है। यानी महंगाई की दर आने वाले दिनों में तेजी से बढ़ सकती है।